धान संग्रहण केंद्र जहां ना बाउंड्रीवाल, ना चबूतरा, बारिश में भी धान जमीन पर ही पड़ा रहता है

बरबसपुर: डबराभाट धान खरीदी केंद्र का प्रारंभ हो चुका है, इसके साथ ही आने वाले दिनों में संग्रहण केंद्र डबराभाट में धान संग्रहित किया जाएगा। संग्रहित किए गए धान को जमीन पर रखा जाएगा। क्योंकि धान संग्रहण केंद्र डबराभाट में ना तो चबूतरा निर्माण हो पाया है और ना ही बाउंड्रीवाल विकासखंड कवर्धा के अंतर्गत ग्राम पंचायत डबरा भाट धान संग्रहण केंद्र की क्षमता ढाई से 3 लाख क्विंटल है जहां 30 से 32 धान खरीदी केंद्रों से धान संग्रहित किया जाता है। लेकिन यहां सुविधा के नाम पर ना तो चबूतरा है और न ही बाउंड्रीवाल है।
संग्रहित किए जाने वाले धानों की सुरक्षा के लिए चबूतरा व बाउंड्रीवाल होना था। लाखों क्विंटल धान खुले आसमान के नीचे असुरक्षित रखे जाते हैं सबसे ज्यादा समस्या बारिश होने पर होता है, बारिश के बाद परिसर दलदल में तब्दील हो जाता है वही चबूतरा के अभाव में पानी धान में लाट में घुसने लगता है ऐसे में कई क्विंटल धान अंकुरित हो जाते हैं। इससे शासन को लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है।
संग्रहण केंद्रों में धान के छल्ली भीगने से बचाने के लिए प्रशासन ऊपर से कैपकवर और नीचे दो लेयर की भूसे में भरी बोरी डालकर अपनी जिम्मेदारी निभा देते हैं, लेकिन चबूतरे के अभाव में बारिश का पानी नीचे से पूरे लाट में घुस जाता है इसके बावजूद शासन-प्रशासन डबराभाट स्थित संग्रहण केंद्र में चबूतरा निर्माण को लेकर ध्यान नहीं दे रहा है। पिछले साल 239 लाख क्विंटल धान का संग्रहण पिछले सत्र में 30 से 32 धान खरीदी केंद्रों में से 239 लाख क्विंटल धान का संग्रहण किया गया था जो बिना चबूतरे के ही जमीन पर रखा गया था, इसी बीच लगातार बारिश भी होती रही, हालांकि बारिश के पानी से धान को बचाने के लिए बोरी में भूसा भरकर धान के कट्टों को रखा गया वहीं कैपकवर से ढका गया था। इसके बाद भी नीचे का कुछ हिस्सा भीग गए थे, इसके चलते आनन-फानन में संग्रहण केंद्र में धान का उठाव शुरू किया गया अब फिर से अव्यवस्था के बीच धान का संग्रहण किया जाएगा।
डबराभाट संग्रहण केंद्र के प्रभारी सुबोध शर्मा ने बताया कि पिछले बार समस्या को देखते हुए पेयजल व बाउंड्रीवाल निर्माण का मांग किया गया था। लेकिन अब तक कोई पहल नहीं किया गया वैसे तो संग्रहण केंद्र में कम से कम 150 से 200 चबूतरा निर्माण कराया जाना चाहिए लेकिन मांग के बाद भी पेयजल और बाउंड्रीवाल का निर्माण नहीं हो पाया। इसके चलते चबूतरा निर्माण की मांग भी किया गया, जबकि होने वाले नुकसान से शासन प्रशासन भी पूरी तरह वाकिफ है।
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