पश्चिम बंगाल की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में लड़ेगी भाजपा, अगले चुनाव में 90 फीसदी नए चेहरे

रायपुर (हाेली समाचार). भाजपा का राष्ट्रीय संगठन छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में इस बार 90 फीसदी सीटों पर नए चेहरों पर दांव खेलने की रणनीति पर अभी से काम कर रहा है। वर्तमान में जो 14 विधायक हैं, उसमें से भी ज्यादातर को वापस मैदान में उतारे जाने की संभावना कम है। भाजपा ने पिछली बार लोकसभा चुनाव में सारे नए चेहरों पर दांव खेला था। ऐसे में भाजपा के हाथ 9 सीटें लगीं थीं। ठीक उसी तर्ज पर इस बार मिशन-2023 में सफलता पाने की तैयारी की जा रही है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ में आगामी चुनाव को पश्चिम बंगाल की तर्ज पर लड़ेगी।
केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया है कि पश्चिम बंगाल का चुनाव समाप्त होने के तुरंत बाद छत्तीसगढ़ में संगठन सक्रिय हो जाएगा और पूरी ताकत से प्रदेश में माहौल बनाया जाएगा। केंद्रीय नेताओं को भी छत्तीसगढ़ में नई जिम्मेदारियां सौंपी जाएंगी और प्रदेश संगठन को कसा जाएगा। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 15 साल तक सत्ता संभालने के बाद भाजपा के हाथ से पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी करारी हार का सामना करना पड़ा और सत्ता चली गई। 90 में से महज 15 सीटों पर ही भाजपा को सफलता मिली। भाजपा की इस हार के पीछे का कारण क्या रहा है, इस पर लगातार मंथन हुआ है। अब भाजपा ने चुनाव के तीन साल पहले ही इसको लेकर रणनीति तैयार कर ली है। नई रणनीति के तहत भाजपा के राष्ट्रीय संगठन ने तय कर लिया है कि अगर सत्ता में वापसी करनी है तो 90 फीसदी नए चेहरों को ही मैदान में उतारना पड़ेगा।
दिग्गजों को संगठन में जिम्मेदारी
सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व ने माना है कि छत्तीसगढ़ में 15 साल तक सरकार रहने की वजह से आधे से दिग्गजों ने संगठन में कब्जा कर दिया है। 15 साल में नए और जुझारू लोगों को सामने आने का मौका नहीं मिला। यही नहीं, नए चेहरों के न आने से मतदाता भी भाजपा पर भरोसा नहीं कर रहे। जिन जिन सीटों पर दिग्गज लोगों का कब्जा है उन्हें संगठन में भूमिका देकर चुनाव में नए चेहरों को उतारा जाएगा।
कार्यकर्ताओं को साधने की रणनीति
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन को इस बात का अंदाज है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता के हाथ से जाने का एक बड़ा कारण जहां कार्यकर्ताओं की नाराजगी रही है, वहीं लगातार पुराने चेहरों को मैदान में उतारना भी रहा है। ऐसे में अब भाजपा ने दोहरी रणनीति तय की है, इसमें जहां एक तरफ कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने की रणनीति बनी है, वहीं नए चेहरों की अभी से तलाश की जा रही है। जो भी टिकट के दावेदार हैं, वे अभी से अपने क्षेत्र में सक्रिय हो जाएंगे और ठीक चुनाव के समय कार्यकर्ता जिनको ज्यादा पसंद करेंगे, उनकाे टिकट मिलने की संभावना ज्यादा रहेगी। कार्यकर्ताओं को वापस पहले की तरह सक्रिय करने के लिए भी अब सभी नेताओं को साफ कह दिया गया है कि उनको कार्यकर्ताओं को पहले महत्व देना है। ऐसे में अब सभी नेता कार्यकर्ताओं पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं।
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