टाइगर रिजर्व में मानव जीवन का मोल नहीं : बैगा आदिवासी जूझ रहे सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थ्य सुविधा के लिए.. देखिए वीडियो.. यहां कैसे खाट पर लदा है सिस्टम

टाइगर रिजर्व में मानव जीवन का मोल नहीं : बैगा आदिवासी जूझ रहे सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थ्य सुविधा के लिए.. देखिए वीडियो.. यहां कैसे खाट पर लदा है सिस्टम
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यहां महामाई वन ग्राम की रहने वाली एक बैगा आदिवासी महिला को प्रसव पीड़ा होने पर परिजनों ने उसे खाट पर बिठाकर न सिर्फ नदी पार कराया बल्कि 3 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल में भर्ती कराया गया। पढ़िए पूरी खबर...

राहुल यादव-लोरमी। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में अचानकमार टाइगर रिजर्व के अंदर बसे गांवों में रहने वाले बैगा आदिवासी आज भी मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं। कहने को तो ये भारत के राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहलाते हैं, लेकिन इनके पास सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं होता। यहां आज भी सिस्टम खाट पर है। सरकार की योजनाएं इन लोगों तक पहुँचते-पहुँचते दम तोड़ देती हैं। सड़क, बिजली, पानी, अस्पताल जैसे सुविधाएं आज भी इनके लिए दूर की कौड़ी ही हैं। सरकार और प्रशासन दोनों ही इनकी अनदेखी करते नजर आ रही हैं।

दरअसल अचानकमार टाइगर रिजर्व के वनांचल में आज भी सिस्टम खाट पर नजर आ रही है। यहां महामाई वन ग्राम की रहने वाली एक बैगा आदिवासी महिला को प्रसव पीड़ा होने पर परिजनों ने उसे खाट पर बिठाकर न सिर्फ नदी पार कराया बल्कि 3 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल में भर्ती कराया गया। बारिश के दिनों में नदी नाले उफान पर हैं। ऐसे में जान जोखिम में डालकर आदिवासी ग्रामीण अस्पताल पहुंचने को मजबूर हैं।

खाट पर लिटाकर, कंधे पर लादकर 4 किमी. चलने के बाद अस्पताल पहुंचे

अभी हाल ही में इसी ग्राम पंचायत की एक आदिवासी महिला को सांप ने काट लिया था, उसके बाद उसे आनन फानन में खाट में लिटाकर कंधे पर उठाकर 4 किलोमीटर पैदल चल कर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। महिला तो बच गई लेकिन सिस्टम अब तक वही है। मीडिया में खबर दिखाने के बाद प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जंगल में जाकर कुछ लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया था, तब उस वक्त तमाम विकास की बातें भी सामने आई थीं। लेकिन आज फिर समस्याएं जस की तस हैं। आज फिर से एक बार वही तस्वीर निकल कर सामने आई है।

पांच किमी. चलने पर हो पाती है एम्बुलेंस की व्यवस्था

वनांचल के ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव में किसी भी चीज की व्यवस्था नहीं है। गांव में कोई भी बीमार पड़ता है तो उसे खाट में बिठाकर ही नदी पार कराया जाता है। वहां से पांच किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद ही एम्बुलेंस की व्यवस्था हो पाती है। गांव में स्वास्थ्य कार्यकर्ता तो हैं, लेकिन दवाइयां समय पर उपलब्ध नहीं हो पातीं, जिससे कई बार लोगों की जान पर बन आती है। ग्रामीणों का कहना है कि ये समस्या आज की नहीं, बल्कि कई सालों से है। कितने ही नेता-मंत्री और कलेक्टर आये लेकिन समस्याएं आज भी जस की तस है।

महिला के अस्पताल पहुंच जाने के बाद प्रशासन पहुंचा अपनी पीठ थपथपाने

वहीं, खाट वाली व्यवस्था से चलकर जब आदिवासी महिला अस्पताल पहुंच गई तब प्रशासन की टीम भी अपनी पीठ थपथपाने वहां पहुंच गया। जब इस मामले में लोरमी तहसीदार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि एक गर्भवती महिला वनांचल से इलाज के लिए आई है। उनका इलाज चल रहा है और वह अभी स्वस्थ है। रही बात, वहां के ग्रामीणों की और उनकी परेशानी की, तो उसके लिए कलेक्टर से बात की गई है।

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भी कुछ मूलभूत जरूरतों को लेकर मांग

वहीं, स्वास्थ्य विभाग के BMO ने बताया कि वनांचल के 10 गांव ऐसे हैं जो बरसात में पहुंचविहीन हो जाते हैं। ऐसे में हमने वहां भी अपनी स्वास्थ्य कार्यकर्ता के द्वारा बैगा आदिवासी ग्रामीणों के इलाज की व्यवस्था की है। कार्यकर्ता के द्वारा ग्रामीणों को दवाओं की व्यवस्था की जाती है, लेकिन हमारे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भी कुछ मूलभूत जरूरतें हैं। इन जरूरतों को पूरा किया जाए, इसके लिए कलेक्टर साहब से मांग की गई है। वनांचलों में महिला कार्यकर्ता की जगह पुरुष कार्यकर्ताओं की मांग की गई है। देखिए वीडियो..


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