Father's Day : पहाड़ी कोरवा बच्चों का पिता की तरह भविष्य संवार रहे शिक्षक

नागेन्द्र श्रीवास. कोरबा. सीमित संसाधनों एवं चुनौतियों के बीच बीहड़ वनांचल क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगा पाना किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन इस युवा शिक्षक ने अपनी मेहनत व लगन से वनांचल क्षेत्र के शिक्षकों के बीच एक अलग ही पहचान बना ली है। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवाओं के 30 बच्चों को एक पिता की तरह फर्ज निभाते हुए डिजीटल शिक्षा से जोड़ने अपनी एलआईसी की पॉलिसी को तोड़ने से लेकर प्रतिभावान छात्रा को गोद लेकर उच्च शिक्षा के लिए राह आसान करने वाले शिक्षक की कोशिश काबिले तारीफ हैं।
एक अभिभावक और पिता की तरह फर्ज निभाने वाले युवा शिक्षक श्रीकांत अनेक मर्तबा सम्मानित भी हो चुके हैं।जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ी कोरवा बाहुल्य ग्राम गढ़कटरा आज न केवल अपनी खूबसूरत वादियों के लिए प्रख्यात है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी कोरबा ब्लॉक में अलग पहचान बना चुका है। पहाड़ों के बीच बसे इस गांव में शिक्षा की तस्वीर महज एक दशक में ही बदली है। गढ़कटरा में सन 1971 से प्राथमिक शाला संचालित है। जहां गढ़कटरा से करीब 3 से 4 किलोमीटर के दायरे में बसे 7 बसाहटों के 30 बच्चे स्मार्ट क्लास की तर्ज पर शिक्षा हासिल कर रहे हैं।
जंगलों में बसे पहाड़ी कोरवा बच्चों को डिजीटल शिक्षा से जोड़ने शिक्षा विभाग या किसी संस्थान ने पहल नहीं की, बल्कि यह संभव हो सका है यहां पदस्थ सहायक शिक्षक (एलबी) श्रीकांत सिंह के बूते। 2006 में जब श्रीकांत की यहां पदस्थापना हुई तो न सिर्फ शाला की अपितु यहां पढ़ने आने वाले पहाड़ी कोरवा के बच्चों की हालात दयनीय थी, लेकिन शुरू से ही शिक्षा के प्रति संवेदनशील श्रीकांत सिंह ने स्कूल की दशा एवं दिशा बदलने की मंशा के साथ कार्य करना शुरू किया। श्रीकांत ने इस दौरान एक पिता की तरह अपना फर्ज निभाते हुए अपनी पॉलिसी को तोड़कर 72 हजार की राशि बच्चों को डिजीटल शिक्षा देने में खर्च कर डाली।
लैपटॉप, प्रोजेक्टर, स्पीकर, पर्दा सहित अन्य सामग्री क्रय कर श्रीकांत ने पिछड़े क्षेत्र के बच्चों को शहरी क्षेत्र के बच्चों की तरह आधुनिक शिक्षा से जोड़ दिया, लेकिन गढ़कटरा के इस स्कूल को इस मुकाम तक पहुंचाना आसान नहीं था। श्रीकांत ने इसके लिए अथक प्रयास किया है। पहाड़ी कोरवा बाहुल्य क्षेत्र के बच्चों को बेहतर तालीम देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने श्रीकांत ने 12 साल में एक बार भी शिक्षा विभाग को तबादले की अर्जी नहीं दी। श्रीकांत का मानना था कि जब किसी कार्य की शुरूआत की जाए तो उसे परिणाम में परिवर्तित होने तक इंसान को संघर्ष जारी रखना चाहिए, श्रीकांत की मेहनत भी रंग लाई। हिन्दी में एमए की शिक्षा हासिल करने वाले श्रीकांत ने यहां के बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के बच्चों की तरह स्मार्ट क्लास से जोड़ दिया है। जहां आज बच्चों के हाथों में स्लेट, चाक, पेंसिल की जगह कम्प्यूटर है। पहाड़ा से लेकर पूरी पढ़ाई बच्चे प्रोजेक्टर के माध्यम से पूरी कर रहे हैं। इस युवा शिक्षक का कहना है कि ये सभी बच्चे निर्धन परिवार से आते हैं और इनके अभिभावकों की आय भी सीमित है। इसलिए शिक्षक के साथ ही वे बच्चों के अभिभावक का भी दायित्व निभा रहे हैं।
लाखों की सामाग्री बांट चुके हैं बच्चों व आदिवासियों को
हरिभूमि से चर्चा करते हुए शिक्षक श्रीकांत ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान वे अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर वनांचल क्षेत्र के ग्राम पंचायतों की दशा व दिशा बलने की दिशा पर प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर उस क्षेत्र में बसने वाले गरीब आदिवासी बच्चों के बारे में जैसे ही उनका पता चलता है वे अपने अन्य दोस्तों के साथ मदद के लिए पहुंच जाते हैं और उनकी हर संभव मदद करते हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान शिक्षक श्रीकांत ने अपने साथियों के साथ मिलकर लगभग डेढ़ लाख रूपये से अधिक कीमत के गर्म कपड़े, स्टेशनरी, साल व कंबल आदिवासी परिवार व उनके बच्चों को दिए हैं। श्रीकांत गढ़कटरा, कदमझरिया, दलदली, ढोकाआमा, छातासराई, माखुरपानी, बाघमार, कोरई सहित आसपास के एक दर्जन से अधिक ग्राम पंचायतों में भ्रमण कर उस क्षेत्र में बसने वाले गरीब आदिवासी बच्चों की देखरेख करते रहते हैं और उन्हें पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
पिता का उठा साया, तो श्रीकांत ने बढ़ाया हाथ
गढ़कटरा में निवासरत मेधावी छात्रा ज्योति आज श्रीकांत की बदौलत उच्च शिक्षा हासिल कर रही है। पिता का सिर से साया उठ चुका था, मां बीमार थी साथ में दो छोटे-छोटे भाई। ऐसे में 12वीं में 77 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण होने के बाद भी ज्योति आर्थिक विपन्नता की वजह से कॉलेज की शिक्षा हासिल नहीं कर पा रही थी। इसे देख श्रीकांत ने स्वयं पहल करते हुए ज्योति के एडमिशन के लिए राशि की व्यवस्था की। वे स्वयं प्रतिमाह ज्योति को अपने वेतन से पढ़ाई के लिए आर्थिक सहयोग करते हैं। श्रीकांत की बदौलत ज्योति ने जय बूढ़ादेव कॉलेज कटघोरा से बीए फाईनल की शिक्षा हासिल की है। वनांचल क्षेत्र में संचालित प्राथमिक शाला गढ़कटरा के बच्चों को स्कूल से जाने के बाद फिर स्कूल आने की उम्मीद करना किसी सपने से कम नहीं है। वनांचल पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से कई बच्चे जंगली जानवर के डर से स्कूल नहीं जाते लिहाजा श्रीकांत उन्हें अपनी मोटर सायकल में लेने जाते हैं व छुट्टी होने के बाद वे खुद ही घर छोड़ते हैं। पहली बार किसी सरकारी शिक्षक की शिक्षा के प्रति समर्पण की भावना को देखकर पहाड़ी कोरवा क्षेत्र गढ़कटरा के लोग बेहद हर्षित हैं और हर किसी का मानना है कि जो दायित्व एक पिता को निभाना चाहिए वह यह युवा शिक्षक निभा रहा है।
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