इस आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने छेड़ी ज़िंदगी बचाने की मुहिम, आमजन से भी मदद की अपील

रायपुर। 23 मई 2021, दिन शुक्रवार..समय लगभग 12.33 मिनट...और स्थान- बालको मेडिकल सेंटर, नया रायपुर....एक महिला एक हाथ में कुछ मेडिकल रिपोर्ट्स, दूसरे हाथ में मोबाइल और कंधे पर लेडिस पर्स लेकर बदहवास सी कभी रिसेप्शन पर कुछ बातें कर रही है, तो कभी शीशे के गेट को धक्का देते हुए बाहर निकल फोन अपने कान पर लगा लेती है। माथे पर चिंता की लकीरें तो हरकतों में अजीब सी हड़बड़ाहट है। वह कभी सिक्योरिटी पर्सन से लैब का रास्ता पूछती है, तो कभी किसी से आसपास ठहरने की जगह पूछती है। इस बीच वह वेटिंग बेंच पर बैठी एक बेबस और मायूस महिला मरीज से भी बात करती है। उसे ढाढस बंधाती है, उसका हौसला बढ़ाती है। उसे कहती है, कि दीदी कुछ नही होगा, सब ठीक हो जाएगा। यह सारा नज़ारा देखकर वहां मौजूद लोग भावुक हो जाते हैं। यह दृश्य देखने के बाद कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि इस परिस्थिति का सामना करना आसान नही है।
खौफनाक और तकलीफदेह हालात में भी बिना झुके, बिना बहके, किसी की जान बचाने की हर हाल कोशिश करने वाली यह महिला कोई और नही, लता तिवारी है। वही लता तिवारी जो राजनांदगांव जिले में छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ की जिला अध्यक्ष है। वही लता तिवारी जिसने अपने जिले की कैंसर पीड़ित आंगनबाड़ी कार्यकर्ता राजकुमारी मंडावी को बेहतर उपचार दिलाकर उसे नई जिंदगी देने की मुहिम को अपना एक मकसद बनाकर घर छोड़ राजधानी में तमाम जद्दोजहद कर रही है। असल में, आर्थिक रूप से विपन्न आंगनबाड़ी कार्यकर्ता राजकुमारी मंडावी कैंसर से पीड़ित है, और उपचार करा पाने में असमर्थ भी है। इसकी सूचना परियोजना अध्यक्ष संध्या टांडेकर ने जैसे ही लता को दी, लता ने कोशिशें शुरू कर दी। लता तिवारी ने राजकुमारी मंडावी को मदद दिलाने के लिए पता नही कितने लोगों को कॉल किया, मैसजेस भेज डाले, मरीज का डिटेल दे डाला और बैंक के एकाउंट नम्बर भी, लेकिन मदद करने वालों की संख्या अब भी उंगलियों में गिनने लायक ही है। कुछ ने बड़ा दिल दिखाते हुए मदद भी की, तो ऐसे लोगों की संख्या भी कम नही, जिन्होंने कुशलक्षेम पूछकर, दुआएं देने के अलावा फूटी कौड़ी का कुछ नही किया। इन तमाम कवायदों को अंजाम देते हुए हालात से लड़ रही लता तिवारी कहती हैं कि 'उनके संगठन और सदस्यों का भी यथायोग्य सहयोग मिल रहा है, तो कुछ लोग सिर्फ बातचीत कर रहे हैं। उम्मीद सभी से है, इसलिए बातचीत भी सुनने पड़ते हैं।' मेडिकल रिपोर्ट्स और मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, राजकुमारी की हालत गम्भीर है। अभी टेस्ट पूरा होकर उपचार शुरू ही हुआ है। पूरी तरह स्वस्थ होने में अभी और कितने रुपयों की ज़रूरत है, कोई नही बता पा रहा है। लेकिन लता तिवारी अभी थकी नही है। वह हर सम्भव कोशिश कर रही है कि राजकुमारी की जान बच जाए। आंगनबाड़ीकर्मियों का तबका कमजोर आर्थिक स्थिति का होता है। संगठन तो है, लेकिन बड़ी राशि एकाएक इकट्ठा करने का साम्यर्थ नही है। ऐसे में परोपकारी जनों का ही सहारा है। बाकी समय में आंगनबाड़ी संगठनों का संरक्षक बनने का दावा करने वाले शासकीय कर्मचारी संगठनों के नेताओं का आश्वासन तो मिला है, लेकिन किसी प्रकार के सहयोग का फिलहाल तक तो कोई अता-पता नही है। इन सबके बावजूद, लता तिवारी कहती हैं कि 'जिन्होंने मदद नही की, उनकी दुआएं काफी हैं, हां, यह ज़रूर है कि प्रत्यक्ष मदद करने वाले मदद के साथ हौसला और उम्मीद दे जाते हैं कि दुनिया में ऐसे लोग भी मौजूद हैं, जिनके भीतर की संवेदनाएं मरी नहीं, अभी ज़िंदा है। भले ऐसे लोग कम हैं, लेकिन उन कम लोगों के कारण ही दुनिया में मानवता बची है।' आपको बता दें कि लता तिवारी की कोशिशें, संघर्ष और परिणाम का यह इकलौता किस्सा नही है। इससे पहले भी जब एक आदिवासी आँगनबाड़ी कार्यकर्ता को सामाजिक बहिष्कार का दंश को झेलना पड़ा तो लता तिवारी ही थी जिसने राजनांदगांव से लेकर राजधानी तक दफ्तर-दर-दफ्तर चक्कर लगाकर पीड़ित के हाथ से छीन चुके काम को वापस दिलाया था। किस महिला के घर पर घरेलू जिम्मेदारी नही है, कितनी महिलाएं होंगी जो घरेलू पाबंदियों से मुक्त होंगी, कितनी महिलाएं होंगी जिन्हें दूसरे की जान बचाने की इतनी चिंता होगी, कि वह मुहिम ही छेड़ दी हो। पाबंदियां और मजबूरियां तो लता तिवारी के पास भी होंगी, लेकिन इसके बावजूद संगठनात्मक दायित्यों से भी परे अपने निजी संबंधों के आधार पर राजकुमारी मंडावी की जान बचाने की जद्दोजहद में जुटी वह मर्दानी लता तिवारी निराश नही है। वह मुस्कुराते हुए कहती हैं- 'उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है..! मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है..!!'
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