यहां शिवलिंग के तल पर जल में होता है आकाशगंगा का दर्शन... कहां है यह रहस्यमय शिवलिंग... पढ़िए...

प्रेम सोमवंशी/कोटा। कहते हैं सावन का महीना भगवान भोलेनाथ का महीना है। शास्त्रों के अनुसार इस पूरे महीने भगवान भोलेनाथ पृथ्वी पर रहते हैं। इसलिए हर शिव लिंग में शिव का वास माना जाता है, लेकिन हम आपको सावन के इस पावन महीने में एक ऐसे अद्भुत, अलौकिक और रहस्यमय शिवलिंग के बारे में बताने और दर्शन कराने जा रहे हैं, जिसके दर्शन मात्र से आपका रोम-रोम शिवमय हो जाएगा।
बूढ़ा महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वंयभू
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के मां महामाया की नगरी रतनपुर जिसे लहुरीकाशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर रामटेकरी के ठीक नीचे बूढ़ा महादेव का मंदिर स्थापित है। इस मंदिर को वृद्धेश्वरनाथ के नाम से भी पुकारा और जाना जाता है। कहते हैं कि बूढ़ा महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वंयभू है और यदि इसे गौर से देखें तो भगवान शिव की जटा जिस प्रकार फैली होती है ठीक उसी प्रकार दिखाई देता है। शिवलिंग के तल पर स्थित जल देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानों पूरी आकाशगंगा या ब्रम्हांण्ड इसमें समाया हुआ हो। इस शिवलिंग में जितना भी जल अर्पित कर ले उसका जल उपर नहीं आता और शिवलिंग के भीतर के जल का तल एक सा बना रहता है इस शिवलिंग पर चढ़ाया जल कहां जाता है यह आदिकाल से आज तक इस रहस्य को कोई ना जान सका। सावन के पवित्र माह में भगवान शिव के इस अद्भुत शिव लिंग पर जलाभिषेक करने हजारों की तादात में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। कांवरिये अपने कांवर का जल लेकर बूढ़ा महादेव को चढ़ते हैं।
गाय अपने थनों से दुग्ध छरण कर करती थी रुद्राभिषेक
वृद्धेश्वरनाथ मंदिर प्राचीन मंदिर है। 1050 ई में राजा रत्नदेव ने इस मंदिर का जीणोद्धार किया गया था। यह मंदिर कितना पुराना है, इस बात की जानकारी नहीं है। इस मंदिर को लेकर अनेक किवदंती है, उसके बारे में बताया जाता है कि वर्षों पहले एक वृद्धसेन नामक राजा हुआ करता था। उसके पास अनेक गाय हुआ करती थी, जिसे लेकर चरवाहा जंगल में चराने जाता था तो उसके साथ चरने गई गायों में एक गाय झुण्ड से अलग होकर बांस के धनी धेरे में धुस जाया करती थी और वहां अपने थनों से दुग्ध छरण कर रुद्राभिषेक किया करती थी। यह कार्य प्रति दिन होता था। चरवाहे ने गाय का रहस्य जान इस बात की जानकारी राजा वृद्धसेन को दी। राजा ने भी इस बात की पुष्टी कर आश्चर्य किए बिना ना रह सका। लेकिन राजा को बात समझ नहीं आई। उसी रात भगवान ने राजा को स्वप्न देकर अपने होने का प्रमाण दिया और उस स्थान पर मंदिर बनाए जाने और पूजा किये जाने की बात कही। इस प्रकार राजा वृद्धसेन ने अपने नाम के साथ भगवान का नाम जोड़कर मंदिर का नाम वृद्धेश्वरनाथ मंदिर रखा। आज भी भक्तों के साथ-साथ कांवरिये यहां आते हैं और भगवान भोलेनाथ को जल जढ़ाकर अपनी मनोकमना करते हैं। देखिए वीडियो-
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