पति बोला, मेरी पत्नी जींस-टॉप पहनती है, बच्चे की कस्टडी मुझे दी जाए : हाईकोर्ट ने कहा- पहनावे से महिला के चरित्र का आकलन करना गलत

पति बोला, मेरी पत्नी जींस-टॉप पहनती है, बच्चे की कस्टडी मुझे दी जाए : हाईकोर्ट ने कहा- पहनावे से महिला के चरित्र का आकलन करना गलत
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बच्चे की कस्टडी को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दायर याचिका पर अदालत ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि जींस-टी शर्ट पहनने और किसी पुरुष के साथ घूमने से महिला के चरित्र का आकलन नहीं किया जा सकता। पढ़िए पूरी खबर...

बिलासपुर। बच्चे की कस्टडी को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दायर याचिका पर अदालत ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि जींस-टी शर्ट पहनने और किसी पुरुष के साथ घूमने से महिला के चरित्र का आकलन नहीं किया जा सकता। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट महासमुंद के आदेश को रद्द कर दिया है और बच्चे को उसके पिता से मिलवाने की शर्त पर उसकी मां को सौंपने का आदेश दिया है।

दरअसल इस मामले में पिता ने अभिभावक अधिनियम 1890 की धारा 25 के तहत फैमिली कोर्ट में एक आवेदन प्रस्तुत कर बच्चे को संरक्षण में लेने की मांग की थी। बच्चा उसकी तलाकशुदा पत्नी और अपनी मां के साथ रहता था। इससे पूर्व पति और पत्नी के बीच विवाह को भंग करने वाली तलाक के आदेश में बच्चे की कस्टडी मां को दी गई थी। फैमिली कोर्ट में दिए अपने आवेदन में बच्चे के पिता ने आरोप लगाया था कि उसके बच्चे की मां किसी दूसरे पुरुष के संपर्क में रहती है। इससे बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा। इस आधार के साथ ही आवेदन में महिला के पहनावे पर भी सवाल उठाए। पति ने यह तर्क दिया कि यदि बच्चे को उसकी कस्टडी में रखा जाता है, तो बच्चे के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। पति ने फैमिली कोर्ट में दिए आवेदन में यह आरोप भी लगाए की महिला का अवैध संबंध है। शराब, गुटखा का सेवन और सिगरेट भी पीती है। वह जींस-टी शर्ट पहनती है और उसका चरित्र भी अच्छा नहीं है। इसलिए उसके साथ रहने से बच्चे पर गलत असर पड़ेगा। इस आधार पर फैमिली कोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा पिता को देने का आदेश दे दिया।

फैमिली कोर्ट के इस आदेश को बच्चे की मां ने चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की। इसमें महिला के वकील सुनील साहू ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट का आदेश केवल तीसरे व्यक्ति के बयान पर आधारित है। मौखिक बयानों के अलावा तथ्य को स्थापित करने और पत्नी के चरित्र के अनुमान लगाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है। दोनों पक्षों के गवाहों की ओर से दिए साक्ष्यों का परीक्षण करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि पिता की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य उनके अपने विचार और अन्य लोगों की बातों पर आधारित है। इस संबंध में हाईकोर्ट ने कहा कि यदि एक महिला को अपनी आजीविका के लिए नौकरी करने की आवश्यकता है तो स्वाभाविक रूप से उसे एक जगह से दूसरे जगह जाने की जरूरत होगी। सिर्फ इस तथ्य के कारण कि वह सार्वजनिक रूप से पुरुष के साथ कार में आना-जाना करती है। इसके आधार पर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि उसके चरित्र में दाग है। कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर बच्चे की कस्टडी मां को सौंप दी। न्यायालय ने यह भी माना कि बच्चे को अपने माता-पिता का समान रूप से प्यार और स्नेह पाने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने बच्चे के पिता को उससे मिलने और संपर्क करने की सुविधा भी दी है।

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