शासन द्वारा शिकार पर प्रतिबंध के बाद पारधी जनजाति के लोगों को नहीं मिला वैकल्पिक व्यवसाय, जीवनयापन हुआ मुश्किल

बालोद: शासन ने पारधी जनजाति के परंपरागत व्यवसाय शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया पर उन्हें जीवकोपार्जन के लिए कोई स्थाई कार्य देने में नाकाम रही है। समाज के लोग छीन के पत्ते से चटाई एवं झाडू बनाने का काम करते हैं, लेकिन उसका भी उन्हें उचित बाजार नहीं मिल पा रहा है, जिससे उन्हें अपनी सामग्री को औने-पौने दाम में बेचना पड़ रहा है। प्रशासन के नियमों के कारण या प्रशासन की योजनाओं का क्रियाव्यन ठीक से नहीं होने के कारण अब तक इनका विकास नहीं हो पाया है। जीवकोपार्जन का जरिया इनसे छीना जा रहा है। शासन द्वारा पारधी जनजाति के विकास और मानव समाज से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद यह जनजाति आज भी पिछड़ा हुआ है।
पारधी जनजाति विभिन्न कलाओं से हैं परिपूर्ण
जिले के विभिन्न ग्रामीण अंचल सहित मालीघोरी में पारधी जनजाति निवासरत है। पारधी जनजाति का मुख्य कार्य चिड़िया पकड़ना है, जिन्हें चिड़ीमार की संज्ञा दी जाती है। जो चिड़िया पकड़ने के लिए विभिन्न प्रकार के आवाज और वस्तुओं का उपयोग करते है। जिनके पास खेती किसानी के लिए पर्याप्त जमीन भी नहीं है जिसके कारण छिंद के पेड़ से प्राप्त टहनी का इस्तेमाल कर झाडू और चटाई बनाने का कार्य करते है। जिन्हे बाजार और ग्रामीण अंचलों में बेचा जाता है। बाजार मे आधुनिक तरीके से निर्मित चटाईयां उपलब्ध है जिसके कारण आज पारधी जनजाति के लोग चटाई बनाने का काम लगभग बंद कर चुके है, जो बना रहे है उन्हे भी उसका उचित मूल्य नही मिल पा रहा है। वर्तमान मे झाडू बनाने का एक कार्य ही उनके पास है लेकिन उसका भी उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है जिसके चलते इन जनजातियों का विकास संभव नहीं हो पा रहा है।
प्रशासन की योजनाओं से वंचित हैं पारधी जनजाति के लोग
प्रशासन की योजनाओं से पारधी जनजाति के लोग आज भी वंचित हैं। उन्हें राशन सामग्री ही उचित ढंग से मिल पा रही है। बाकी अन्य योजनाओं का इन्हें पता ही नहीं है। चेतन पारधी ने बताया कि उनके घर में सरकार की योजना के तहत बिजली कनेक्शन हुआ था। बिजली का बिल पहले कम आता था तो उनके द्वारा भुगतान किया जाता था लेकिन अचानक एक महीने तीन हजार रूपये का बिल आया जिसे भुगतान किया गया वहीं फिर दूसरे महीने भी और चार हजार का बिजली बिल आया जिसके बाद से बिजली का कनेक्शन बंद करवा दिया। तब से आज तक अब फिर अंधेरे में जीवन यापन कर रहे हैं। वहीं रेखा बाई पारधी ने बताया कि रहने के लिए पर्याप्त घर नहीं है। इसके बावजूद प्रशासन द्वारा आज तक आवास नहीं मिल पाया है। पारधी जनजाति के अधिकांश परिवारों का घर मिट्टी का कवेलू वाला है, जो बरसात एवं ठंड मे उन्हे पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नही कर सकता। पारधी जनजाति के लोग किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहे है उन्हे आज भी शासन की योजनाओ का इंतजार है।
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