गमगीन है 'गमपुर' : फोर्स ने मार दिया, ग्रामीण मानने को तैयार नहीं कि बदरू नक्सली था, दो साल से न्याय की आस में सुरक्षित रखा है शव

जगदलपुर। किरंदुल की ऊँची ऊँची पहाड़ियों के पीछे बसे कई छोटे-छोटे गांवों में से एक है गमपुर गांव। वैसे तो यह गांव बीजापुर जिले के अंतर्गत आता है, लेकिन पुलिस दंतेवाड़ा जिले की इस इलाके को देखती है। यहाँ पहुँचने के लिए आपको किरंदुल की पहाड़ियों को पार कर लगभग बीस किमी का बेहद कठिनाई भरा सफर तय करना होता है। इस गांव में 19 मार्च 2020 को पुलिस ने एक बड़ी मुठभेड़ में दो लाख के इनामी नक्सली बदरू माड़वी को मार गिराने का दवा किया। वहीँ परिजनों और गांव वालों का आरोप है कि जिसे मारा गया है वह ग्रामीण था और महुआ बीनने जंगल गया हुआ था। बदरू के छोटे भाई सन्नू का कहना है कि जब पुलिस वालों ने उसके भाई पर गोली चलाई तब वह भी पीछे साथ चल रहा था। वह गड्ढे में कूद गया इसलिए जिन्दा बच गया। गांव वालों ने आज दो साल बीत जाने के बाद भी बदरू के शव को गांव के बगल के शमसान के पास एक गढ्डे में कुछ जड़ीबूटियों का लेप लगाकर सुरक्षित रखा है। बदरू की माँ माड़वी मारको का कहना है कि वह आज भी अपने बेटे के उपयोग के सभी सामान सुरक्षित रखी है, और शव का अंतिम संस्कार नहीं करने के पीछे वजह है कि एक दिन इस मामले को न्यायलय जरूर संज्ञान में लेगा और शव का दोबारा पोस्टमार्टम किया जायेगा। जिससे उनके बच्चे को न्याय मिलेगा।
पुलिस ने मेरा जीवन तबाह कर दिया : बदरू की पत्नी
बदरू की पत्नी पोदी को हिंदी नहीं आती। वह अपनी बोली में अपना दर्द बयां करते बताती हैं कि पुलिस ने उनका जीवन तबाह कर दिया। आज घर को सँभालने वाला कोई नहीं बचा। बस्तर में आदिवासियों के लिए आवाज उठाने वाली सामाजिक कार्यकर्त्ता सोनी सोरी भी गमपुर पहुंचीं और उन्होंने भी परिजनों और गांव वालों से मुलाकात की। इस दौरान सोनी सोरी ने बताया कि परिजनों को आज भी न्यायलय पर भरोसा है और पूरी उम्मीद है कि कभी न कभी उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।
पुलिस रिकार्ड में नक्सली था बदरू : आईजी
वहीँ इस पूरे मामले में बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि इस मुठभेड़ में जो मारा गया था वह पुलिस के रिकॉर्ड में इनामी नक्सली ही है। मुठभेड़ के बाद बदरू के शव का पोस्टमार्टम भी किया जा चुका है और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई है। साथ ही बस्तर में होने वाले प्रत्येक मुठभेड़ों की मजस्ट्रियल जाँच की जाती है, इस मुठभेड़ की भी जाँच की गई है। जांच रिपोर्ट में भी इस मुठभेड़ को सही पाया गया है और बदरू माडवी के नक्सली होने की भी जानकारी सही पाई गई है।
असली मगर कड़वी सच्चाई तो यह है...
बहरहाल दावा चाहे जिसका भी सच्चा हो लेकिन इस इलाके की कड़वी सच्चाई यह है कि किरंदुल के लोहे की पहाड़ियों से हजारों करोड़ सरकारे कमा रही हैं, लेकिन गमपुर गांव में आज तक सरकारी एक ईंट तक नहीं पहुंच पाई है। उससे भी कड़वी सच्चाई यह है कि यहाँ पहुँचते हैं केवल पुलिस के जवान। जो जंगल में वनोपज एकत्रित करने पहुंचे हर ग्रामीण को शंका की दृष्टि से देखते हैं, और यही शंका इन ग्रामीणों के जीवन को घुन की तरह चाट रहा है।
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