CG Election : मुद्दे गायब, घोषणाओं पर केंद्रित रहा चुनाव

सचिन अग्रहरि - छत्तीसगढ़ की अगली सरकार चुनने के लिए पिछले डेढ़ माह से मची अफरा-तफरी के बीच शुक्रवार को दूसरे चरण की 70 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया पूरी हो गई। छत्तीसगढ़ के चुनाव में इस बार मुद्दे पूरी तरह से गायब दिखाई दिए। पिछली बार की तरह ही पूरा चुनाव घोषणाओं पर आधारित हो गया। यही कारण है कि दोनों ही दलों के बीच पूरे चुनाव अभियान में एक के बाद एक वादों और घोषणाओं का सिलसिला जारी रहा और इन घोषणाओं के कारण ही जमीनी स्तर पर लगातार समीकरण भी बदलते दिखाई दिए। कई सीटों पर यह भी देखा गया कि प्रत्याशी गौण हो गए और घोषणाओं ने उन्हें मुकाबले में ला खड़ा किया। आगामी 3 दिसंबर को जब मतों की गिनती होगी, उससे सरकार की राह तय होगी। साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि आखिर किस दल की घोषणा पर वोटरों ने भरोसा किया है।
कर्जमाफी, महिलाओं को 12- 15 हजार सालाना, रसोई गैस 500 रुपए में, बिजली फ्री, किसानों को धान का एकमुश्त भुगतान और तेंदूपत्ते में बोनस के साथ-साथ कांग्रेस और भाजपा ने ऐसी कई घोषणाएं की हैं, जिसका लाभ हर घर तक पहुंचता जरूर दिखाई दे रहा है, लेकिन दोनों ही दलों ने विकास के मुद्दे से अपनी दूरी रखकर शहरी और ग्रामीण मतदाताओं को यह सोचने के लिए भी मजबूर कर दिया है कि क्या दिनचर्या में बुनियादी सुविधाओं का अब कोई वजूद नहीं रह गया है? दोनों दलों की घोषणाओं ने इस बात का उल्लेख ही नहीं किया कि वे पांच साल में कितनी सड़क बनाएंगे सरकारी स्कूलों की दशा कब और कैसे सुधारी जाएगी? गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं का इजाफा कब तक कर दिया जाएगा? राज्य में औद्योगिक क्रांति लाकर रोजगार के अवसर कब तक मुहैया करा दिए जाएंगे? किन्तु किसी ने भी यह स्पष्ट नहीं किया है कि युवाओं के कौशल विकास और वर्तमान जरूरत के हिसाब से उन्हें कहां और कैसे प्रशिक्षित किया जाएगा। दोनों ही दलों ने धान और किसान को अपने केंद्र में जरूर रखा है, परंतु घोषणा पत्र में इस बात का जिक्र नहीं है कि धान के कटोरे से धान की वह किस्में जो किसी जमाने में इसकी पहचान रही है और अब खत्म हो चुकी है, को पुनजीवित करने के साथ नगदी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वह क्या करने वाली है। जिससे खेती की दशा और किसानों की दिशा बदल सके।
कैसे पूरी होंगी घोषणाएं ?
इसी प्रकार दोनों दलों की कई घोषणाएं लोक-लुभावन जरूर है, किन्तु मौजूदा संसाधनों को देखते हुए उनका पूरा होना संभव दिखाई नहीं दे रहा है। दोनों ही दलों के घोषणा पत्र मतदाताओं को तात्कालिक लाभ जरूर देते दिखाई दे रहे हैं, लेकिन भविष्य में राज्य और लोगों को इसी प्रकार का आउटपुट मिलेगा, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं है।
शराबबंदी से दोनो दलों का तौबा
पिछले चुनाव में कांग्रेस ने महिलाओं को लुभावने के लिए शराबबंदी का वायदा किया था। पूरा कार्यकाल गुजरने के बाद स्थिति यह है कि अब तक शराबबंदी नहीं हो सकी है। वहीं विपक्षी भाजपा इस मसले को लेकर सरकार को लगातार घेरते रही है। वर्तमान घोषणा पत्र में कांग्रेस ने जहां इस वायदे को किनारे कर दिया। वहीं भाजपा ने भी पूरे चुनाव अभियान में मौन साध रखा। घोषणा पत्र जारी होने के बाद जब दोनों के लोग मतदाताओं के पास पहुंचे तो उनके पास यह जवाब नहीं था कि आखिर उन्होंने इस चुनाव में शराबबंदी का वायदा क्यों नहीं किया? यह कहा जा सकता है कि शराबबंदी की घोषणा महज जुमला थी और राजनीति दल यह समझ चुके हैं कि शराबबंदी होने के बाद वह आने वाले दिनों में रेवडी बांट नही पाएंगे।
अचानक मुकाबले में आई भाजपा
पिछले माह तक राज्य में भाजपा की स्थिति बेहद नाजुक थी, लेकिन भाजपा ने जैसे ही अपना घोषणा पत्र जारी किया, उसके साथ ही उनके कार्यकर्ताओं में ऐसा जोश आया कि बूथ स्तर पर इसका असर दिखाई देने लगा। सात नवंबर को हुए पहले चरण के चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को तगड़ी चुनौती दी और आज हुए दूसरे चरण के चुनाव में भी भाजपा ने कांग्रेस के सामने चुनौती खड़ी करते हुए कई सीटों में समीकरण बदल दिए।
जंग में नहीं दिखा तीसरा विकल्प
विधानसभा चुनाव की रणभूमि ने इस बार तीसरा विकल्प कहीं दिखाई नहीं दिया। आम आदमी पार्टी ने काफी जोश खरोश के साथ विस चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. लेकिन ऐन चुनावी प्रचार-प्रसार में वह गायब दिखाई दी। वही हाल क्षेत्रीय दलों का भी रहा। हालांकि कुछ सीटें ऐसी भी दिखाई दे रही है, जहां जोगी कांग्रेस, हमर राज पार्टी, बसपा, गोगया और निदलीय प्रत्याशियों ने दोनों दलों के होश उड़ा दिए हैं।
बागियों ने बिगाड़ा दिग्गजों का खेल
चुनावी जंग में बागियों ने भी इस बार कांग्रेस और भाजपा को तवाड़ी चुनौती दी है। हालांकि कांग्रेस को बागियों से कुछ सीटों पर सीधा नुकसान होता भी दिखाई दे रहा है। वहीं एक दो सीटों पर भाजपा के सामने भी संकट खड़ा हो गया है। बागियों से किस दल को कितना नुकसान हुआ, यह परिणाम आने के बाद ही साफ हो पाएगा।
ज्यादातर सीटें फंसी टक्कर में
चुनाव में इस बार किसी भी दल की कोई लहर दिखाई नहीं दी। 2018 के चुनाव मे मतदान के साथ ही कांग्रेस के पक्ष में लहर दिखाई देने लगी थी, लेकिन इस बार अधिकांश सीटे कांटे की टक्कर में फंसी होने के कारण भाजपा और कांग्रेस के नेता भी जीत को लेकर ज्यादा दम नहीं भर रहे हैं। सीटों पर संघर्ष की स्थिति निर्मित होने से जीत और हार का अंतर काफी कम होगा।
मतदाताओं की खामोशी से उड़े होश
पिछले डेढ़ माह से गांव गांव में पसीना बहा रहे नेताओं को वोटरों की खामोशी ने भी हलाकान कर दिया। मतदाताओं के मन को टटोलने की कोशिशें भी पूरी तरह नाकाम रही। दोनों दलों के नेता भी यह मान रहे है कि वोटर इस बार खामोश है। यह खामोशी किसके पक्ष में जाएगी, यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है।
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