बाल आश्रम के बच्चों को मूल निवास प्रमाणपत्र बनाने के लिए अब 15 साल के रिकॉड की जरूरत नहीं, जाति प्रमाणपत्र में फंसा पेंच

रायपुर: जिले के बाल आश्रमों में निवासरत बच्चों को मूल निवास प्रमाणपत्र बनवाने में आ रही समस्या अब दूर हो जाएगी। कलेक्टर ने इस आशय की बात कही है, संबंधित आश्रम प्रबंधन को लिखित में देना होगा कि उक्त बच्चा इस आश्रम में 15 साल से निवासरत है, उसके बाद उनका प्रमाणपत्र बनाने किसी अन्य दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी।
बाल आश्रम में रहने वाले ऐसे कई बच्चे हैं, जिनकी उम्र 15 साल से अधिक एवं 18 वर्ष से कम है। इन बच्चों के पास ऐसे कोई भी दस्तावेज नहीं हैं, जिससे यह साबित हो सके कि वे छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। इस कारण इन बच्चों का मूल निवास प्रमाणपत्र भी नहीं बन पा रहा है, जबकि बिना मूल निवास के बच्चों का कोई भविष्य नहीं है। बच्चों को अपना भविष्य बनाने के लिए सबसे पहले मूल निवास प्रमाणपत्र की ही जरूरत पड़ेगी। कलेक्टर डाॅ. सर्वेश्वर भुरे के संज्ञान में जब यह समस्या सामने आई तो उन्होंने बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए शिविर लगाकर बच्चों का मूल निवास प्रमाणपत्र बनाने में आने वाले समस्या दूर करने की बात कही है। कलेक्टर ने यह भी कहा कि कोई रिकॉर्ड नहीं होने की परिस्थिति में आश्रम संस्था को सिर्फ यह लिखकर देना होगा कि बच्चा 15 साल से संबंधित आश्रम में निवासरत है।
हरिभूमि ने शहर में संचालित कुछ बाल आश्रमों की जब पड़ताल की तो पता चला कि उन आश्रम में 15 से 18 वर्ष तक के कम उम्र के कई आश्रितों का अब तक मूल निवास प्रमाणपत्र नहीं बन पाया है। मूल निवास प्रमाणपत्र नहीं बनने का कारण यहींहै कि उनके पास कोई भी ऐसा रिकॉर्ड नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि वे राज्य के निवासी हैं। हालांकि इन बच्चों का मूल निवास प्रमाणपत्र बनाने के लिए आश्रम पदाधिकारी लगातार प्रयास कर रहे हैं, इसके बावजूद बच्चों का मूल निवास प्रमाणपत्र नहीं बन पा रहा था।
केस : 1
बाल आश्रम माना में करीब 4 बच्चे पात्र
शासकीय बाल आश्रम माना में 33 बच्चे निवासरत हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चों के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस कारण इन बच्चों का मूल निवास प्रमाणपत्र भी नहीं बन पा रहा है। इनमें से 4 बच्चे 16 से 18 वर्ष के बीच के हैं और प्रमाणपत्र के लिए पात्र हैं।
केस : 2
कचहरी आश्रम में भी यही समस्या
कचहरी स्थित बाल आश्रम में भी 70 से अधिक बच्चे निवासरत हैं। इनमें कई बच्चों के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। कुछ बच्चे तो बारहवीं कक्षा के विद्यार्थी भी हैं। स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद इन बच्चों को मूल निवास प्रमाणपत्र की सबसे पहले जरूरत पड़ेगी, लेकिन अब तक इन बच्चों के प्रमाण पत्र नहीं बन पाए हैं।
जाति प्रमाणपत्र बनना मुश्किल
शहर में संचालित आश्रमों में रहने वाले ऐसे कई बच्चे हैं, जिन्हें अपना सरनेम और जाति तो पता है, लेकिन उनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। ऐसे बच्चों का जाति प्रमाणपत्र भी नहीं बन पा रहा है। इस कारण उन्हें भविष्य में जातिगत विभिन्न सरकारी योजनाओं से भी वंचित होना पड़ेगा। कलेक्टर ने कहा कि बिना पुराने रिकार्ड के जाति प्रमाणपत्र बनाना मुश्किल है। जाति प्रमाणपत्र के लिए नियम बने हुए हैं, इन नियमों के आधार पर ही जाति प्रमाणपत्र बनाए जाते हैं।
क्यों जरूरी है मूल निवास और जाति प्रमाणपत्र
आज के समय में मूल निवास और जाति प्रमाणपत्र बनवाना बहुत जरूरी है। मूल निवास के आधार पर ही स्कूल, काॅलेज में एडमिशन, छात्रवृत्ति फार्म भरने, पासपोर्ट बनाने, लोन लेने, सरकारी और गैर सरकारी नौकरी के लिए फार्म भरा जा सकता है। इसी प्रकार जाति प्रमाणपत्र के आधार पर ही शासकीय योजनाओं एवं आरक्षण का लाभ मिल पाएगा।
कचहरी बाल आश्रम में 7 को विशेष शिविर
आश्रम के बच्चों के मूल निवास प्रमाणपत्र नहीं बन पा रहे हैं, इस संबंध में कलेक्टोरेट जनदर्शन में आवेदन आए हैं। इन आवेदनों के आधार पर कलेक्टर ने 7 फरवरी को रायपुर तहसील को कचहरी बाल आश्रम में विशेष शिविर लगाकर बच्चों के मूल निवास प्रमाणपत्र बनाने के निर्देश दिए हैं।
प्रमाणपत्र बनाए जाएंगे
बाल आश्रम में रहने वाले बच्चों के मूल निवास प्रमाणपत्र बनाने के लिए 15 साल का रिकार्ड की जरूरत नहीं है। संस्था को लिखकर देना होगा कि बच्चा 15 साल से आश्रम में निवासरत है।
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