CG Election : हाईप्रोफाइल नांदगांव पर रहेगी प्रदेश की नजर कांग्रेस के सामने सीटें बचाने की बड़ी चुनौती

धन्यकुमार जैन - राजनांदगांव । पांचवी विधानसभा (elections )के लिए अविभाजित राजनांदगांव जिले के छह विधानसभा (assembly)में होने वाले चुनाव की प्रारंभिक तस्वीर साफ हो गई है। हालांकि वास्तविक तस्वीर नाम वापसी के बाद सामने आएगी। कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो सभी जगहों पर कांग्रेस-भाजपा (Congress and BJP)के बीच सीधा मुकाबला होना है। पांच साल पहले हुए विधानसभा चुनाव (assembly elections)में कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत हासिल किया था तो भाजपा और जेसीसी (BJP and JCC)ने एक-एक सीट पर जीत हासिल किया था। छह विस में आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस जीत दर्ज कराते रही है। 80 के दशक में अस्तित्व में आई भाजपा को अपनी जड़े जमाने एक दशक तक संघर्ष करना पड़ा। राज्य में 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा नांदगाव को छोड़कर अन्य में अब तक मजबूत जड़े जमाने में नाकाम रही है। भाजपा की जीत का का खाता 1990 में अंबागढ़ चौकी और राजनांदगांव क्षेत्र में खुला था। यहां से क्रमशः सुरेश ठाकुर और लीलाराम भोजवानी ने जीत हासिल किया था।
खुज्जी : फिर नया प्रयोग
कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले खुज्जी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने एक बार फिर नया प्रयोग करते हुए जिला पंचायत अध्यक्ष गीता साहू को उम्मीदवार बनाया है। वहीं कांग्रेस 2018 में जहां से आगे बढ़ी थी। वहीं जाकर खड़ी हो गई है। इस चुनाव में कांग्रेस ने भोलाराम साहू को बाहर का रास्ता दिखाते हुए छन्नी साहू को प्रत्याशी बनाया था। इस बार कांग्रेस ने श्रीमती साहू को घर बैठाते हुए भोलाराम साहू को मौका दिया है। इस क्षेत्र में भाजपा के रजिंदरपाल सिंह भाटिया के अलावा कोई भी अब तक जीत हासिल नहीं कर सका है।
डोंगरगांव : तीन के बाद विराम
कांग्रेस के दूसरे मजबूत गढ़ डोंगरगाव को फतह करने के लिए भाजपा को पूरे 23 साल तक इंतजार करना पड़ा। 2003 के चुनाव में भाजपा के प्रदीप गांधी ने तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री गीतादेवी सिंह को पराजित किया था। श्री गांधी ने छह महीने के अंदर ही तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए सीट खाली करते हुए त्यागपत्र दे दिया था। 2004 में हुए उप चुनाव में रमन सिंह ने कांग्रेस की श्रीमती सिंह को हराया था। 2008 के चुनाव में भाजपा के खेदूराम साहू निर्वाचित हुए। 2013 से अब तक यह सीट कांग्रेस के कब्जे में है। वर्तमान चुनाव में कांग्रेस ने तीसरी बाद दलेश्वर साहू को उम्मीदवार बनाया है, जिनका मुकाबला भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भरत वर्मा से है।
भाजपा ने बुधवार को पंडरिया विधानसभा भावना बोहरा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। जबकि दो रोज पहले ही कांग्रेस ने यहां से नीलकंठ चन्द्रवंशी को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं बहुजन समाज पार्टी सबसे पहले प्रत्याशी की घोषणा करते हुए इस बार भी आदिवासी समाज से अपने पुराने प्रत्याशी चैतराम राज को मौका दिया है। यहां बताना लाजिमी होगा कि चैतराम राज वहीं प्रत्याशी हैं जिन्होने पिछले चुनाव में करीब 36 हजार से अधिक वोट प्राप्त किए थे। लेकिन यह स्थिति तब निर्मित हुई थी जब बहुजन समाज पार्टी और जोगी कांग्रेस ने पिछला चुनाव आपसी सहमति से लड़ा था। लेकिन इस बार जोगी कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी से अलग प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है। ऐसे में क्या बहुजन समाज पार्टी के चैतराम राज पुनः अपना प्रदर्शन दोहरा पाएंगे यह बड़ा सवाल है।
कवर्धा और पंडरिया का हाल
कवर्धा विधानसभा का चुनावीरण प्रमुख राजैनिक दलों के रणवीरों से सजकर तैयार हो चुका है। यहां से ससत्ता रूढ़ दल कांग्रेस ने मौजूदा विधायक व मंत्री मो. अकबर को चुनाव मैदान में उतारा है तो भाजपा ने जातिय समीकरण से हटकर सामान्य वर्ग के विजय शर्मा पर भरोसा जताया है। वैसे तो कवर्धा विधानसभा में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने स. लोहारा रियासत के राजा खड्गराज सिंह को कवर्धा विधानसभा से अप प्रत्याशी बनाकर त्रिकोणिय मुकाबले की स्थिति निर्मित कर दी है। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा के लिए विधानसभा का सफर उतना आसान नहीं है जितना की समझा जा रहा है। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी राजा खड्गराज सिंह आदिवासी समाज से आते हैं और पूर्व में भाजपा समर्पित नगर पंचायत स. लोहारा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
नंदगाव में बना रिकार्ड
अविभाजित जिले में राजनांदगांव एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां भाजपा अब तक पांच बार जीत हासिल कर चुकी है। किशोरीलाल शुक्ला के बाद डॉ. रमन सिंह दूसरे ऐसे नेता हैं जो तीन बार जीतने में सफल रहे। भाजपा के लीलाराम भोजवानी ने 90 और 98 में जीत हासिल किया था। 2008 के बाद से अब तक डॉ. रमन सिंह यहां का नेतृत्व कर रहे हैं। हाई प्रोफ़ाइल सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के खिलाफ कांग्रेस ने ओबीसी कार्ड खेलते हुए खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन को मैदान में उतारा है।
मोहला मानपुर
पूर्व राजा- पूर्व अफसर आमने-सामने अजजा वर्ग के आरक्षित अबागढ़ चौकी विधानसभा के विलोपत होने के बाद अस्तित्व में आई सीट पर अब तक हुए तीन चुनाव में कांग्रेस ही जीत दर्ज कराते आई है। इस बार कांग्रेस ने संसदीय सचिव इंद्रशाह मंडावी को दोबारा मैदान में उतारा है तो भाजपा ने 15 साल से राजनीतिक वनवास भोग रहे पूर्व विधायक संजीव शाह को प्रत्याशी बनाया है। श्री शाह 1998 और 2003 में अंबागढ़ चौकी क्षेत्र से जीत हासिल कर चुके हैं।
खैरागढ़
अब भी बड़ी चुनौत खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र भाजपा के लिए अब भी चुनौती बना हुआ है। भाजपा को इस सीट पर पहली जीत 2007 में हुए उप चुनाव में तब मिली थी. जब देवव्रत सिंह ने सांसद निर्वाचित होने के बाद त्यागपत्र दिया था। 2018 के चुनाव में जनता कांग्रेस जे के देवव्रत सिंह त्रिकोणीय मुकाबले में निर्वाचित हुए थे। श्री सिंह के निधन के बाद हुए उप चुनाव में कांग्रेस की यशोदा वर्मा ने जीत हासिल किया था। इस बार विधायक यशोदा वर्मा का मुकाबला भाजपा के हेवी वेट नेता जिला पंचायत उपाध्यक्ष विक्रांत सिंह से है।
डोंगरगढ़ विस में सीधा मुकाबला
अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित डोंगरगढ़ विधानसभा सीट पर 77 और 2003 के चुनाव में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। यहां 2003, 2008 और 2013 के चुनाव में भाजपा के क्रमशः विनोद खांडेकर, रामजी भारती और सरोजनी बंजारे को जीत मिली थी। बीते चुनाव में कांग्रेस के भुनेश्वर बघेल ने रिकार्ड 35 हजार 418 मतों के अंतर से तत्कालीन विधायक श्रीमती बंजारे को परस्त किया था। भारी भरकम मतों से जीत हासिल करने वाले श्री बघेल को कांग्रेस ने बाहर का रास्ता दिखाते पूर्व मंत्री टुम्मनलाल की नातिन और जिला पंचायत सदस्य हर्षिता स्वामी बघेल को मैदान में उतारा है। उनका मुकाबला पूर्व विधायक विनोद खांडेकर से है।
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