मेकाहारा में 40 फीसदी डिलीवरी प्री-मैच्योर, महीनेभर में औसतन 50 बच्चों की मौत

रायपुर. मेडिकल काॅलेज रायपुर के आंबेडकर अस्पताल में महीने में होने वाली पांच सौ से ज्यादा डिलीवरी में 40 फीसदी प्री-मैच्योर होती है। समय से पहले प्रसव, कम वजन और बेहद कमजोर होने की वजह से महीने में लगभग 50 बच्चों की मौत हो जाती है। चिकित्सकों की टीम उन्हें बचाने का भरसक प्रयास करती है, मगर कई बार सफलता नहीं मिलती। विशेषज्ञों के मुताबिक आंबेडकर अस्पताल के बाल एवं शिशु रोग विभाग के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट का संचालन अभी जिला अस्पताल पंडरी में किया जा रहा है।
यहां के गायनी विभाग में प्रसव के बाद कमजोर बच्चों को विशेष निगरानी में एनआईसीयू में रखा जाता है, मगर कई बार ऐसी स्थिति होती है कि डॉक्टर तमाम मशक्कत के बावजूद बच्चों की जान नहीं बचा पाते हैं। सूत्रों के मुताबिक महीनेभर में औसतन 50 बच्चों की इसी वजह से मौत हो जाती है, जिसे सामान्य घटना माना जाता है। स्थिति तब विपरीत हो जाती है, जब इलाज के दौरान जब एक ही दिन में तीन-चार बच्चों की मौत हो जाती है, इस दौरान दुखी परिवार की नाराजगी सामने आ जाती है। सूत्रों के मुताबिक जिला अस्पताल के एनआईसीयू में परिजनों की नाराजगी सामने आती रहती है। अंबिकापुर मेडिकल काॅलेज में नवजात बच्चों की मौत के मामले को भी कुछ इसी तरह का माना जा रहा है।
सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत
एनआईसीयू से जुड़े विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चों की मौत को सामान्य माना जा रहा है, मगर इसे नियंत्रित करना आवश्यक है। इसके लिए सभी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने की आवश्यकता है। प्री-मैच्योर बच्चों के इलाज के लिए संसाधन और चिकित्सक सहित अन्य स्टाफ की व्यवस्था कर सुविधाओं को विस्तृत करने की आवश्यकता है।
पूरी कोशिश करते हैं
ऐसे बच्चों को एनआईसीयू में विशेष निगरानी में रखा जाता है। चिकित्सकों सहित पूरी टीम की कोशिश उसे ठीक करने की होती है, मगर विभिन्न काम्प्लीकेशन की वजह से मौत हो जाती है। प्री-मैच्योर बच्चे बेहद कमजोर होते हैं और उनका इलाज बड़ी चुनौती होता है।
- डॉ. ओंकार खंडवाल, विशेषज्ञ, बाल्य एवं शिशुरोग विभाग
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS