Sunday Special: : बिहार-चंपारण सत्याग्रह ने भारत की आजादी में निभाई थी अहम भूमिका, आप भी जाने उनकी गौरवगाथा

Sunday Special: : बिहार-चंपारण सत्याग्रह ने भारत की आजादी में निभाई थी अहम भूमिका, आप भी जाने उनकी गौरवगाथा
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Sunday Special: ये ऐसी जंग थी, जिसने बिना हथियार उठाए, बिना एक बूंद खून बहाए दुनिया की सबसे बड़ी ताकत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया गया था। सत्य का ये प्रयोग सत्याग्रह के नाम से जाना गया। इसकी बुनियाद पर भारत को आजादी मिली।

Sunday Special : भारत (India) की आजादी के आंदोलन (Freedom movement) में चंपारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha) महत्वपूर्ण स्थान रखता है और यह अतीत के पन्नों की गौरवशाली गाथा (Glorious saga) है। इस आंदोलन की वजह से ही बिहार (Bihar) राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आया था। चंपारण सत्याग्रह बिहार की धरती पर बदलाव के लिए लड़ी गई सबसे बड़ी जंग का नाम है। ये वो जंग है, जो बिना हथियार उठाए, बिना एक बूंद खून बहाए दुनिया की सबसे बड़ी ताकत से सामना करने के लिए लड़ी गई। इस जंग ने दुनिया की सबसे बड़ी ताकत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। इसी सत्याग्रह की बुनियाद पर भारत ने आजादी पाई थी।

ब्रजकिशोर बाबू ने निभाया था अहम रोल

चंपारण सत्याग्रह सिविल नाफरमानी की पहली कहानी है। इस बात को पूरी दुनिया जानती है कि सच्चाई और अहिंसा के आगे दुनिया की सबसे मजबूत शक्ति को झुकना पड़ा। आपको बता दें चंपारण सत्याग्रह सिर्फ कुछ किसानों का संघर्ष ही नहीं था। बल्कि ये दुनिया के शोषित और पीड़ित जनता के अधिकारों के लिए लड़ी गई पहली अहिंसक लड़ाई थी। इसमें लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में राजकुमार शुक्ल ने गांधी को चंपारण आने का न्योता दिया था। बताया ये भी जाता है कि मोहनदास कर्मचन्द दास गांधी (Mohandas karmachand das gandhi) के बिहार दौरे में ब्रजकिशोर बाबू का भी अहम रोल रहा था। ब्रजकिशोर बाबू उस दौरान बिहार प्रांतीय कांग्रेस के सभापति थे। ये लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ससुर भी थे।

'महात्मा' बनने में चंपारण सत्याग्रह का अहम योगदान रहा

गांधी (Gandhi) जी का दरभंगा से भी विशेष लगाव था। गांधी जी को दरभंगा महाराज की 3 पीढ़ियों का सहयोग अनवरत मिलता रहा। इसके अलावा धरणीधर प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद और पंडित रामनंदन मिश्र जैसे कई लोगों का सहयोग भी मिला। ये भी सभी को मालूम है कि बिहार के चंपारण सत्याग्रह ने ही मोहन दास करमचंद गांधी को महात्मा की उपाधि दी थी,लेकिन महात्मा कहने का श्रेय सिर्फ गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर को दिया जाता है। बताया जाता है कि गांधी जी के लिए रविन्द्रनाथ टैगोर ने 12 अप्रैल 1919 में डियर महात्माजी शब्द का प्रयोग किया था। दरभंगा राजपरिवार से निकलने वाली पत्रिका मिथिला मिहिर ने 21 अप्रैल 1917 को ही पत्रिका में छापकर गांधी जी को महात्मा पुकारा था। मिथिला मिहिर पत्रिका की वो प्रति आज भी दरभंगा के संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई है।

'यहां पर गांधी जी ने बदल लिया अपना व्यक्तित्व'

मोहन दास करमचंद गांधी 15 अप्रैल 1917 को बिहार के मोतिहारी स्टेशन पर उतरे थे। उस वक्त गांधी के तन पर काठियावाड़ी कपड़े थे। वहीं चंपारण के किसानों के हालातों को देखकर बापू ने सिर्फ एक धोती के सहारे गुजारा करने का निश्चय कर लिया था। बेशक मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म पोरबंदर गुजरात में हुआ, लेकिन दुनिया उन्हें लंगोटी वाले बापू के नाम से जानती है। गांधी का दूसरा जन्म बिहार में चंपारण की धरती पर हुआ था।

यहां वकील से महात्मा बने थे गांधी जी

साल 1917 की 18 अप्रैल को एसडीओ कोर्ट मोतिहारी में बेबस किसानों और गरीबों का जनसैलाब उमड़ा था। ये जनसैलाब गुजरात से आए मोहनदास करमचंद गांधी को देखने के लिए आया हुआ था। जिनको अंग्रेज हुकूमत ने हिरासत में ले लिया था। एक ओर तो कोर्ट परिसर में सुनवाई चल रही थी, वहीं दूसरी ओर कोर्ट परिसर के बाहर लोगों की भारी भीड़ जमा थी। इन किसानों की आशा भरी निगाहें एक शख्स (गांधी) पर टिकी हुई थीं। जिनकी हिम्मत के कहानियां दक्षिण अफ्रीका से भारत पहुंची थीं। वहीं जनता गांधी को अपना मसीहा मान चुकी थी। 18 अप्रैल को मोतिहारी के एसडीएम कोर्ट में जो कुछ हुआ, उसने गुजरात के पोरबंदर निवासी वकील मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा बना दिया। इसके बाद वो महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के नाम से जाने गए।

गांधी जी ने निजी मुचलके पर जमानत लेने से कर दिया था इंकार

हिरासत में लिए गए गांधी जी के पक्ष में कोर्ट के बाहर हजारों किसानों की भीड़ नारे लगा रही थी। स्थिति को समझते हुए मजिस्ट्रेट ने तुरंत गांधी को निजी मुचलके पर बेल दे दी। इस पर गांधी जी ने बेल लेने से मना कर दिया। इसके बाद गांधी जी को बिना मुचलके के ही जमानत दे दी गई। कोर्ट में जमींदारों के पक्ष में खड़ी वकीलों की फौज देखती रह गई। इस अकेले शख्स ने कोर्ट की कार्रवाई का नक्शा ही पलट दिया। गांधी जी ने जब कोर्ट में नोटिस का जवाब दिया था तो वहां सन्नाटा पसर गया था।

मोतिहारी एसडीएम कोर्ट को बनाया गया गांधी संग्रहालय

मोतिहारी के एसडीओ (SDO) कोर्ट में ऐतिहासिक मुकदमें की सुनाई के दौरान गांधी ने जो स्पष्ट एवं ऐतिहासिक बयान दिया था। वो बयान भारत की आजादी के आंदोलन का अहम दस्तावेज है। पहले यहां पर मोतिहारी एसडीएम कोर्ट हुआ करता था। आज उस जगह पर गांधी संग्रहालय बनाया दिया गया है। यहां लगी शिलापट्ट में गांधी जी को मिले नोटिस और उसका जवाब लिखा हुआ है। शिलापट्ट के एक-एक शब्द बिहार व हिंदुस्तान के स्वाभिमान को उजागर करते हैं।

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