नशा मुक्ति केंद्र : न गाइडलाइन, न निगरानी, नतीजा..., नशा मुक्ति केंद्र में हुई मारपीट के बाद सभी नशेड़ी फरार

रविकांत सिंह - राजपूत। कोरिया। समाजसेवा के बहाने शहर में खोला गया नशा मुक्ति एवं पुनर्वास केंद्र वास्तव में यातना केंद्र में तब्दील हो गए। कारण यह है कि इन केंद्रों के संचालन के लिए समाज कल्याण विभाग ने न तो कोई गाइड लाइन बनाई है और न ही इनकी निगरानी की कोई व्यवस्था। लिहाजा नौसिखिए संचालक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती मरीजों से अनैतिक व्यवहार कर रहे हैं। मारपीट तो आम बात है, इन मरीजों पर थर्ड डिग्री तक इस्तेमाल किए जाने के मामले भी सामने आ रहे हैं, जिसका ही परिणाम है कि कोरिया जिले के चिरगुड़ा ग्राम में बिना पंचायत की अनुमति से खोले गए नशा केंद्र से संस्था के कर्मचारियों के गलत व्यवहार व मारपीट से गुरुवार की रात 11 बजे इलाज के लिए भर्ती सभी नशेड़ी फरार हो गए। जहां कर्मचारियों द्वारा नशे में किसी बात को लेकर भर्ती पीड़ित से विवाद होने के कारण पहले बहस व बाद में मारपीट व तोड़फोड़ की बात सामने आ रही हैं वहीं पदस्थ कर्मचारियों द्वारा सुबह तक थाने में घटना की सूचना नहीं देने के कारण अब संस्था के कार्यकलाप व शिकायत को लेकर सवाल उठना लाजमी हैं।
दावा सौ फीसदी ठीक करने का लेकिन हकीकत कुछ और
नशा मुक्ति केंद्र, सुनने में अच्छा लगता है, जो यहां पहुंचने पर नशे से मुक्ति मिल जाएगी। नशा करने वाले व्यक्ति के परेशान स्वजन भरोसा करके यहां पहुंचते हैं। रुपए भी खर्च करते हैं। मगर, एनजीओ के माध्यम से संचालित ये नशा मुक्ति केंद्र कमाई का जरिया बना हुआ हैं। कई बार यहां मारपीट के मामले भी सामने आ चुके हैं। इसके बाद भी जिम्मेदारों का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। नवजीवन फाऊन्डस नशा मुक्ति केन्द्र पटना में एक वर्ष पहले खुला था। यहां नशा से मुक्ति के लिए भर्ती कराए जाने वाले लोगों के स्वजन से शुरूआत में 20 से 30 हजार रुपए यहां तक लाने व बाद में 10 हजार रुपए प्रतिमाह लिए जाते थे। दावा नशे से सौ फीसद मुक्ति दिलाने का किया जाता था, लेकिन हकीकत इससे विपरीत थी। यहां भर्ती कराए जाने वाले लोगों को सुधारने के नाम पर उनका उत्पीड़न किया जाता था।
यहां मरीजों से शौचलय तक साफ कराया जाता है
शौचालय साफ कराने से लेकर उनसे मारपीट तक की जाती थी। मामला फरवरी में कलेक्टर कोरिया तक पहुंच था। एनजीओ बनाकर किराए की बिल्डिग में यह धंधा चल रहा है। इनमें पांच से दस हजार रुपये तक वसूले जा रहे हैं। इसके बाद भी यहां जिम्मेदार विभाग के अधिकारी निरीक्षण नहीं करते, शिकायत पर जिम्मेदार जांच किए, किंतु क्या जाच हुई यह आज भी बंद लाल फाइलों में कैद है।

जांच कर समय पर सही रिपोर्ट नहीं मिली
यदि जांच कर समय पर सही रिपोर्ट मिल जाती तो शायद आज यहां भर्ती लगभग 25 नशेड़ी फरार नहीं होते, जहां अब इन नशेड़ियों के घर नहीं पहुंचने व किसी प्रकार की घटना घटित होने पर अब जिम्मेदार कौन होगा, जिसे लेकर अब जिले में यह सुर्खियों का विषय बना हुआ है वहीं संचालनकर्ता कोई भी जवाब देने को तैयार नहीं है।
यहां उपचार के नाम पर तीन से छह माह तक मरीजों को रोका जाता है
क्या होता है नशा मुक्ति केंद्रों में- तीन से छह माह तक के लिए लोगों को यहां रोका जाता है। प्रतिमाह दस हजार रुपये खर्च के लिए लिए जाते हैं। नशे के आदी लोग जब नशा नहीं करते हैं तो उन्हें घबराहट, बेचैनी व अन्य समस्या होती हैं। ऐसे में यहां के संचालक खुद ही डाक्टर बनकर दवा देते हैं। सुधार के नाम पर लोगों का उत्पीड़न किया जाता है। मारपीट तक की जाती है। यह नही होना चाहिए, समाज सेवा के रूप में इन केंद्रों को खोला जाता है। ऐसे में दस हजार रुपये वसूल करना उचित नहीं। नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती रहने वाले लोगों को सलाह या दवा देने को डाक्टर होना चाहिए जो की इस केंद्र में नही है । नशे के आदी लोगों को व्यायाम और अन्य एक्टिविटी में व्यस्त रखा जाना चाहिए। इसके लिए विशेषज्ञ होने चाहिए जो नही है । जिम्मेदार विभागों को समय-समय पर इनका निरीक्षण करना चाहिए।ताकि इनकी मनमानी न हो किन्तु जब नशा करने वाले ही इस तरह के केंद्रों का संचालन करेंगे तो इन केंद्रों में सुधार व्यवस्था को लेकर सवाल उठना लाजमी है ।
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