संयोग बना और हम निकल पड़े मां वैष्णव देवी का दर्शन करने

नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। मां के भक्त और श्रद्धालु मां दुर्गा की आराधना में लीन हैं। इसी बीच देश में मौजूद मां के प्रमुख मंदिरों में से एक मां वैष्णो देवी की यात्रा का एक बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोया गया वृत्तांत मिला है, जिसे हम अपने पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं।...
आकांक्षा प्रफुल्ल पाण्डेय
बहुत दिनों से मन था, महामाया जगदम्बा की कृपा हो, तो वैष्णो देवी दर्शन लाभ प्राप्त हो जाए.. मनोकामना बदली प्रार्थना में,और संयोग बन गया... थोड़ा बहुत सामान बांधा, और चले..
जम्मू एयरपोर्ट पर खड़ी गाड़ी, जब कटरा की ओर बढ़ चली तो ऐसा लगा, कि गाड़ी और ड्राइवर भी हमारे जितने ही उत्साह से छलक रहे हैं.. डेढ़–दो घण्टे के सफर में किनारे से गुजरते खूबसूरत दृश्य, घुमावदार सड़कें, पेड़, सबकुछ ही देर तक ठहर कर, निहारने लायक है..ठंडी हवा, माथा सहला कर जैसे विश्वास दिला रही है, कि हां सचमुच ही मां ने हमें भी बुला भेजा है..
कटरा टैक्सी स्टैण्ड पर गाड़ी जा लगी.. घोड़ी वाले, पिठ्ठू और पालकी वालों का जमावड़ा लग गया है..उन सब को मना कर, पैदल यात्रा को बढ़ चले.. पूरे रास्ते ड्राईफ्रूट, पूजा सामग्री और खान–पान के स्टॉल लगे हैं.. साफ सुथरे बाथरूम, बैठने को छायादार बैंच..हर प्रकार की सुविधा है, श्राईन बोर्ड की ओर से भी, और बहुत से भक्तों द्वारा प्रायोजित भी..
थोड़ा चलते, आराम करते अर्ध–कुमारी गुफा आ पहुंची...स्त्री–गर्भ के आकार की गुफा को भक्त, गर्भ–जून भी कहा करते हैं.. मान्यता है कि, जो इस गुफा से हो निकला, उसे जन्म–मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है..और इस जन्म में शेष बचा जीवन सुखपूर्वक गुजरता है.. संकरी, टेढ़ी– मेढ़ी गुफा को देख लगा, कैसे इसमें से उस पार होंगे? घुटनों कोहनियों के बल तो एक वर्ष की आयु में ही चला करते थे इससे पहले.. पर उस पार बहुत सरलता से निकल आए, जैसे दिन में कई बार यही बार यही करते हों..
बाहर इसकी कथा सुनी.. नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ ने, अपने शिष्य भैरव को मां के पीछे भेजा.. मां स्वयं इस गुफ़ा में नौ महीनों तक छिपी रहीं (किशोरी कन्या रूपी मां ने तप से आत्म बल एकत्रित किया) तब उनकी सेवा में हनुमान जी पहरा देते थे.. इस गुफा से निकल मां ने भैरव का वध किया.. आत्मबल–दायिनी इस गुफा को नमन कर अब हम आगे बढ़ चले हैं..
थोड़ा विश्राम–जलपान करते सांझी–छत, पार कर आए हम..भवन से कुछ दूरी में स्थित कुंड पर रुक स्नान, आचमन भी जल्द संपन्न कर लिया है.. दर्शन की अधीरता बेचैन किए देती है.. महामाया के द्वार पर हाथ जोड़, पंक्तिबद्ध हैं.. वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड की चाक चौबंद व्यवस्था.. प्रसाद–फूल–चुनरी लिये, अब प्रतीक्षा कठिन हो रही है.. लगभग तेरह किलोमीटर चल आए, पर ये कुछ कदम कब नपेंगे?? ओह माता रानी, बुला लीजिए ना अब..
लाइन आगे बढ़ी..जोर का जयकारा लगा.. बोल सांचे दरबार की..जय!!!!! ठंडी गहरी गुफा.. बाईं ओर तीन पिंडियां विराजमान हैं.. स्वर्ण मुकुट, और आभूषण सजे हैं इन पर .. गोटे–जरी के लाल वस्त्र और पीछे घुंघरू–मोती लगा सुंदर छत्र.. आंखें ठहर गईं.. स्तब्ध.. निःशब्द...जयकार लगाने तक की समझ भी जाती रही..ना कुछ मांगा जा रहा, ना कुछ और विचार मन में आ रहे.. चेतना शून्य जैसी स्थिति है.. पर आंखें भरपूर जागृत.. सामने के इस दृश्य सौभाग्य को जनम भर के लिए बांध लेना है अपने अन्दर ...इस पल में सिर्फ मैं और मेरी करुणामयी...केवल उनकी कृपा पर अभिभूत.. ओह..रोमांच, भाव–विह्वलता, आंसू सब एक साथ... पण्डित जी कहते नहीं, तो जाने कितनी देर जड़ रहते वहां... इसी सम्मोहन में बंधे–बंधे भवन से बाहर आ गए.. पता नहीं किस क्षण में सूखे सेब, मुरमुरे, सूखे मेवे, मिश्री और सिक्के का प्रसाद भी मिला था भीतर..
रत्नाकर सागर की कन्या त्रिकुटा ने, तप हेतू इस पर्वत को चुना... उन्ही के नाम से यह त्रिकुटा पर्वत कहलाने लगा.. कन्या की श्री राम में अगाध भक्ति थी.. इसी से कालांतर में स्वयं वैष्णवी नाम से पुकारी जाने लगीं... अपने अनन्य भक्त श्रीधर पण्डित को स्वप्न दर्शन दिए.. भंडारे करवाने की आज्ञा भी दी, और निर्धन पण्डित की धन–धान्य से सहायता भी की.. नवरात्र में भंडारों का चलन तब से ही प्रारम्भ हुआ माना जाता है.. पूरे नगर के साथ, बाल–रूप में बटुक हनुमान आए जीमने को, और मां की कन्या–सखियां आईं मां के साथ .. तभी कंजकें पूजी जाती हैं, नवरातों में... अपने तप में विघ्न न पड़े, इसलिए मां तीन पिंडियों में जा समाईं.. वही पिंडियाँ अब साक्षात महाकाली, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में विराजमान हैं गुफा में.. कल्याणी की कृपा अविरल है भक्तों पर..
करुणा की अथाह सागर हैं शेरांवाली माता.. जिस भैरव का वध किया, उस भैरव ने सर कटने के बाद, प्राण त्यागने से पहले मां से क्षमा, और दया की विनती की.. वात्सल्यमूर्ति मां ने न केवल क्षमा किया, अपितु वरदान भी दिया कि "जा..आज से मेरे दर्शन को आने वाले भक्त जब तक तेरी हाजिरी न लगाएं, मेरा दर्शन पूरा नहीं माना जायेगा .." वो ऐसे ही मां नहीं कहलातीं हैं, भूल करने पर भैरव को दण्ड भी दिया, और क्षमा–प्रायश्चित पर उदार स्नेह से वरदान भी..
आज हमारी मनोकामना पूरी हुई.. आनन्द में भरे हम नीचे उतरने लगे.. अब थोड़ी थकान, और पैरों में दर्द का अनुभव होने लगा है..रास्ते में बहुत से मालिश वाले और आधुनिक मसाज कुर्सियां थीं.. पैरों की ऐसी राहत भरी मालिश कि स्फूर्ति वापस मिल गई.. नीचे टैक्सी वाले शरण भईया भी झटपट दर्शन कर हमसे पहले उतर आए हैं..
वैष्णोदेवी यात्रा के बारे में बहुतों से सुना था...पर कितना भी कहा सुना जाए..किसी का कितना ही बड़ा शब्द–वैभव हो.. इस आनन्द को किसी प्रकार का शब्द पूरी तरह से नहीं व्यक्त नहीं कर सकता.. माता रानी इस अलौकिक दिव्य अनुभूति को ,अपने हर भक्त को प्रदान करें.. मेरी यही प्रार्थना है.. हर मन से निकला जयकारा, साक्षात जगदम्बा तक जरूर पहुंचेगा... जरूर पहुंचेगा..
बोल सांचे दरबार की... जय!!

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