Ancient Temple : तीन ओर श्मशान, एक ओर भगवान लक्ष्मी नारायण, बीच में विराजे भूतेश्वर महाकाल

Ancient Temple  : तीन ओर श्मशान, एक ओर भगवान लक्ष्मी नारायण, बीच में विराजे भूतेश्वर महाकाल
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भैरव का अर्थ है भगवान शिव, बस्तर ( Bastar )के हर कोने में दर्शन करने का अवसर श्रद्धालुओं को मिलता है। इसी में एक भगवान भूतेश्वर महाकाल ( One Lord Bhuteshwar Mahakal ) का विशेष स्थान है। प्रवीर वार्ड पनारापारा स्थित रियासतकालीन लक्ष्मीनारायण मन्दिर परिसर में स्थापित भूतेश्वर महाकाल का यह दिव्य मंदिर अलौकिक वातावरण में इंद्रावती नदी ( Indravati river ) के पश्चिम तट पर स्थित है। पढ़िए पूरी खबर...

अनिल सामंत - जगदलपुर। बस्तर ( Bastar )को देव भूमि कहा जाता है, यहां दन्तेश्वरी देवी का वास है तो दूसरी ओर बाबा भैरव भी जगह-जगह विराजे हैं। भैरव का अर्थ है भगवान शिव, बस्तर ( Bastar )के हर कोने में दर्शन करने का अवसर श्रद्धालुओं को मिलता है। इसी में एक भगवान भूतेश्वर महाकाल ( One Lord Bhuteshwar Mahakal ) का विशेष स्थान है। प्रवीर वार्ड पनारापारा स्थित रियासतकालीन लक्ष्मीनारायण मन्दिर परिसर में स्थापित भूतेश्वर महाकाल का यह दिव्य मंदिर अलौकिक वातावरण में इंद्रावती नदी ( Indravati river ) के पश्चिम तट पर स्थित है। शिव को श्मशानवासी कहा जाता है, तो यह मंदिर तीन ओर श्मशान से घिरा है। इस स्थान को पहले बाहर मठ के नाम से जाना जाता था। मंदिर के दक्षिण में राजा मठ (श्मशान) उत्तर में बैकुंठ धाम ( खड़गघाट) पूर्व में इंद्रावती के उस पार डोंगाघाट का श्मशान है। मंदिर के पश्चिम में हरे भरे फूलदार वृक्षों के बीच रियासत कालीन लक्ष्मी नारायण का मंदिर है।


दूर-दूर से दर्शन करने पहुंचते हैं श्रद्धालु

आर्कियोलॉजी सर्वे ( Archaeological Survey )में मंदिर के पास पादुका के निशान एवं 1600 ई. का शिव पार्वती विग्रह भी मिला है। इससे सिद्ध होता है कि यह प्राचीन मंदिर है। विगत पांच वर्षों से इस मंदिर में विधि विधान से वैदिक आचार्यों के द्वारा अभिषेक पूजन हो रहा है, जिससे मंदिर की दिव्य शक्ति और बढ़ने लगी है। तीन वर्ष पूर्व श्रावण में भी अभिषेक के दौरान मंदिर के पुजारी एवं आचार्य पंडित रोमितराज त्रिपाठी के मन में विचार आया कि इतने दिव्यस्थान में क्यों न भगवान का महाकाल रूपी श्रृंगार किया जाए। उन्होंने इसे करके दिखाया जो भी पूजा सामग्री से उससे ही विभिन्न देवी-देवताओं के रूप में भगवान का दिव्य श्रृंगार हर वर्ष श्रावण माह में प्रतिदिन करने लगे। इस बात की जानकारी श्रद्धालुओं में आग की तरह फैली। तब से हर वर्ष श्रावण मास में भगवान भूतेश्वर का अलग-अलग रूपों में श्रृंगार किया जाने लगा।

इन्द्रावती इस स्थल में बनती गंगा नदी

इस मंदिर के इन्द्रावती तट में नदी उत्तर की ओर बहती है। मान्यता है कि नदी जब उत्तर दिशा की ओर बहने लगी तो मां गंगा नदी के रूप में बदल जाती है। आचार्य पंडित रोमितराज त्रिपाठी ने इसकी पुष्टि करते बताया कि इसलिए जगदलपुर वासी इसे गंगा नदी के रूप में पूजते है। इस घाट में पिछले 3 वर्षों से यहां गंगा दशहरा पर्व में गंगा महाआरती किया जाता है।


चबूतरे में पूजे जाते थे

भगवान भूतेश्वर वर्षो से सामान्य चबूतरे में स्थापित थे। सन् 1996 में चबूतरे से सटे विशाल बरगद का स्वतः गिरने से चबूतरा क्षतिग्रस्त हुआ। 1997 में मंदिर का पुर्निर्माण किया गया। सन 2000 में मन्दिर का जीर्णोद्धार किया गया। जब से मंदिर प्रचलन में आया।

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दूसरे राज्यों से भी आते हैं शिवभक्त

हर वर्ष श्रावण में उज्जैन महाकाल के तर्ज पर प्रतिदिन भगवान का अलौकिक दिव्य मनमोहक श्रृंगार होने की खबर सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ने लगी कि पास के ही नहीं, वरन राज्य के बाहर से भी लोग इसके दर्शन के लिए आने लगे । विगत वर्ष से उज्जैन के महाकाल की तरह ही यहां भी भगवान भूतेश्वर की पालकी यात्रा निकाली गई। जो श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। इस वर्ष भी 14 अगस्त को यहां पालकी यात्रा गाजे बाजे के साथ निकाली जाएगी।

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