हसदेव अरण्य मामला : रुकी पेड़ों की कटाई, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और राजस्थान सरकार ने कहा- अगली सुनवाई तक नहीं करेंगे पेड़ों की कटाई

हसदेव अरण्य मामला : रुकी पेड़ों की कटाई, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और राजस्थान सरकार ने कहा- अगली सुनवाई तक नहीं करेंगे पेड़ों की कटाई
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कोयला खदान के नाम पर हसदेव अरण्य के जंगलों से बेतहाशा पेड़ों की कटाई की गई, लेकिन अब पेड़ों की कटाई पर रोक लग गई है। केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने कहा कि वे अगली सुनवाई तक कोई पेड़ नहीं काटेंगे। पढ़िए पूरी खबर...

रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में कोयला खदान के नाम पर हसदेव अरण्य के जंगलों से बेतहाशा पेड़ों की कटाई की गई, लेकिन अब पेड़ों की कटाई पर रोक लग गई है। केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने कहा कि वे अगली सुनवाई तक कोई पेड़ नहीं काटेंगे। मामले की सुनवाई अब नवंबर में होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की बेंच हसदेव में कोयला खदानों के लिए वन भूमि आवंटन को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही है।

अगली सुनवाई तक नहीं होगी पेड़ों की कटाई

मिली जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद-ICFRE की अध्ययन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। ICFRE ने दो भागों की इस रिपोर्ट में हसदेव अरण्य की वन पारिस्थितिकी और खनन का उस पर प्रभाव का अध्ययन किया है। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह रिपोर्ट पेश करने के लिए कुछ और समय देने की मांग की। उन्होंने कहा कि इसकी अगली तारीख दिवाली की छुट्‌टी के बाद और संभव हो तो 13 नवंबर के बाद दी जाए। याचिकाकर्ताओं में से सुदीप श्रीवास्तव की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अधिवक्ता नेहा राठी ने कहा कि सुनवाई आगे बढ़ाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन तब तक केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम की ओर से आगे किसी पेड़ की कटाई नहीं होनी चाहिए। इसके बाद केंद्र सरकार और राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम ने कहा कि अगली सुनवाई तक हसदेव में किसी पेड़ की कटाई नहीं करेंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने का निवेदन स्वीकार किया।

वन भूमि आवंटन को दी गई चुनौती

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय वन मंत्रालय ने 2011 में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक में पहले चरण की अनुमति दी थी। सरकार की ही वन सलाहकार समिति ने जैव विविधता पर खतरा बताते हुए आवंटन को निरस्त करने की सिफारिश की थी। इसके बाद भी 2012 में अंतिम चरण का क्लियरेंस जारी हो गया। 2013 में इस ब्लॉक में खनन भी शुरू हो गया। इसके खिलाफ छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शिकायत की। ट्रिब्यूनल ने भारतीय वन्य जीव संस्थान से अध्ययन कराने का सलाह दिया था। इसके बाद भी केते एक्सटेंसन को भी अनुमति दे दी। सुदीप श्रीवास्तव ने वन भूमि आवंटन को चुनौती दी है।

सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दर्ज

इसी मामले से जुड़ी एक और याचिका अंबिकापुर के अधिवक्ता डीके सोनी ने दायर की है। उन्होंने माइन डेवलॅपर एंड ऑपरेटर के कांसेप्ट पर सवाल उठाया है। याचिका में कहा गया है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने अडानी समूह के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर खदानों को निजी कंपनी के हवाले कर दिया है। इस तरह के अनुबंध को सुप्रीम कोर्ट 2014 में पहले ही अवैध घोषित कर चुका है। इसी की वजह से राजस्थान को मिला कोल ब्लॉक रद्द भी हुआ था। इस मामले में एक और याचिका हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की ओर से जयनंदन पोर्ते ने दायर की है।

43 हेक्टेयर जंगल कर चुके साफ

बताया जा रहा है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम और स्थानीय प्रशासन ने 27 सितम्बर को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में वनों की ताजी कटाई शुरू करा दी थी। ग्रामीणों को हिरासत में ले लिया गया था। दो दिन पहले तक पेण्ड्रामार के पास 43 हेक्टेयर क्षेत्र में साल के सैकड़ों साल पुराने पेड़ों को काटकर जमीन समतल की जा चुकी थी। महाराष्ट्र सरकार ने ठीक ऐसा ही काम आरे जंगल की कटाई में किया था। सर्वोच्च न्यायालय में कटाई पर रोक की याचिका पर सुनवाई हुई तो सरकार ने कहा कि जितना पेड़ काटना था उतना तो काट चुके हैं। अब वहां पर शेड बनाने की अनुमति दे दी जाए।

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