कोयले जैसी काली है कोयलीबेड़ा के गांवों की हकीकत : नहीं पहुंचतीं सरकारी योजनाएं, कभी कोई सरकारी अफसर नहीं जाता...

कोयले जैसी काली है कोयलीबेड़ा के गांवों की हकीकत : नहीं पहुंचतीं सरकारी योजनाएं, कभी कोई सरकारी अफसर नहीं जाता...
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इन इलाकों में कोई प्रशासनिक अधिकारी कभी आता ही नहीं ऐसे में अब तक उन्हे पट्टा नहीं मिल सका जिसका बहुत बड़ा नुकसान उन्हें उठाना पड़ रहा है। बात करे सिर्फ खेरिपदर गांव की तो यहां 35 परिवार निवासरत है, गांव की जनसंख्या 270 की है। इसके अलावा आल्दण्ड, कंदाड़ी, घोड़िया,हिदुर समेत कई गांव के ग्रामीणों को वन भूमि का पट्टा नहीं मिल सका है।

गौरव श्रीवास्तव/ कांकेर। प्रदेश सरकार आम जनता के हित के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन प्रदेश के अंतिम व्यक्ति तक इन योजनाओं के पहुंचने का दावा कांकेर जिले के धुर नक्सल इलाकों में पहुंचते ही धुंधला नजर आने लगता हैं। आज भी कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा ब्लॉक में कई ऐसे गांव है जहां योजनाओ का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। वन भूमि पट्टा ग्रामीणों को देने को लेकर सरकार बेहद गम्भीर नजर आती है, लेकिन दूसरी तरफ कोयलीबेड़ा के खेरिपदर समेत कई गांवों के ग्रामीणों को अब तक पट्टा नहीं मिला है।

ग्रामीणों का कहना था कि, इन इलाकों में कोई प्रशासनिक अधिकारी कभी आता ही नहीं ऐसे में अब तक उन्हे पट्टा नहीं मिल सका जिसका बहुत बड़ा नुकसान उन्हें उठाना पड़ रहा है। बात करे सिर्फ खेरिपदर गांव की तो यहां 35 परिवार निवासरत है, गांव की जनसंख्या 270 की है। इसके अलावा आल्दण्ड, कंदाड़ी, घोड़िया,हिदुर समेत कई गांव के ग्रामीणों को वन भूमि का पट्टा नहीं मिल सका है। जिसके कारण ग्रामीण धान भी नहीं बेच पाते है, व्यपारियो के पास धान बेचने या दूसरे के पट्टे से धान बेचने पर पैसा भी कम मिलता है और समय पर भी नहीं मिल पाता। ऐसे में इन इलाकों के ग्रामीण खुद को ठगा सा महूसस करते है, नक्सलियों का गढ़ मने जाने वाले इन इलाकों में प्रशासन तो दूर पुलिस किस पकड़ भी बेहद कमजोर है। प्रदेश सरकार ने दिसम्बर 2005 से कब्जे वाले वन भूमि पर पट्टा जारी किया तो जा रहा है, लेकिन ये योजनाए अंदरूनी इलाको में आखिर कब धरातल पर पहुंचेगी ये बड़ा सवाल है।

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