CG Election : कवर्धा में त्रिकोणीय मुकाबला... खैरागढ़ और डोंगरगांव विस में जातिवाद के बीच फंसा पेंच

सत्यम शर्मा - राजनांदगांव। राजनांदगांव जिले (Rajnandgaon district) की चार विधानसभा सीटों में शामिल डोंगरगांव (Dongargaon) विस में इस बार कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। भले ही पुराने रिकार्ड के अनुसार यह सीट कांग्रेस (Congress)का गढ़ रही है, जहां अब तक विधानसभा (Assembly)के केवल दो आम चुनाव (elections)में ही भाजपा (BJP)जीत हासिल कर पाई है। लेकिन इस बार नजारा बदला हुआ है, साहू और लोधी समाज (Lodhi communities)से उतारे गए प्रत्याशियों (candidates) के बीच जहां जातिवाद एक बड़ा फैक्टर बन रहा है। वहीं आम जन के मतो में भी विभाजन देखने को मिल रहा है। यहाँ इस बार भी कांग्रेस ने पिछले एक दशक से इस सीट से विधायक दलेश्वर साहू को मैदान में उतारा है, वहीं भाजपा ने लोधी समाज से आने वाले पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रहे भरत वर्मा पर दांव लगाया है।
चुनावी दौर में वादे भी बहुत किए जा रहें है, करीबन दो लाख मतदाताओं वाले इस विधानसभा में किसानों की संख्या निर्णायक साबित होती रही है। यहीं कारण है कि किसानों से जुड़े मुद्दे इस विस में काफी महत्वपूर्ण माने जाते है। हालांकि विस के अधिकांश इलाकों में छोटे किसान ही देखने को मिलते है, इनमें भी बहुत से ऐसे है जो खेती के लिए सिंचाई की दिक्कत से जूझते है।ऐसे में दोनों ही नेता किसान वर्ग से जुड़े हुए है, ऐसे में दोनो की प्रति किसानों का रुझान बंटा हुआ नजर आ रहा है। वहीं प्रदेशव्यापी घोषणाओं का जिक्र किया जाए तो भी कांग्रेस के कर्जमाफी के सामने भाजपा का महिलाओं को सालाना 12 हजार रुपए देने का वादा बराबरी पर खड़ा नजर आता है। जिन किसानों को कर्जमाफी से फायदा होने वाला है, उनके घरों में भी महिलाएं है। जिनको हर महिने 1 हजार रुपए मिलेगा। यहीं कारण है कि कुछ दिनों पहले तक जहां ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का जनाधार मजबूत नजर आ रहा था, वहीं अब इसमें भी बहुत हद तक विभाजन होता नजर आ रहा है। शहर में यह कहा जा सकता है कि भाजपा के घोषणापत्र का जोर कांग्रेस के वादों से अधिक दिखाई पड़ रहा है।
बड़े किसान कांग्रेस और छोटे किसानों का भाजपा की तरफ रुझान ?
डोंगरगांव में भी बड़ी संख्या में किसान धान को समर्थन मूल्य पर सरकार को बेचते भी है। ऐसे में किसानो से जुड़ी दोनों दलो की मिलेगा। हालांकि कांग्रेस के कर्ज माफी जैसे घोषणाओ का असर भी मतदान में देखने को वादो का असर बड़े किसानों में तो है, लेकिन छोटे किसान पर यह अधिक फर्क नहीं डाल पा रहा है। वहीं भाजपा द्वारा इस बार दो साल का बोनस मिलाकर प्रति क्विंटल 3750 और अगले साल से 3100 में प्रति क्विंटल धान खरीदी का वादा छोटे किसानों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
शराबबंदी, आवास योजना को लेकर ग्रामीणों में नाराजगी
डोंगरगांव विधानसभा में धान के अलावा शराब बंदी को लेकर लोगों में नाराजगी दिखाई दे रही है। पिछले चुनाव में शराब बंदी का वादा करने वाली कांग्रेस के 5 साल कार्यकाल के बाद शराब बंदी नहीं होने से महिलाएं नाराज दिखी, वहीं हाल ही में भाजपा द्वारा जारी किए गए घोषणा पत्र में भी शराब बंदी का मुद्दा नहीं होने से उनकी भाजपा के खिलाफ नाराजगी दिखी। ऐसे ही आवास को लेकर भी ग्रामीणों में असंतोष की स्थिति नजर आई। हालांकि आत्मानंद, गोबर खरीदी और बिजली बिल माफ योजना को लेकर ग्रामीणों ने भूपेश सरकार को सराहा है। ऐसे में इस चुनाव में दोनों ही दलों के बीच रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है। हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जीत-हार का अंतर नजदीकी मतों से तय होगा ।
कांग्रेस को एंटी इनकंबेंसी और भाजपा में नया चेहरा चुनौती
इस विधानसभा सीट से पिछले एक दशक से | कांग्रेस के ही दलेश्वर साहू विधायक है, ऐसे में इस बार उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी भी नजर आ रही है। हालांकि विरोध लहर को शांत करने और लोगों को मनाने के लिए दलेश्वर लगातार दौरा कर रहें है। इधर भाजपा द्वारा उतारे गए भरत वर्मा पहली बार चुनावी मैदान में है, मतदान से महज 25 दिन पहले ही उनके नाम की घोषणा हुई। उन्हे भीतरघात से निपटना भी पड़ सकता है।
विक्रांत की लोकप्रियता से यशोदा के कार्यकाल का मुकाबला
चैतेंद्र तिवारी - खैरागढ़। दो लाख से अधिक मतदाताओ वाले विधानसभा मे किसी भी पार्टी के पक्ष मे तस्वीर साफ नजर नहीं आ रही है। यहाँ चुनाव मे 11 प्रत्याशी ताल ठोक रहे है लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस-भाजपा के बीच ही नजर आ रहा है। 2003 के चुनाव में लोधी समाज की जोरदार उपस्थिति को देखते हुए 2007 के उप चुनाव में महल से हल टकराएगा के नारे के साथ भाजपा ने पहली बार जीत का स्वाद चखा। उसके बाद के लगभग सारे चुनावो में दोनो पार्टियो ने इसी वर्ग को तरजीह दी लेकिन पांच चुनाव मे दो बार जीत और तीन बार लगातार हार बाद भाजपा ने बदलाव करते हुए सामान्य वर्ग से प्रत्याशी विक्रांत सिंह को चुनावी रण मे उतारा है। अभाविप से छात्र राजनीति की शुरूआत करने वाले विक्रांत सिंह दो बार नपं, एक बार नपा, एक बार जनपद और अभी जिपं सदस्य का चुनाव जीतकर जिपं उपाध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज है लगभग 19 सालो से राजनीति में सक्रिय विक्रांत सिंह कांग्रेस प्रत्याशी चयन पहले तक काफी आगे चल रहे थे लेकिन डेढ़ साल की विधायक यशोदा वर्मा के दुबारा मैदान में उतरने और बीते सप्ताह कर्ज माफी की सीएम की घोषणा बाद से मुकाबला टफ हो गया है।
चुनाव प्रबंधन करेगा असर
इस बीच पता चला है कि लोधी समाज भी अब नही तो कभी नही की बात के साथ अपनी एकता का एहसास दिलाने सामाजिक स्तर पर जर्बदस्त लामबंदी | कर रहा है। इससे पार निकलना भाजपा के लिए काफी बड़ी चुनौती है लेकिन चुनाव प्रबंधन मे कांग्रेस से इक्कीस साबित हो रहे भाजपा के पास अभी तक स्पष्ट घोषणा पत्र का अभाव है लेकिन बेहतर चुनाव प्रबंधन के सहारे भाजपा तीन बार की लगातार हार को भुलाने को कोई अवसर नही छोडना चाहती।
जातिवाद का टूटा मिथक
2007 से दोनो पार्टियो ने जाति आधारित राजनीति को प्राथमिकता दी जिसके चलते प्रत्याशी चयन को लेकर काबिलियत आधार नही रहा हांलाकि बीते आम चुनाव में सामान्य वर्ग के प्रत्याशी देवव्रत सिंह ने नए निशान और नई पार्टी से चुनाव जीतकर काफी हद तक इस मिथक को तोड़ने मे सफल हुए और भाजपा ने इसे लपक लिया जबकि कांग्रेस पुरानी परिपाटी का निर्वहन कर रही है।
मुद्दे गायब, सिर्फ आरोप प्रत्यारोप
चुनाव मे मुख्य मुकाबले में आमने सामने दोनो प्रत्याशियो और पार्टी के चुनाव प्रचार में लोकल मुद्दे लगभग गायब है। भाजपा केंद्र सरकार की नीतियो का बखान और प्रदेश सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है वही कांग्रेस भूपेश बघेल के चेहरे और वादों पर भरोसे को लेकर चुनावी रणजीतने की फिराक में है। कांग्रेस द्वारा किए गए वायदो के बाद भाजपा के घोषणा पत्र के आने के बाद अब नए समीकरण तैयार होगें।
मतदान करीब... जीत हार के सभी गणित फेल
महेश मिश्रा - कवर्धा। मतदान की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है जिले की कवर्धा विधानसभा में छिड़ा चुनावी महासंग्राम और भी ज्यादा तेज होते. जा रहा है। कवर्धा विधानसभा में वैसे तो मुख्य मुकाबला सत्ताधारी दल के कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद अकबर तथा प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के प्रत्याशी विजय शर्मा के बीच ही देखने को मिल रहा है। लेकिन इस बार कांग्रेस, भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी तथा जोगी कांग्रेस ने भी अपने उन चेहरों को चुनावीरण में बतौर प्रत्याशी उतारा है जो हमेशा से कवर्धा विधानसभा में सक्रिय रहे हैं। ऐसे में कहीं ना कहीं इन पार्टी प्रत्याशियों को भी क्षेत्र के मतदाताओं से समर्थन मिलने की उम्मीद है और वे भी अपने चुनाव प्रचार में पूरा दमखम व जोर लगा रहे हैं। अगर हम बात कांग्रेस और भाजपा की करें तो इस बार मतदान के हप्तेभर पूर्व तक कवर्धा विधानसभा की स्थिति ऐसी बनी हुई है कि यहां अच्छे से अच्छा राजनैतिक गणितज्ञ भ यह बताने की स्थिति में नहीं है कि कौन किस पर भारी है। दोनो की दलों के प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है और दोनो ही दलों के प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते दिख रहे हैं।
आप की वनांचल में मजबूत पकड़
कवर्धा विस से इस बार जिस ढंग से भाजपा और कांग्रेस ने अपने चुने हुए तथा वजनदार प्रत्याशियों को चुनावीरण में उतारकर मुकाबला कांटे का कर दिया है। आम आदमी पार्टी ने भी विधानसभा क्षेत्र के आदिवासी तथा वनांचल क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखने वाला स. लोहारा रियासत के राजा खड्गराज सिंह को चुनाव मैदान में उतारकर मुकाबला और भी ज्यादा संघर्षशील बना दिया है। राजा खड्गराज कवर्धा | सिंह आदिवासी समाज से ताल्लुख रखते हैं और उनकी विधानसभा क्षेत्र केआदिवासी बाहुल्य वनांचल ग्रामों में अच्छी तथा मजबूत पकड़ है।
प्रचार में झोंकी ताकत
इस बार के चुनाव में बात चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की दोनो ही दलों ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा काफी देरी से की है ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार का समय काफी कम मिला है और अब तो मतदान को महज हफ्तेभर का ही समय शेष रह गया है ।
भ्रष्टाचार और विकास पर जंग
कांग्रेस के प्रत्याशी मो. अकबर अपने चिरपरिचित और पुराने अंदाज में इन दिनो विधानसभा क्षेत्र के गांव-गांव का दौरा कर रहे हैं और क्षेत्र के ग्रामीण कांग्रेसी कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की बैठक लेकर अपनी बातें, विकास कार्य तथा प्रदेश सरकार की योजनाओं तथा घोषणाओं को उनके समक्ष रख रहे हैं। इसी प्रकार भाजपा प्रत्याशी विजय शर्मा और भाजपा के पदाधिकारी भी चुनावी रण में पूरी ताकत झोक रहे हैं। भाजपा मुख्य रूप से सनातन धर्म, के साथ ही कांग्रेस सरकार की वादा खिलाफी, भ्रष्टाचार तथा केन्द्र सरकार की योजनाओं पर कांटा मारी के मुद्दे को लेकर जनता के बीच जाकर चुनाव प्रचार कर रही है।
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