'सोने के पेड़' पर खिले फूल : होली से पहले एक बार फिर दिखे पीले रंग के टेशू के दुर्लभ फूल

मरवाही। देशभर में 18 मार्च को होली का पर्व बड़े ही उत्साह और उमंग के वातावरण में मनाया जाएगा। छत्तीसगढ़ में होली से पहले टेशू के फूल बड़ा महत्व रखते हैं। ग्रामीण इलाकों में टेशू के फूलों से आज भी रंग बनाए जाते हैं। टेशू के फूल आमतौर पर एक ही रंग में खिलते हैं। लेकिन गौरेला, पेंड्रा, मरवाही जिले में दुर्लभ पीले रंग का पलाश एक बार फिर से खिला है। पीले रंग के पलाश को देवी पितांबरा का प्रिय पुष्प माना जाता है। मरवाही के झिरनापोंड़ी के पास सड़क किनारे पीले पलाश अथवा ढाक के पेड़ पर खिले पीले पलाश के फूल राहगीरों को लुभा रहे हैं। पीले पलाश खिलने को सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। पीले रंग के पलाश का फूल दुर्लभ प्रजातियों में शामिल है। यह संरक्षित श्रेणी का पेड़ भी है। इस क्षेत्र में ज्यादातर लाल केसरिया से मिलते जुलते रंग के पलाश खिलते हैं। इस पौधे का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा है। इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे 'जंगल की आग' भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही होली के रंग पलाश के फूलों से तैयार किये जाते रहे हैं। ग्रामीणों में यह अवधारणा भी है कि पीले पलाश से सोना बनाया जा सकता है। जबकि सोना बनने की बात ने ही इस दुर्लभ वृक्ष के लिये खतरा पैदा कर दिया है। लोग वनों में इसे खोजने जी-जान लगा दे रहे हैं। चूँकि पुष्पन के समय ही इसकी पहचान होती है इसलिये इस समय बउ़ी मारामारी होती है। पहले भी कई प्रकार की वनस्पतियों पर ऐसी ही गलत जानकारियों के कारण संकट आते रहे हैं। पीले पलाश की वैज्ञानिक पहचान स्थापित की जानी चाहिये। इसके पहले भी साल 2015 और 2020 में इस इलाके में इन दुर्लभ पीले पलाश के फूलों को देखा गया था। जबकि झिरनापोंड़ी गांव के पास इस सीजन का पहला पीला पलाश देखे जाने की सूचना है।
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