Sunday Special: सांस्कृतिक धरोहर के ज्ञान का महत्वपूर्ण साधन है भागलपुर, विक्रमशिला संग्रहालय

Sunday Special: सांस्कृतिक धरोहर के ज्ञान का महत्वपूर्ण साधन है भागलपुर, विक्रमशिला संग्रहालय
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Sunday Special: बिहार के भागलपुर में दो संग्रहालय है। एक है भागलपुर संग्रहालय, जिसकी स्थापना 11 नवंबर 1976 में हुई। दूसरा विक्रमशिला संग्रहालय है, इसकी स्थापना में 2004 में हुई थी। ये दोनों संग्रहालय काफी अहम हैं। संग्रहालय में संयोजी चीजें सांस्कृतिक धरोहर के ज्ञानार्जन का महत्वपूर्ण साधन हैं।

Sunday Special: संग्रहालयों (museums) के माध्यम से जनसामान्य को अपने इतिहास (history) और प्राचीन समृद्ध परंपराओं (ancient rich traditions) को अच्छी तरह जानने और समझने में मदद मिलती है। इसी कड़ी में 11 नवंबर 1976 को भागलपुर संग्रहालय (Bhagalpur Museum) की स्थापना की गई थी। इसके बाद विक्रमशिला बहुत बिहार में भी वर्ष 2004 में एक और संग्रहालय (Vikramshila Museum) की स्थापना हुई। जो हमारी गौरवशाली सांस्कृतिक धरोहर की जीवन तस्वीर को संजो कर रखा है। यह संग्रहालय शिक्षकों (teachers) और शोधार्थियों (researchers) के ज्ञानार्जन का अहम साधन माना जाता है।

यहां भी है संग्रहालय

आपको बता दें एक संग्रहालय ति. मा. भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, रवींद्र भवन (तिलहा कोठी) में भी है। यहां पर पुरातात्विक महत्व की कई वस्तुओं के साथ ही प्राचीन सिक्के व कई पाषाण उपकरण संगृहीत हैं। लेकिन मुख्य रूप से भागलपुर जिले में दो भागलपुर संग्रहालय और विक्रमशिला पुरातात्विक स्थल संग्रहालय काफी अहम हैं। यहां के प्रदर्श इस क्षेत्र से संबंधित ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पुरातात्विक दृष्टि से काफी अहम हैं।

भागलपुर संग्रहालय की विशेषता

भागलपुर संग्रहालय की स्थापना 11 नवंबर, 1976 की गई। भागलपुर संग्रहालय में प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर आधुनिक काल तक की कई कलाकृतियां प्रदर्शित हैं। जो कि जैन, ब्राह्मण और बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। जिसमें सरस्वती, वराह, दशावतार, सप्तमातृका, बुद्धपट्टिका के साथ ही 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य की खण्डित प्रतिमा उल्लेखनीय है। इसके साथ ही छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आहत सिक्के और बाद के प्राचीन सिक्के, पांडुलिपियां आदि भी अहम हैं। प्रमुख प्रदर्शों में मंदार से प्राप्त गणेश की षटभूजीय खंडित प्रतिमा एवं दूसरी अन्य खंडित गणेश प्रतिमाएं हैं। महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) की काले पत्थर द्वारा निर्मित बांका से प्राप्त खंडित प्रतिमा, सी एम एस स्कूल भागलपुर से प्राप्त काले पत्थर की चतुर्भुज दुर्गा प्रतिमा भी विशिष्ट कलाकृति हैं। इसके साथ ही भागलपुर संग्रहालय में विष्णु की कई प्रतिमाएं भी हैं। जो सभी उत्तरगुप्तकालीन है। संग्रहालय में एक महत्वपूर्ण अद्भुत प्रतिमा है, जो कुषाणकालीन यक्षिणी है ये शाहकुंड से प्राप्त हुई है। इसके साथ ही हाल में ही शाहकुण्ड से प्राप्त सेण्डस्टोन प्रतिमा (लकुलीश, यक्ष) भी यहीं प्रदर्शित की गई है! गुप्तकालीन सारनाथ की बुद्ध प्रतिमा के अनुरूप ही यहां, सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा की एक विशिष्ट प्रतिमा संग्रहालय में है, जिसमें पारदर्शी वस्त्र उष्णीय एवं उर्ण का अंकन काफी कुशलतापूर्वक किया गया है।

विक्रमशिला संग्रहालय की खासियत

विक्रमशिला संग्रहालय भी काफी अहम है, विक्रमशिला संग्रहालय की स्थापना नवंबर 2004 में की गई। विक्रमशिला संग्रहालय में 1972- 82 में किए गए पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त कलाकृतियां संरक्षित है। विक्रमशिला संग्रहालय की मुख्य प्रदर्शों में बुद्ध की बलुआ पत्थर से निर्मित भूमिस्पर्श मुद्रा की प्रतिमा काफी अहम है, जिसमें बुद्ध को दाहिने हाथ की अंगुली द्वारा भूमि स्पर्श करते हुए दिखाया गया है। साथ ही चारों ओर बुद्ध की जीवन से संबंधित घटनाओं को दिखाते हुए सात अन्य बुद्ध की आकृति का भी अंकन है! वज्रयान के केंद्र होने की वजह से यहां से प्राप्त बौद्ध धर्म की देवी तारा की प्रतिमा भी यहां प्रदर्शित है। यह प्रतिमा हाई रिलीफ तकनीक द्वारा काले बेसाल्ट पत्थर द्वारा निर्मित है। जिसमें देवी का अलंकरण का अंकन आद्वीतीय रूप से किया गया है।

वज्रयानी बौद्ध धर्म के प्रभाव की वहज से शिव के महाकाल स्वरूप की भी प्रतिमा यहां प्राप्त होती है जो कि इस संग्रहालय में प्रदर्शित है। तंत्र प्रभाव के कारण इसमें महाकाल को दानव का भक्षण और रक्तपान करते हुए प्रदर्शित किया गया है, अंकन प्रतीत होता है। एक अन्य महाकाल प्रतिमा में महाकाल को घने दाढ़ी और मूंछों के साथ खुले मुख के रूप में प्रदर्शित किया गया है। जो चार भुजाओं में शंख, त्रिशूल, कपाल खोपड़ी और कटोरा एवं नर मुंडो की माला गले में धारण किए हुए हैं, जो शिव के रौद्र रूप का प्रतीक है। इसके अलावा विक्रमशिला संग्रहालय में पार्वती, सूर्य, उमा-महेश्वर आदि की कई महत्वपूर्ण प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं।

विक्रमशिला संग्रहालय में कृष्ण- सुदामा का स्थापत्य फलक भी काफी विशेष है। जिसमें सुदामा के जीर्ण-शीर्ण दाढ़ीयुक्त शरीर का अंकन कुशलतापूर्वक किया गया है इसमें दरिद्रता व कुपोषण का सफल अंकन उसके न्यून वस्त्रों और उभरी हुई पसलियों के अंकन द्वारा किया गया है। इसके अलावा विक्रमशिला संग्रहालय में एक नवग्रह फलक जिसमें सूर्य, मंगल, चंद्र, बुध, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु ग्रहों का मानव स्वरूप में अंकन किया गया है, काफी कलात्मक एवं अहम है। इसके अलावा यहां कई कांस्य एवं अष्टधातु धातु की भी प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं। इसमें मंजूश्री और तारा की प्रतिमाएं अहम है जो कि नालंदा व कुर्किहार की प्रतिमाओं के समकक्ष स्थान रखती है। टेराकोटा के रूप में यहां डिस्क, त्वचा रगड़ने वाला, खिलौना, मनके और मुहर इत्यादि भी प्रदर्शित हैं। यहां सभी प्रदर्श 8वीं से 12वीं शताब्दी तक के मध्य के हैं जो इस क्षेत्र के समकालीन सामान्य जीवनशैली और विशेष रूप से विक्रमशिला महाविहार के स्थापना काल की संस्कृति को जीवित जीवंत करते हैं।

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