Doctor's Day Special : मानवता की सेवा के मिसाल हैं ये 'धरती के भगवान'

जन्म से ही पैर से दिव्यांग श्वेता को जब धीरे-धीरे बड़े होने के बाद पता चला कि वह पैर से दिव्यांग हैं। चल न पाना उनकी मज़बूरी है, तो श्वेता ने अपनी इस कमजोरी को ही ताकत बना लिया। अब यही श्वेता धरती की भगवान डॉक्टर श्वेता बन गयी हैं। श्वेता भले अस्पताल खुद से नही आ-जा पाती। उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य उन्हें रोजाना मनेन्द्रगढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में छोड़ते हैं। अगर ड्यूटी टाइम के अलावा भी कोई मरीज अस्पताल पहुंचकर श्वेता को कॉल करता है तो वो फौरन अस्पताल पहुंच जाती हैं। श्वेता का कहना है कि जब हम भगवान से उम्मीदे रखते हैं तो लोग हमसे भी धरती के भगवान के तौर पर उम्मीदें रखते हैं। यह कहानी छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में मनेन्द्रगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में पदस्थ डॉ. श्वेता केशरवानी की है।
डॉ. श्वेता केशरवानी
बायो लिया तो लगा डॉक्टर बनूं
सिम्स बिलासपुर से एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद श्वेता मनेन्द्रगढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक के पद और अपनी सेवाएं दे रही हैं। श्वेता ने बताया कि जब वह छोटी थीं तो उनका सपना कलेक्टर बनने का था। लेकिन जब 11 वी कक्षा में बायो सब्जेक्ट लेकर पढ़ाई की तो डॉक्टर बनने का सपना मन मे जागा और पहले ही प्रयास में प्री मेडिकल टेस्ट की परीक्षा में अच्छे रैंक हासिल कर वह डॉक्टरी की पढ़ाई करने लग गईं।
अब कलेक्टर बनने का सपना
श्वेता केशरवानी डॉक्टर बनने के बाद अब कलेक्टर बनना चाहती हैं। इसके लिए उन्होंने सीजीपीएससी का प्री भी निकाल लिया है और मेंस एग्जाम की तैयारी कर रही हैं। अस्पताल में लोगों को देखने के दौरान जब भी खाली समय मिलता है, तो श्वेता सीजीपीएससी मेंस एग्जाम की किताबें पढ़ती हैं। कलेक्टर क्यों बनना चाहती हैं? इस सवाल पर श्वेता कहती हैं कि वे कलेक्टर बनकर जिले में स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करना चाहती हैं।
पूरा परिवार को है गर्व
26 वर्षीया श्वेता केशरवानी पर उनके पूरे परिवार को गर्व है। संयुक्त परिवार में रहने वाली श्वेता पर परिवार का हर सदस्य गर्व करता है। श्वेता के पिता गुलाबचंद केशरवानी कपड़े की दुकान चलाते हैं। परिवार के हर बच्चे के लिए श्वेता अब आइडल है।
जहां कराती थी खुद का इलाज अब उसी अस्पताल में कर रहीं इलाज
डॉक्टर श्वेता केशरवानी ने बताया कि जिस अस्पताल में वो कभी इलाज कराने के लिए अपने मम्मी पापा के साथ जाती थीं, आज उसी अस्पताल में मरीजों का इलाज करने से ज्यादा मेरे लिए खुशी की बात और नही हो सकती। श्वेता का कहना है कि जैसे मेरा अच्छे से यहां बचपन मे उपचार होता था, उसी तरह मैं यहां आने वाले हर मरीज का अच्छा और बेहतर इलाज करती हूं।
वे कहती हैं, कि मैं सेवाभाव के इरादे से ही डॉक्टर बनी हूं। अब मेरा सपना कलेक्टर बनकर स्वास्थ्य सुविधा में बेहतर कार्य करना है।
डॉ. प्रियंका जांगड़े
…और इस डॉक्टर ने ऐसे बदल दी अस्पताल की दशा
एक खास किस्सा मुंगेली के जिला अस्पताल और वहां कार्यरत डॉक्टर प्रियंका जांगड़े की भी है। कभी जिस अस्पताल को लोगों ने रेफरल सेंटर मान लिया था, आज उस अस्पताल की दशा और दिशा दोनों में काफी हद तक सुधार हुआ है। मुंगेली जिला 2012 में अस्तित्व में आया, जिसके बाद मुंगेली को 100 बिस्तर वाला जिला अस्पताल की सौगात मिली। लेकिन इस अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सक का अभाव था, जिसकी वजह से यहाँ आमजन को सिर्फ सामान्य सर्दी बुखार का इलाज हुआ करता था और गंभीर मरीजों को बिलासपुर रेफर कर दिया जाता था।
इसकी वजह से लोग जिला अस्पताल जाने की बजाय निजी अस्पताल में जाना मुनासिब समझते थे। इस अस्पताल में स्त्रीरोग विशेषज्ञ नही होने से शायद यह देश का पहला ऐसा जिला अस्पताल होता था, जहाँ से रेफर मरीजों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा जाता था।
लेकिन, 1 अगस्त 2016 को इस अस्पताल को स्त्रीरोग विशेषज्ञ मिलने से एक नए सबेरे की शुरुआत हुई । इसी दिन से इस जिला अस्पताल की दशा और दिशा दोनों को सुधार की शुरुआत भी हो गई।
छत्तीसगढ़ की जांजगीर जिले के अकलतरा के बीएमओ डॉ एस एन जांगड़े और हाईकोर्ट की वकील शशिकला जांगड़े की बिटिया डॉ प्रियंका जांगड़े की मुंगेली के जिला अस्पताल में 1 अगस्त 2016 को पोस्टिंग हुई।
डॉ प्रियंका ने 6 महीना डेंटल करने के बाद जगदलपुर में अपनी पढ़ाई की, जिसके बाद एम्स रायपुर में मेडिसिन विभाग में जूनियर रेसीडेंस रहीं। पापा के सपने के अनुरूप डॉ प्रियंका स्त्रीरोग विशेषज्ञ बनने का संकल्प लिया।
इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने मुंगेली के हालात को देखते हुए 1 अगस्त 2016 को सरकारी अनुबन्ध के तहत मुंगेली जिला अस्पताल में बतौर स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियंका की पोस्टिंग कर दी। तब जिला अस्पताल के हालात बेहद खराब थे। लोगों की सोच जिला अस्पताल के लिए ठीक नही थी, यही वजह है कि लोगो ने जिला अस्पताल को रेफरल सेंटर का नाम दे दिया था।
डॉ प्रियंका जांगड़े जब जिला अस्पताल पहुंचीं तो जिला अस्पताल में महज 6 ओपीडी मरीजों से शुरुआत की थी, लेकिन इतने कम मरीज होने से प्रियंका थोड़ी हताश थी।
फिर पिता के मनोबल से जिला अस्पताल में बेहतर कार्य करने से आज ओपीडी मरीजो की संख्या 200 के पार जा चुकी है। इसमें उनका बेहतर तरीके से सहयोग दिया जिला अस्पताल में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ के पद पर पदस्थ डॉ रश्मि भूरे ने, जो कि तत्कालीन कलेक्टर डॉ सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे की पत्नी हैं।
शासकीय अस्पताल का सहारा अक्सर गरीब तबके लोग ही लेते हैं। यही वजह है कि पहले इन भोले-भाले लोगों को जिला अस्पताल में महिला सम्बन्धी बीमारियों के लिए किसी भी तरीके की सुविधा नही होने से उन्हें निजी अस्पतालों के सहारा लेना पड़ता था। उन्हें इलाज के नाम पर मोटी रकम अदा करनी पड़ती थी।
सबसे ज्यादा इस अस्पताल में जटिल समस्या थी गर्भवती महिलाओं का ऑपरेशन से प्रसव। स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ प्रियंका जांगड़े की पदस्थापना के बाद से ही इस अस्पताल में ऑपरेशन की शुरुआत हुई। आज आपरेशन से प्रसव की संख्या 300 के पार जा चुकी है। यह जिले के लिए एक गौरव का विषय बना हुआ है।
साथ ही जिला अस्पताल में स्मार्ट कार्ड की सुविधा तो थी ही लेकिन इसका उपयोग महज कुछ ही लोगों को मिल पाता था, लेकिन आज स्मार्ट कार्ड ब्लॉक करके जिला अस्पताल प्रबंधन को स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ प्रियंका जांगड़े ने 30 लाख की आवक भी दे दी। यह राशि अस्पताल की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में अहम भूमिका निभाएगी।
लेकिन अभी जिला अस्पताल में एनेस्थीसिया के विशेषज्ञ नही होने से ऑपरेशन का कार्य प्रभावित हुआ है, जिस पर सीएमओ एम के तेंदवे ने बताया कि अस्पताल में जल्द एनेस्थीसिया विशेषज्ञ आ रहे हैं। उसके बाद ऑपरेशन का कार्य सुचारू रूप से संचालित किया जाएगा।
डॉ. प्रियंका कहती हैं, बचपन से पापा को देखकर ही मन मे सपना था कि डॉक्टर बनूं और उनके सपने के अनुरूप मैं आज स्त्रीरोग विशेषज्ञ हूं। बहुत खुशी होती है कि पापा और मम्मी के सपने को मैंने पूरा किया। आगे भी सोच है कि इनके द्वारा दिये गए मार्गदर्शन का अनुसरण करके लोगों की खूब सेवा करूं।
आस्थावान होते हैं डॉक्टर्स
जिन डॉक्टरों को हम धरती का भगवान कहते हैं, वही धरती के भगवान मरीज की सलामती के लिए ऊपर वाले से दुआ भी करते हैं। हम उनको भगवान कहते हैं वो ऊपर वाले से मरीज की सेहत की दुआ मांगते हैं। ये धरती के भगवान मरीज को मौत के मुंह से खींचकर ले आते हैं। आज मेडिकल साइंस इतनी ज्यादा तरक्की कर चुका है कि 95 फीसद बीमारियों का इलाज हो रहा है, फिर भी डॉक्टर ये मानते हैं कि ऊपर वाले की दुआ भी दवा जैसी ही असर करती है।
कोई करता है आराधना, कोई अरदास, तो कोई पढ़ता है कुरान
हिंदू डॉक्टर आराधना करता है, मुस्लिम कुरान पढ़ता है और दुआएं मांगता है, क्रिश्चियन प्रेयर करता है और सिख अरदास। कहीं न कहीं ये भी मानते हैं कि इनके ऊपर भी एक शक्ति है, जो इन्हें शक्ति प्रदान करती है। इसलिए तो डॉक्टर भी कभी-कभी मरीजों या उनके परिजनों से कहते हैं-अब आप दुआ कीजिए, प्रार्थना कीजिए।
अस्पताल के मंदिर हैं गवाह
कोरिया जिले के नागपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व जनकपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मंदिर हैं। वहीं कई निजी अस्पतालों में भी छोटे मंदिर हैं। डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल में मंदिर होने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इन अस्पतालों में स्थित मंदिरों में रोज डॉक्टर हाजिरी लगाते हैं।
कोई धर्म नही होता
डॉक्टर्स का कोई धर्म नहीं होता। उनके लिए सभी धर्म, सभी जाति के मरीज सामान हैं। वे जाति-धर्म देखकर इलाज नहीं करते। यह इस पेशे की अच्छी और एक खास बात है। इनकी सर्वोच्च प्राथमिकता मरीज की जान बचाना है। डॉक्टरी करने से पहले शपथ इसी बात की दिलाई जाती है।
डॉ. आरके रमन
अस्पताल में सरस्वती पूजा
जनकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बीएमओ डॉक्टर आरके रमन कहते हैं कि वे अस्पताल में प्रवेश करने से पहले अस्पताल परिसर में निर्माणाधीन सरस्वती मंदिर में माथा टेकते हैं। वे भगवान पर विश्वास करते हैं। ऑपरेशन शुरू करने से पहले भगवान को नमन करते हैं। उन्होंने कहा- कई बार जब हम ऑपरेशन कर रहे होते हैं, शरीर के जिस अंग तक पहुंचना होता है, उस रास्ते में कई और डिसीज मिल जाती हैं। डॉक्टर रमन ने बताया कि वे अस्पताल में हर साल सरस्वती पूजा आयोजित करवाते हैं।
डॉ. विनय जायसवाल
कोई भी नास्तिक नहीं
नेत्र रोग विशेषज्ञ के साथ ही मनेन्द्रगढ़ के विधायक डॉक्टर विनय जायसवाल कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति नास्तिक नहीं हो सकता, खासकर डॉक्टर। मैं रोजाना भगवान की पूजा के बाद अपना रूटीन शुरू करता हूं। ओटी के पहले हम सब अपने-अपने भगवान को याद करते हैं और कहते हैं कि आप हमें शक्ति प्रदान करें, ताकि हम सफल हो सकें। हम यह भी कहते हैं अब हमने अपना काम कर दिया है, आगे आपकी ही मर्जी।
डॉ. जी. कौर
हमारा 100 फीसदी, बाकी ऊपर वाला है
केंद्रीय चिकित्सालय में सीएमओ के पद पर पदस्थ डॉ. जी कौर कहती है कि मैं जब भी कोई ऑपरेशन करती हूं, तो वाहेगुरु के साथ ही हर ईश्वर को याद करती हूं। लोग भले हमे धरती का भगवान कहते हैं, लेकिन असली भगवान ऊपर वाला है। हम अपना 100 फीसदी करते है, बाकी ऊपर वाला है।
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