दिल्ली पहुंचा हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन : राहुल से मिला प्रतिनिधिमंडल, बताया कि कांग्रेस सरकार जंगल बचाने के वादे से हट रही पीछे

रायपुर। खनन परियोजनाओं से जंगल और गांव को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हसदेव अरण्य के लोग राज्य सरकार से निराश हैं। इस मसले पर ग्रामीणों का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली जाकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मिली है। प्रतिनिधिमंडल ने राहुल गांधी को 2015 में ग्रामीणों से किया उनका वादा याद दिलाया। ग्रामीणों ने कहा, छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार चुनाव के पूर्व किए गए वादों से पीछे हट गई है। उसने जंगलों में खनन का वही रास्ता चुना है जो पिछली सरकार ने बनाया था।
प्रतिनिधिमंडल में शामिल छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने बताया, राहुल गांधी के साथ करीब एक घंटे की बैठक हुई। उनको बताया गया कि भाजपा के 15 साल के शासन में आदिवासी बहुल वन क्षेत्रों को प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए खोल दिया गया था। ग्रामीणों ने विरोध किया तो उसे अनसुना कर दिया गया। 2015 में आप खुद उस क्षेत्र में आए थे। हमारे जंगल को बचाने का वादा किया था। ग्रामीणों ने पिछले चुनाव में इस उम्मीद में कांग्रेस के उम्मीदवारों को जिताया था ताकि सत्ता परिवर्तन से जनपक्षीय कानूनों का पालन सुनिश्चित हो सकेगा।
कांग्रेस सत्ता में तो आई लेकिन अपने किए वादों को पूरा नहीं किया। कांग्रेस सरकार ने भी वही रास्ता चुना जो पिछली सरकार ने बनाया था। आज भी आदिवासी अधिकारों के हनन और मनमानी की गति बिलकुल पिछले सरकार जैसी चल रही है। प्रतिनिधिमंडल ने साफ-साफ शब्दों में कहा, राज्य सरकार ने हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में स्थित पतुरिया-गिद्धमुड़ी कोल ब्लॉक का MDO अडानी समूह को दे दिया। यह पिछली सरकार की गैर कानूनी नीतियों को आगे बढ़ाने जैसा काम है। प्रतिनिधिमंडल में हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह अर्मो, रामलाल करियाम, घाटबर्रा के सरपंच जयनंदन पोर्ते, धजा के सरपंच धन साय, बसंती दीवान,शकुंतला एक्का, भुनेश्वर पोर्ते, ठाकुरराम, बिपाशा शामिल थे।
कानून का पालन नहीं
हसदेव अरण्य वन क्षेत्र को सरकारी दस्तावेजों में हसदेव अरण्य कोल फील्ड्स कहा जाता है। 2015 में इस क्षेत्र के 20 ग्राम सभाओं के विरोध के बावजूद 5 कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए। इसकी प्रक्रिया में वन अधिकारों की मान्यता कानून और भू-अर्जन कानून का पालन होना चाहिए था। लेकिन सरकारों ने ऐसा नहीं होने दिया। वन अधिकार को दरकिनार किया गया। भू-अर्जन कानून के तहत जमीन अधिग्रहण न करके कोल बियरिंग एक्ट लगाया गया, जिसमें ग्रामसभा के अधिकार को किनारे कर दिया गया था। ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाया गया, शिकायत पर सुनवाई नहीं परसा कोयला खदान परियोजना के लिए 841.52 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्सन की प्रक्रिया फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों के आधार पर मिली है। ग्रामीणों ने बार-बार इसकी शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। इस परियोजना को दिनांक 13 फरवरी 2019 को स्टेज-वन स्वीकृति प्रदान की गई। वहीं 21 अक्टूबर 2021 को केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की स्वीकृति जारी की गई है।
कोरबा को संरक्षण, सरगुजा का दोहन
राज्य सरकार ने लेमरू हाथी रिज़र्व प्रोजेक्ट की प्रक्रिया शुरू की थी। इसे बनाने की प्रक्रिया में बहुत विलम्ब हुआ। इसके 1995 वर्ग किमी क्षेत्र से जान बूझ कर उन अधिकांश कोल ब्लॉक को बाहर रखा गया है, जिनका MDO अडानी समूह के पास है। इससे साफ दिख रहा है, हसदेव के कोरबा जिले का भाग राज्य सरकार रिजर्व के तहत संरक्षित करेगी लेकिन सरगुजा जिले में हसदेव के सभी कोल ब्लॉक के दोहन को हरी झंडी दे दी गई है।
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