'किसानों की बात उद्यमियों के साथ' शामिल हुए दिग्गज: कक्काजी, पूर्व कृषि मंत्री बृजमोहन, कृषि मंत्री चौबे, उद्योगपति कमल सारडा

रायपुर: देश में पहली बार किसान, उद्योगपति और बुद्धिजीवी एक साथ जुटे और देश की अर्थव्यवस्था में न्यूनतम समर्थन मूल्य की जरुरत पर गंभीर मंथन हुआ। इस मौके पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को ठीक रखना है के किसानों की जेब में पैसा डालना होगा। देश के दिग्गज किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि देश दो चीजों से चलता है। एक है कृषि और दूसरा ऋषि। इसमें अगर छेड़खानी होगी को देश डिस्टर्ब होगा। किसान नेता शिवकुमार शर्मा कक्काजी ने कहा कि जब तक कृषि के समवर्ती सूची में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक एमएसपी कल्पना नहीं की जा सकती है। अपनी तरह का अनोखा कार्यक्रम था और मंच था हरिभूमि आईएनएच के किसानों की बात उद्यमियों के साथ का। इस मंच पर प्रदेश और देश के दिग्गज शामिल हुए। शुरुआत में स्वागत भाषण कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने अपने ओजस्वी अंदाज में दिया। उन्होंने कहा किसान आंदोलन के माध्यम से श्री टिकैत ने कानून वापस लेने के लिए सरकार को मजबूर कर दिया। इसके बाद जब पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की बारी आई तो उन्होंने कहा कि यह प्रदेश का विकास केवल तीन साल में नहीं हुआ है। छत्तीसगढ़ बने 21 साल हुए हैं तब से विकास की प्रक्रिया चल रही है।
विकास केवल तीन साल में नहीं: बृजमोहन
बृजमोहन अग्रवाल ने कहा, आज केवल श्रेय लेने का जमाना है। उन्होंने कृषि मंत्री रविंद्र चौबे के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि केवल तीन साल में ही छत्तीसगढ़ का विकास नहीं हुआ। छत्तीसगढ़ को बने आज 21 साल हो गया। तब से विकास की प्रक्रिया चल रही है। छत्तीसगढ़ फास्टेस ग्रोइंग राज्य के रूप में आगे आया है। राजधानी तेजी से ग्राेइंग सिटी के रूप में आगे बढ़ रही है, लेकिन तीन साल में कैसे धूल खा रहे हैं सबको मालूम है। उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर किसान देश की आत्मा है। यहां पर एक पक्षीय बात करने से इसका समाधान नहीं होगा। किसानों को पंप कनेक्शन नहीं मिल रहे। :शेष पेज 07 पर
यहां पर हर वर्ग अपनी मांगों को लेकर रोज आंदोलन कर रहा है। अगर किसानों के संबंध में छत्तीसगढ़ की बात करेंगे तो देश के समग्र विकास की बात होगी। तीनों किसान बिल को किसानों के लिए बड़े दिल से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वापस लिया। छत्तीसगढ़ में 700 से अधिक किसानों ने आत्महत्या किया है। यूपी में किसानों को 50 लाख रुपए देकर आए, लेकिन यहां के किसानों को मुआवजा क्यों नहीं दिया गया।
देश में छत्तीसगढ़ मॉडल की चर्चा: चौबे
कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा, किसान आंदोलन का जिक्र यहां पर हुआ है। किसान आंदोलन के माध्यम से टिकैत ने कानून वापस लेने सरकार को मजबूर किया। केंद्र ने जब कृषि कानून बनाया तो छत्तीसगढ़ राज्य ने विरोध में मंड़ी और कृषि कानून को लेकर कानून में संशाेधन किया। गोधन न्याय योजना के तहत 118 करोड़ रुपए गाेपालकों को अब तक दिए जा चुके हैं। 140 करोड़ का वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया गया है। 14 लाख से अधिक किसानों ने इसका प्रयोग किया। छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां पर गोधन न्याय के साथ भूमिहीन कृषि मजदूरों के लिए भी न्याय योजना लागू की गई है। उन्होंने कहा कि एमएसपी के लड़ाई हो रही है। राज्य में किसानों को 2540 और 2560 रुपए दिया जा रहा है। कोदो, कुटकी और रागी को भी समर्थन मूल्य में खरीदने जा रहे हैं। गन्ने की कीमत 355 रुपए दे रहे हैं। पूरे देश में किसी भी राज्य में इतनी कीमत नहीं मिल रही। किसानों से 105 लाख टन धान खरीदी कर रहे हैं। प्रदेश का बजट 1 करोड़ 5 लाख रुपए का है, इसमें से 87 हजार करोड़ रुपए किसानों को चार साल में दिया। किसानों को 12 हजार करोड़ अतिरिक्त दिए गए। यहां पर रियल एस्टेट, सराफा, ऑटोमोबाइल और टैक्सटाइल कारोबार गुलजार रहा। किसानों के जेब में पैसा जाएगा तो सभी खुश रहेंगे।
कृषि कानून किसानों के लिए था डेथ वारंट: कक्काजी
शिवकुमार शर्मा(कक्काजी) ने आयोजन के संबंध में कहा कि उद्यम जगत और किसानों के बीच संवाद होना चाहिए। उन्होंने बताया कि तब तीन कृषि कानून लाए गए थे तब खेत में ट्रेक्टर चला रहा था, तभी एक पत्रकार ने आकर कहा कि तीन कृषि कानून पारित कर दिए गए है। उन्होंने मुझसे प्रतिक्रिया चाही। मैंने कहा, देखने के बाद कुछ कह पाउंगा। मैने उस समय कहा कि यह किसानों के लिए डेथ वारंट है। इसके पहले भी किसानों के संबंध में 28 कानून आ चुके हैं। लैंड बिल की लड़ाई हमने लड़ी है। इसके खिलाफ पैदल यात्रा भी की है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में कृषि कानून लाया गया है जब इस क्षेत्र में कोई इमरजेंसी के हालात नहीं थे।
एमएसपी आयोग में किसानों की नहीं सुनी जाती
आंदोलन के के दौरान 703 किसानों की शहादत हुई। ये सब हमारे सहयोगी के रूप में हमारे बीच रहे थे। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जिसने किसानों को सहयोग दिया। गोबर से लेकर किसानों के लिए किया, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। यहां किसानों को एमएसपी से ज्यादा कीमत मिल रहा है। राज्य सरकारें फसल के एमएसपी का प्रस्ताव मूल्य निर्धारण आयोग को भेजी जाती है। इस आयोग को कोई चेयरमैन पिछले कई सालों से नहीं है। आयोग के दो सदस्य हैं राज्य सरकार जो प्रस्ताव भेजती है, उसे सीधे 50 प्रतिशत कम कर दिया जाता है। किसानों की बात आयोग में सुनी ही नहीं जाती। एमएसपी को लागू हुए 54 साल हो गए, लेकिन किसानों को कोई फायदा नहीं मिलता। एमआरपी निर्धारित करने में व्यापारी अपने उत्पाद को तैयार करने में सभी खर्चाें को जोड़ कर तय कर लेता है, पर किसान अपने फसल की कीमत तय नहीं कर पाता। जो एमएसपी तय होता है उससे कम कीमत पर फसल बेचने मजबूर हो जाता है।
अब तक नहीं बना कृषि न्यायाधिकरण
कक्काजी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 323 में में कृषि न्यायाधिकरण बनाने का उल्लेख किया गया है, पर तक इसका गठन नहीं हो पाया है। ग्रीन ट्रब्यूनल और अन्य ट्रिब्यूनल बने लेकिन किसानों के लिए कोई ट्रिब्यूनल अब तक नहीं बना सका। संविधान में कृषि को समवर्ती सूची में उल्लेख नहीं है। जब तक यह नहीं होगा एमएसपी की कल्पना नहीं की जा सकती।
सभी को एक मंच पर लाने का प्रयास सराहनीय- कमल सारडा
उद्योग जगत से प्रतिष्ठित उद्योगपति कमल सारडा ने कार्यक्रम में अपनी बात रखी। उन्होंने आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि हरिभूमि मीडिया समूह ने सरकार, उद्योगपति व किसानों को एक मंच पर लाने का सराहनीय कार्य किया है।
कर्मठता का सम्मान
इस अवसर पर हरिभूमि/आईएनएच के सहयोगियों को सम्मानित किया गया।
पुस्तक विमोचन
हरिभूमि की वरिष्ठ पत्रकार रुचि वर्मा के उपन्यास "एक टुकड़ा इश्क" का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मंचस्थ अतिथियों ने विमोचन किया। रुचि का यह पहला उपन्यास है।
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