पूरा किया लोहांडीगुड़ा के किसानों से वादा : सरकार बनने के 21 वें दिन 1,707 किसानों को वापस दिलाई जमीन

रायपुर। छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने किसानों का कर्ज माफी के साथ ही लोहांडीगुड़ा के किसानों की जमीन वापसी का वादा भी पूरा किया। सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तत्काल जमीन वापसी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक अलग मंत्रिपरिषद का गठन किया और किसानों को उनकी जमीन लौटाई। आज लोहांडीगुड़ा के किसान अपनी जमीन पर खेती कर बेहद खुश हैं।
4,400 एकड़ भूमि वापस दिलाई
छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर जिले के लोहाण्डीगुड़ा क्षेत्र के 1,707 भू-विस्थापित आदिवासी किसान परिवारों के हित में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल के शपथ ग्रहण के लगभग 21 दिन बाद ही उनकी अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में जमीन वापसी का निर्णय लिया गया। भूपेश सरकार ने इन किसानों को उनकी लगभग 4400 एकड़ भूमि वापस कर अपना वादा पूरा किया है।
सरकार ने जमीन दिलाकर पूरा किया अपना वादा
यह जमीन लगभग एक दशक पहले वहां टाटा के वृहद इस्पात संयंत्र के लिए अधिग्रहित की गई थी। इस पर संबंधित कम्पनी द्वारा कोई उद्योग स्थापित नहीं किया गया। किसानों ने बताया कि जब भूपेश सरकार आई तब हमारी जमीन हमें वापस मिली है। ये वादा निभाने का जुनून, बेबाक निर्णय लेने की क्षमता, यही तो भूपेश कका को दूसरों से अलग करती है और एक विश्वास जगाती है कि भूपेश है तो भरोसा है।


किसानों के बीच खुशी का माहौल
भूपेश बघेल सरकार द्वारा इस मामले पर त्वरित निर्णय लेना लोहाण्डीगुड़ा क्षेत्र के लोगों के लिए काफी खुशी का माहौल था। सरकार बनने के छह दिन के अंदर इस फैसले से साफ हो गया कि 15 सालों में जिस सरकार ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया वह भूपेश सरकार ने 21 दिनों में कर दिखाया। इस फैसले के बाद प्रभावित किसानों के बीच खुशी का माहौल था और लगातार निर्णय से साफ हो गया था कि कांग्रेस किसानों की पार्टी है।
टाटा को बस्तर में क्यों मिली थी जमीन
टाटा स्टील लिमिटेड ने छत्तीसगढ़ शासन के उपक्रम सीएसआईडीसी (छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कार्पोरेशन) साथ बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा क्षेत्र में जून 2005 में लगभग बीस हजार करोड़ रुपये की लागत से साढ़े पचास लाख टन सालाना उत्पादन क्षमता का इस्पात संयंत्र लगाने के लिए एमओयू किया था। राज्य शासन ने लोहंडीगुड़ा क्षेत्र के दस गांवों की सरकारी, निजी और वन भूमि को मिलाकर 2043.450 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित करने ग्राम सभाएं आयोजित भी की थी। इसमें सिर्फ 1707 किसानों की 1764.610 हेक्टेयर निजी जमीन भी शामिल हैं। प्रभावित किसानों में 1165 किसान मुआवजा प्राप्त कर जमीन देने को राजी हुए, लेकिन जमीन पर कब्जा नहीं छोड़ा। वहीं 542 किसानों ने जमीन देने से साफ इनकार करते हुए मुआवजा राशि लेने से स्पष्ट मना कर दिया।
आखिरकार टाटा ने बस्तर को कह दिया टाटा
किसानों के लगातार विरोध के कारण शासन मुआवजा बांटने के बाद भी जमीन का अधिग्रहण कर टाटा स्टील को उपलब्ध कराने में नाकाम रहा। शासन ने साल 2016 फरवरी में टाटा स्टील को बैलाडीला क्षेत्र में आवंटित लौह अयस्क की खान के लिए जारी प्रास्पेक्टिंग लाइसेंस भी निरस्त कर दिया था, तभी टाटा की बस्तर से विदाई तय हो गई थी और अंत में टाटा ने बस्तर को टाटा ही कह दिया। देखिए वीडियो...
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