Father's Day : 40 फीट ऊंचे पेड़ पर लटका दी थी नवजात, पाल पोसकर बनाया वनदेवी

रुचि वर्मा. रायपुर. मैं धमतरी जिले के बिलझुजी और मोदी गांव के बीच जंगल से गुजर रहा था। अचानक एक बच्चे की रोने की आवाज सुनाई देने लगी। मैंने आसपास देखा, लेकिन कोई भी दिखाई नहीं दिया। तभी ऊपर की तरफ नजर गई। बिरहा के पेड़ पर 40 फीट की ऊंचाई पर एक हरे शॉल में किसी ने बच्ची को लटका दिया था। तुरंत ऊपर चढ़कर नवजात को उतारा। उस दिन ही उसका जन्म हुआ था, उसकी नाल का खून उस वक्त सूखा भी नहीं था। आसपास के गांव में पूछताछ कराई, लेकिन बच्ची के माता-पिता का पता नहीं चल पाया। उस वक्त फैसला कर लिया कि इस बच्ची का पालन-पोषण मैं करूंगा।
यह कहानी है धमतरी जिले में सब इंस्पेक्टर शत्रुघ्न पांडे की। जिस नवजात को उनके सगों ने ही त्याग दिया, उसके पिता की भूमिका वे निभा रहे हैं। शत्रुघ्न पांडे बताते हैं कि बच्ची उन्हें 2008 में जंगल में मिली थी। बच्ची को अपनाने का फैसला करने के बाद कई तरह की मुश्किलें सामने आईं। चूंकि वह नवजात थी, इसलिए किसी ऐसी महिला की आवश्यकता थी जो उसे दूध पिलाने से लेकर उसका लालन-पालन कर सके। बहुत ढूंढने और मिन्नतें करने के बाद पास के गांव के एक दंपति हेमलता और संतोष इसके लिए राजी हो गए। नवजात के खर्च की राशि वे नियमित रूप से देते रहे। वन में मिलने के कारण गांववालों ने उसका नाम वनदेवी रख दिया। आज वनदेवी 13 वर्ष की है और आठवीं कक्षा में अध्ययनरत है।
अपने बच्चों के खर्च में कटौती
शत्रुघ्न के परिवार में उनकी पत्नी विजया और तीन बेटे सौरभ, गौरव और अजय हैं। सौरभ एक शासकीय महाविद्यालय में व्याख्याता हैं। गौरव मंत्रालय में कार्यरत हैं तथा अजय बिलासपुर में शिक्षक हैं। शत्रुघ्न के जीवन में कई बार ऐसा अवसर भी आया, जब उन्हें अपने बच्चों के खर्च में कटौती कर दूसरे बच्चों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करनी पड़ी। उन्हें इस कार्य में हमेशा ही परिवार का सहयोग मिला। उनका परिवार उन्हें हमेशा इसके लिए प्रेरित करता है।
16 बच्चों का उठाया खर्च
वनदेवी को गोद लेने के साथ शत्रुघ्न 16 अन्य बच्चों का खर्च उठा चुके हैं। इनमें से किसी ने अपने पिता को खो दिया तथा तो कोई गरीबी के अभाव में अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहा था। ऐसे बच्चों की पढ़ाई और कॅरियर संबंधित जरूरतें उन्होंने पूरी की। शत्रुघ्न बताते हैं कि सभी बच्चे अब अपने पैरों पर खड़े हैं। कुछ व्यवसाय कर रहे हैं, तो कुछ कहीं नौकरी पर हैं। आज भी विशेष अवसरों पर उनसे मुलाकात होती है। सभी बच्चे उन्हें दादा कहकर ही पुकारते हैं। मूलत: महासमुंद के रहने वाले 61 वर्षीय शत्रुघ्न बीते 40 वर्षों से पुलिस विभाग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। महज 19 वर्ष की आयु में उन्होंने बच्चों का खर्च उठाना प्रारंभ कर दिया था।
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