एक गांव ऐसा भी : दंड के तौर पर भुगतनी पड़ती है पेड़ लगाने की सजा...पेड़ काटने पर झेलना पड़ता है ग्रामीणों का आक्रोश

एक गांव ऐसा भी : दंड के तौर पर भुगतनी पड़ती है पेड़ लगाने की सजा...पेड़ काटने पर झेलना पड़ता है ग्रामीणों का आक्रोश
X
क्या आपने कभी ऐसा गांव देखा है, जहां पर अपराध करने के बाद पेड़ लगाने की सजा मिलती है। अगर नहीं तो आज हम आपको ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं...पढ़िए पूरी खबर

कुश अग्रवाल/पलारी- क्या आपने कभी ऐसा गांव देखा है, जहां पर अपराध करने के बाद पेड़ लगाने की सजा मिलती है। अगर नहीं तो आज हम आपको ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर किसी भी तरह के अपराध करने पर समाज और पंचायत के द्वारा आर्थिक या शारीरिक दंड नहीं, बल्कि पेड़ लगाने की सजा दी जाती है। यहां पर सजा सिर्फ पेड़ लगाना ही नही, बल्कि जब तक पेड़ बडा न हो जाए, तब तक उसकी देखभाल भी करनी होती है। यह गांव बलौदा बाजार-भाटापारा जिले में पलारी तहसील स्थित ग्राम "देवसुंद्रा" है। इस गांव में लोगों को पर्यावरण को लेकर जागरूक करने के लिए इस तरह की सजा दी जाती है।

सालों से चली आ रही परंपरा...

बता दें, ग्राम "देवसुंद्रा" में कई सालों से दोषियों को सामाजिक दंड देने के लिए पेड़ लगवाया जाता है। यानी यहां पर पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को चलाया जा रहा है। इसी वजह से आज यह गांव पेड़ों का स्वर्ग कहलाता है। शहरों में जो ताजी हवा नहीं मिलती, उसका आनंद भी आप इस गांव में ले सकते है। क्योंकि यहां पर अपराधी को सजा के तौर पर पेड़ लगाने का काम मिलता है। दरअसल, इस गांव में पहुंचते ही मार्ग के दोनों छोर से लेकर गांव की गलियों और मैदानों में आम, नीम, बरगद, पीपल औक बाकी ओषधि युक्त वृक्ष लगे हुए हैं।

मालगुजारी शासन के वक्त से लगाए जा रहे पेड़-पौधे...

ग्रामीण की माने तो मालगुजारी शासन के समय से ही लोगों को पेड़-पौधे लगाने के लिए जागरूक किया जाता रहा है। जानकारी के मुताबिक, यहां पेड़ तो क्या पेड़ की शाखा काटना भी गुनाह है। एक पेड़ काटने पर दस पेड़ लगाने की सजा मिलती है और उस पेड़ की देखभाल भी वही व्यक्ति करता है जो उसे लगाता है। इस गांव के बुजुर्गो की मान्यता है की, गांव में किसी भी प्रकार का रोग ने हो, इसलिए श्मशान घाट के रास्ते में पीपल के कतार का पेंड़ लगाया गया है। क्योंकि पीपल को मोक्ष दायक माना गया है। गांव की हर गली में नीम के वृक्ष लगाए गए है। यही कारण है की करोना जैसी महामारी से यहां के लोग अपना बचवा कर पाए।

पेड़ों के काटने पर ग्रामीणों ने किया विरोध...

इस गांव से जुड़ी सन् 1963 की एक कहनी है, जिसमें बिजली विभाग सुविधा प्रदान करने के लिए सर्वे कर रहा था। यहां पर बिजली के खंबे लगाने के लिए सैंकड़ों वृक्ष काटने की बात कही गई थी। जिसका ग्रामीणों ने पुरजोर विरोध किया था। उस वक्त ग्रामीणों ने कहा था कि, हमें अंधेरे में रहना मंजूर है, लेकिन पेड़ पौधे की कटाई नहीं करने देंगे। जिसके बाद विद्युत विभाग के द्वारा बिना पेड़ काटे ही गांव में खंबे लगाए गए।

पर्यावरण के प्रति गहरी आस्था...

बता दें गांव में पर्यावरण के प्रति गहरी आस्था देखने को मिलती है। लोग आम, जामुन, आदि फलों की चोरी न करे, इसलिए गांव के बालाजी मंदिर के तात्कालीन मुख्तियार स्व रामचरण साहू और मोकरदम स्व सुखरू दास वैष्णव ने ग्रामीणों को एक-एक आम का पेड़ लगाने के लिए जागरूक किया है। उनका कहना है कि, अगर हम आज के यूवाओं की बात करे तो आज की युवा पीढ़ी भी अपने गांव से जुड़ी हुई इस परंपरा को आगे बढ़ाने में पूरा सहयोग करते हैं। यहां का युवा जो गांव के बाहर भी रहकर नौकरी या काम करता है वह गांव आने पर कम से कम 10 वृक्ष जरुर लगाता है। गांव के युवा खाली पड़ी बंजर भूमि पर सैकड़ों पौधे लगाते हैं।

Tags

Next Story