'सुपर 30' की तर्ज पर बिलासपुर की बेटी ने की शुरुआत, गरीब बच्चों को सिखाती हैं इंग्लिश

बिलासपुर। 'सुपर 30' जी हां ये वही फ़िल्म है, जिसमे ऋतिक रोशन 'आनंद कुमार' के मुख्य किरदार में नजर आए थे। यह फ़िल्म एक सच्ची कहानी पर आधारित है। अब आप सोच रहे होंगे कि ये बात आज हम आपको क्यों बता रहे हैं। दरअसल बिलासपुर की एक बेटी "आनंद" की तरह ही गरीब बच्चों को IAS-IPS / IIT-IIM जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों तक उड़ाने भरने के न सिर्फ सपने दिखा रही है, बल्कि उन्हें मदद भी कर रही है। इस बेटी ने बच्चों को शिक्षा देने के लिए अपना सभी वैभव त्याग दिया और आज झुग्गी झोपड़ियों के जमीन में बैठकर शिक्षा बांट कर उज्जवल भविष्य का अलख जगा रही है।
कॉलेज छात्रा आँचल तेजानी जैन केन्द्रीय गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी में MSW की पढ़ाई कर रही है, जो कि स्लम एरिया के मासूम बच्चों और शाला त्यागी बच्चों को अपनी पाठशाला में शिक्षा दे रही है! इस संबंध में छात्रा आँचल तेजानी जैन ने बताया कि उनके पाठशाला में शुरू-शुरू में 35 से 40 बच्चें पढ़ने आया करते थे, लेकिन अब 30 बच्चे ही वर्तमान में मेरे पाठशाला में पढ़ने आ रहें है, उनके पढ़ने की प्रतिभा और जूनून को देखकर मैं एक दिन भी क्लास मिस नहीं करना चाहती हूँ! अब ये छात्र-छात्राएं भविष्य में IIT-IIM व IPS-IAS बनने का सपना देख रहें है। आँचल ने बताया है कि जब भी मैं स्लम एरिया के बच्चों को खेल-खेलते देखती थी और लॉकडाउन में उनके लिए खाने पीने के सामग्री के साथ-साथ उपहार लेकर आती थी, उनके चेहरे की मुस्कान और ख़ुशी से मैं अभिभोर हो जाती थी, फिर मुझे लगा कि बच्चों की गरीबी के चलते कामयाब होने के सपने टूट रहें है फिर मैंने बच्चों से इंग्लिश बोलने की इच्छा पूछी तो उन्होंने एक स्वर में हाँ कह दिया। तब से यहाँ आने लगी और इन मासूम बच्चों में अंग्रेजी बोलने की लालसा और पढ़ने का जूनून भरपूर दिखने लगा है। मैं अपने पूरे दिन के दिनचर्या में 2 से 3 घंटे का समय मासूम बच्चों के बीच बिताकर पढ़ाई कराती हूँ, इससे मुझे और बच्चों को अच्छा लगता है, और सभी बच्चे और उनके माता पिता भी मुझे "आँचल दीदी" कहकर पुकारने लगे हैं।
छात्रा आंचल तेजानी जैन ने बताया कि मुझे फिल्म देखना बहुत पसंद है, इसी तरह फिल्म अभिनेता ऋतिक रौशन का हालही में "सुपर 30" मूवी आया था, जिसके मुख्य किरदार में ऋतिक रौशन ने "आनंद कुमार" का अभिनय किया है। एक सत्य घटना पर आधारित फिल्म को मैंने भी हकीकत में बदलने की कोशिश की और जिस तरह आनंद कुमार ने बड़े घरानों के बच्चे और हाई-फाई कोचिंग क्लास से मोटी रकम लेकर शिक्षा देना पसंद नहीं करते थे। उनका उद्देश्य शुरू से एक ही था कि "राजा का बेटा ही राजा नहीं होगा, बल्कि राजा वो बनेगा जो उसका हक़दार होगा.." तो इस लाइन को मैंने भी अपने जीवन में आत्मसाध कर लिया और शिक्षा के माध्यम से स्लम एरिया के गरीब और मासूम बच्चों के बीच आ पहुंची। अब मेरे भी पाठशाला में "सुपर 30" फिल्म की तरह 30 बच्चे ही अध्ययनरत हैं। बिलासपुर हेमू नगर के स्लम एरिया के मेरे 30 छात्र-छात्राएं भी किसी "सुपर 30 से कम नहीं है..।" यही वजह है कि मैं उनके सपनो में अपनी ख़ुशी महसूस करती हूँ... ।
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