जब धरती नग़मे गाएगी...वो सुबह कभी तो आएगी

संक्रमण के पहले दौर की तुलना में हमारे योद्धाओं में कई गुना ज्यादा आत्मविश्वास है। वे कई गुना ज्यादा हौसले के साथ लड़ाई लड़ रहे हैं। कोविड-19 ने इस बार हालांकि ज्यादा तेज हमला किया है, लेकिन उस पर पलटवार भी उतनी ही तेजी से हो रहा है। कोविड-19 की दूसरी लहर की अचनाक हुई शुरुआत के कारण हालांकि शुरुआती बढ़त महामारी के पक्ष में नजर आ रही है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछली बार की तरह इस बार भी बहुत जल्द कोविड को पीछे धकेल दिया जाएगा।
हमें यह देखना होगा कि पिछली बार की तुलना में इस बार कोविड-19 हमें ज्यादा नुकसान क्यों पहुंचा पा रहा है। इस बार देखा जा रहा है कि अपने बदले हुए स्वरूप में यह वायरस ज्यादा संक्रामक है, इस बार युवाओं और बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रहा है। हर परिवार में एक से ज्यादा सदस्य इस बार वायरस की चपेट में आ रहे हैं। वायरस की इसी आक्रमकता की वजह से पूरे देश में हालात तेजी से बिगड़े और संसाधनों की किल्लत होने लगी। यह तो तय है कि नयी आवश्यकताओं के अनुरूप शीघ्र ही नये संसाधनों का इंतजाम कर लिया जाएगा, लेकिन तब तक हो रहे नुकसान को टालना हम सबकी जिम्मेदारी है।
सबसे ज्यादा जरूरी है कि परिवार में किसी को संक्रमण ही आशंका होते ही उसे आइसोलेटेड करते हुए टेस्ट कराया जाए ताकि दूसरे सदस्य सुरक्षित रह सकें। जिन सदस्यों की उम्र 45 वर्ष से अधिक है, उनका टीकाकरण करवाया जाए। मास्क का प्रयोग घर के भीतर भी किया जाए। बार-बार हाथों को धोया जाए। उपलब्ध चिकित्सा संसाधनों का लाभ जरूरतमंद लोगों को मिल सके इसके लिए जरूरी है कि अस्पतालों में दाखिले के लिए आपाधापी न मचाई जाए। जिन लोगों का उपचार होम आइसोलेशन में रहते हुए हो सकता है, उन्हें ऐसा ही करना चाहिए। किसी भी दवा की खरीद और उसका उपयोग डाक्टर की सलाह पर ही किया जाना चाहिए, अनावश्यक रूप से की गई खरीदी से भी बाजार में दवाइयों की किल्लत हो सकती है और जरूरतमंद लोग उनसे वंचित हो सकते हैं।
कोरोना से लड़ी जा रही इस दूसरी जंग में संसाधनों के साथ-साथ समझदारी भी एक प्रभावी हथियार साबित हो सकती है। हम लोगों ने पिछली जंग भी इसी समझदारी और एकजुटता के बल पर जीती थी। हालांकि इस समय परिस्थितियां बहुत विकट हैं, लेकिन हम सब मिलकर बहुत जल्द इन पर विजय पा लेंगे। हम सबके लिए एक-एक जान बहुत कीमती है, हमें इस दूसरी लहर के कारण मिले सामुहिक सदमे की स्थिति से शीघ्र ही बाहर आकर महामारी का मुकाबला पूरी ताकत के साथ करना ही होगा। निश्चित ही यह अंधकार छंटेगा और प्रकाश की नयी किरणें फूटेंगी।
साहिर लुधियानवी जी लिखते हैं :
इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा
जब अंबर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
● तारण प्रकाश सिन्हा (IAS), जनसंपर्क आयुक्त, छत्तीसगढ़ शासन
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