Sunday Special: जेपी ने तत्कालीन इंदिरा सरकार को दिन में दिखा दिए थे तारे, जानें इनके संघर्ष की पूरी कहानी

Sunday Special: जेपी ने तत्कालीन इंदिरा सरकार को दिन में दिखा दिए थे तारे, जानें इनके संघर्ष की पूरी कहानी
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राष्ट्रभक्तों, स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के महान त्याग को जब-जब याद किया जाता है तो उसमें स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण के बलिदान भी याद किए जाते हैं। इन्हें जेपी भी पुकारा जाता है। जेपी ने अकेले के दम पर तत्कालीन इंदिरा सरकार को दिन में तारे दिखा दिए थे। बिहार के सारण जिले से जेपी का नाता रहा था और आज हम आपकों इनके संघर्षों की कहानी याद दिलाने जा रहे हैं।

राष्ट्रभक्त, स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी जयप्रकाश नारायण का जन्म बिहार (bihar) राज्य के जिले सारण (saran ) के सिताबदियारा 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ था। इन्हें प्यार से जेपी भी पुकारा जाता है। सन 1920 में जयप्रकाश नारायण (JP) का विवाह प्रभावती देवी के साथ हुआ। प्रभावती स्वभाव से अत्यंत मृदुल थीं। उन्होंने ही अपने पति को गांधी से मिलने की सलाह दी थी। पटना (patna) से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह शिक्षा के लिए अमेरिका भी गए। हालांकि, उनके मन में भारत को आजाद देखने की लौ जल रही थी। यही वजह रही कि वे सन 1929 में स्वदेश लौटे और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हुए। उस वक्त वह घोर मा‌र्क्सवादी हुआ करते थे।

जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे, हालांकि बाद में बापू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया। जयप्रकाश नारायण ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया तथा कांग्रेस के साथ जुड़े, आजादी के बाद वह आचार्य विनोबा भावे जी से प्रभावित हुए और उनके सर्वोदय आंदोलन से जुड़े। उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने आचार्य भावे के भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया। जयप्रकाश नारायण ने सन 1950 के दशक में राज्य व्यवस्था की पुनर्रचना नामक एक पुस्तक लिखी। कहा जाता है कि इसी पुस्तक को आधार बनाकर नेहरू ने मेहता आयोग का गठन किया। इससे लगता है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात शायद सबसे पहले जेपी जी ने उठाई थी।

लोकनायक के बेमिसाल राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा पहलू यह है कि उन्हें सत्ता का मोह नहीं था, शायद यही कारण है कि नेहरू के प्रयास के बावजूद वह उनके मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए। वह सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते थे।

05 जून, 1975 को अपने प्रसिद्ध भाषण में जेपी ने कहा था कि भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं। क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और संपूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए संपूर्ण क्रांति आवश्यक है। विशाल सभा में जेपी ने पहली बार संपूर्ण क्रांति के दो शब्दों का उच्चारण किया। उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा। यह क्रांति उन्होंने बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार की वजह से शुरू की। बिहार में लगी चिंगारी कब पूरे भारत में फैल गई पता ही नहीं चला। जेपी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी। सन 1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफे की मांग की। इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को अरेस्ट कर लिया। जयप्रकाश नारायण की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी संपूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी।

जेपी जी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे। दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जब जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी थी, तब आकाश में सिर्फ उनकी ही आवाज सुनाई देती थी। उस समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक के संपूर्ण क्रांति आदोलन के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। इसके बाद भी जेपी का सपना पूरा नहीं हुआ। इस क्रांति का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे देशों पर भी पड़ा था। वर्ष 1977 में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे थी। यह जेपी के करिश्माई नेतृत्व का ही असर था। जयप्रकाश मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित हुए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये सन 1998 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मरणोपरान्त भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। उन्होंने 08 अक्टूबर, 1979 को पटना में अंतिम सांस ली।

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