2500 रुपए का धान डेढ़ हजार में बेचेगी सरकार, पहले लॉट में 33 करोड़ का घाटा

रायपुर. छत्तीसगढ़ का अतिशेष धान बेचने के मामले में शुक्रवार को मंत्रिमंडलीय उप समिति की बैठक में फैसला किया गया है कि सरकार 54 हजार मीट्रिक टन धान बेचेगी। धान खरीदी के लिए व्यापारियों ने अलग-अलग लॉट के रेट भी दिए थे। मंत्रिमंडलीय समिति ने धान को 1400 से लेकर 1525 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बेचने का अनुमोदन किया है। इससे पहले सरकार ने यही धान 2500 रुपए प्रति क्विंटल खरीदा है। कम दर पर बेचने से सरकार को 33 करोड़ रुपए का नुकसान संभावित है।
बेहतर रेट पर करेंगे नीलामी : श्री भगत ने बताया कि राज्य सरकार की पूरी कोशिश है कि धान बर्बाद न हो, इसके लिए नीलामी की प्रक्रिया में तेजी ला रहे हैं। इसे लेकर मंत्रिमंडलीय उप समिति की बैठक होती रहेगी और जो बेहतर रेट मिलेंगे, उस पर नीलामी होगी।
बैठक में मंत्री अफसर हुए शामिल
खाद्यमंत्री अमरजीत भगत की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उप समिति की बैठक हुई, जिसमें कृषिमंत्री रविंद्र चौबे, स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, खाद्य विभाग के सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह, एमडी मार्कफेड अंकित आनंद एवं अन्य अधिकारी शामिल हुए। बैठक में खरीफ विपणन वर्ष 2020-21 में समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान की कस्टम मिलिंग, एफसीआई और नान में चावल जमा होने एवं संभावित अतिशेष धान की नीलामी की समीक्षा की गई।
खाद्यमंत्री ने दी यह जानकारी
धान नीलामी के लिए रेट तय करने शुक्रवार को मंत्रिमंडल उप समिति की बैठक हुई। बैठक में समिति के अध्यक्ष खाद्यमंत्री अमरजीत भगत, कृषि मंत्री रविंद्र चौबे, सहकारिता मंत्री डाॅ. प्रेमसाय सिंह टेकाम मौजूद रहे। बैठक के बाद जानकारी देते हुए मंत्री श्री भगत ने बताया कि स्टेट और सेंट्रल कोटे में चावल जमा करने के बाद बाकी साढ़े 20 लाख मीट्रिक टन धान की नीलामी कर रहे हैं। इसको लेकर बीडर्स की तरफ से कई रेट प्राप्त हुए हैं। उन्होंने बताया कि आज की बैठक में लगभग 1400 रुपए प्रति क्विंटल के रेट से 54 हजार टन के 61 लॉट की नीलामी को अनुमोदित किया गया है। इससे राज्य सरकार को 33 करोड़ 34 लाख रुपए की हानि होगी।
किसी हाल में न सड़े धान : रमन
वहीं धान की नीलामी प्रक्रिया पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि सरकार को किसी भी हालत में धान सड़ने नहीं देना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि नीलामी के लिए रेट अच्छे नहीं मिल रहे हैं और न ही कोई ख़रीदार आ रहे हैं।
केंद्र ने बढ़ाई राज्य की मुसीबत
राज्य सरकार को करोड़ों रुपए का घाटा उठाकर भी जो धान बेचना पड़ रहा है, उसके पीछे दरअसल केंद्र व राज्य सरकार के बीच धान-चावल के मामले को लेकर उपजा विवाद है। केंद्र सरकार ने सेंट्रल पूल से 40 लाख मीट्रिक टन चावल लेने की सैद्धांतिक सहमति दी थी, लेकिन बाद में केंद्र ने इसे घटाकर केवल 24 लाख मीट्रिक टन चावल की अनुमति दी है। केंद्र द्वारा कम चावल लिए जाने से राज्य के पास 20 लाख मीट्रिक टन धान बच रहा है। यह धान किसी भी हाल में खपाने के लिए राज्य सरकार को यह फैसला करना पड़ा कि वह अपना धान ई-मार्केट के माध्यम से नीलाम करेगी। नीलमी के दौरान धान की कीमत कम आने के बाद भी सरकार को धान बेचने का फैसला इसलिए करना पड़ रहा है कि अरबों रुपए का धान कुछ महीनों में खराब न हो जाए। लिहाजा सरकार मजबूरी में कम कीमत पर धान बेच रही है।
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