यहां है एक ऐसा पावन धाम : गौमुखी में स्नान और पूजन की परंपरा, गोहत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग

उमेश यादव-कोरबा। छ्त्तीसगढ़ का कोरबा जिला बिजली एलुमिनियम और कोयला के साथ-साथ पुरातात्विक और धार्मिक स्थानों में से भी एक हैं। सदियों से यह स्थान यहां पर मौजूद हैं जो अपनी विशेषताओं के साथ लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। देवपहरी का गौमुखी नामक स्थान भी इसी में से एक है। जहां हर समय स्नान और दर्शन पूजन की परंपरा बनी हुई है। माघ मास में यहां प्रकृति प्रेमियों की उपस्थिति औसत से ज्यादा है।
उल्लेखनीय है कि, सनातन संस्कृति में जल तत्व का विशेष महत्व है और अलग-अलग कारणों से उसके प्रति लोगों की श्रद्धा बनी हुई हैं। धार्मिक कार्यों के सिलसिले में वरुण पूजन की परंपरा अनिवार्य रूप से निभाई जाती हैं। नदियों के स्रोत से लेकर कलकल बहते झरने से लेकर पवित्र सरोवर में स्नान के पीछे धर्म अध्यात्म और विज्ञान की दृष्टि शामिल है। जिला मुख्यालय कोरबा से 7 किलोमीटर दूर देवपहरी गांव में गौमुखी की पहचान इनसे अलग है। पहाड़ी से निरंतर निकलने वाली जलधारा बहते हुए यहां एक स्थान पर गिरती है। इस जगह को संरचना के आधार पर गोमुखी का नाम मिला हुआ है। माना जाता है कि इसकी बनावट गाय के मुख के समान है।
गौ हत्या के दोष से मिलती है मुक्ति
इस स्थान को लेकर कई प्रकार की मान्यताएं प्रचलित है। जन विश्वास है कि जाने अनजाने में गौ हत्या का दोष लगने पर इसकी मुक्ति के लिए यहां पर विधिवत पूजन अर्चन किया जाता है। छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि बड़े हिस्से से लोग यहां पहुंचते हैं। ऐसे स्थानों पर लोगों की पहुंच लगातार बनी हुई है, यह सुखद है। प्रकृति की अनमोल धरोहर इस प्रकार के स्थान बने हुए हैं। इनके संरक्षण के लिए सरकारी स्तर पर बहुत कुछ किया जाना चाहिए।
झुंझा जलप्रपात भी है आकर्षण
कोरबा के देवपहरी में नदी पर गोविंद झुंझा जलप्रपात भी आकर्षण के रूप में विख्यात है। जिसे निहारने के लिए हर मौसम में सैलानियों की पहुच हो रही है। जल प्रपात से पूर्व यहां एक स्पॉट पर पहुचने के लिए उत्साही वर्ग लोहे के पाइप का सहारा लेता है। कई दशक बीतने के बाद क्षेत्र में लोगों ने उन्नत खेती और स्वावलंबन के लिए कई माध्यम चुने हैं। इसके सहारे उनके जीवन को नए अर्थ मिल रहे हैं।

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