मुसाफ़िर हूँ यारों, ना घर है ना ठिकाना : मुसाफ़िर सड़कों पर... रैन बसेरा में चल रहा मसाज...!

मुसाफ़िर हूँ यारों, ना घर है ना ठिकाना : मुसाफ़िर सड़कों पर... रैन बसेरा में चल रहा मसाज...!
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गरीबी व तंगहाली के कारण दिन सड़कों में तो रात किसी बंद दुकान के बाहर काटना मजबूरी बन जाए , दूर दराज से आए मुसाफिर रात काटने को ठिकाना ढूंढे? रैन बसेरा का व्यावसायिक उपयोग हो रहा हो इस पर जिम्मेदार अधिकारी अपने घरों में चैन की नींद ले तो मानवता से भरोसा उठ जाता है।

रविकांत सिंह राजपूत, कोरिया. गरीबी व तंगहाली के कारण दिन सड़कों में तो रात किसी बंद दुकान के बाहर काटना मजबूरी बन जाए , दूर दराज से आए मुसाफिर रात काटने को ठिकाना ढूंढे? रैन बसेरा का व्यावसायिक उपयोग हो रहा हो इस पर जिम्मेदार अधिकारी अपने घरों में चैन की नींद ले तो मानवता से भरोसा उठ जाता है।

सर्दी, गर्मी या बरसात बेघरों के लिए जीवन हर दिन नई मुश्किलें खड़ी करता है। और इन्हीं मुश्किल के बीच मांग कर अपना गुजर बसर करने वाले एक अदद आशियाना ना होने पर रात किसी दुकान के बाहर, रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर गुजारना मजबूरी हो जाती है। रात के समय मुसाफिर परेशान ना हो इसलिए शासन ने रैन बसेरा का निर्माण करवाया था। जनपद पंचायत द्वारा संचालित रैन बसेरा भवन रंग रोगन के बाद भी किसी जरूरतमंद के काम नहीं आ रहा बल्कि जनपद में बैठे कुछ लोगों द्वारा इसके आँगन में दुकान का निर्माण करवाया जा रहा एवं वर्तमान में रैन बसेरा में एक्यूप्रेशर ट्रीटमेंट कैंप चल रहा है। ‌

जरूरतमंद लोगों के लिए बना भवन को कमाई का जरिया बनाया जा रहा है। जानकारी के अनुसार रैन बसेरा भवन को कुछ वर्ष पहले महिला समूह को दे दिया गया था। रैन बसेरा ना होने पर तत्कालीन कलेक्टर के नाराज होने पर बड़ी मुश्किल से खाली करवा कर समूह को दूसरे भवन में शिफ्ट किया है। अब उस भवन का व्यावसायिक उपयोग एवं दुकान बना कर जनपद पंचायत कमाई करना चाह रहा है।

महिलाएं बस स्टैंड में सोने को मजबूरसाप्ताहिक बाजार के दिन दूर-दराज से सब्जी व अन्य सामान बेचने आने वाली महिलाएं वापसी का कोई साधन नहीं होने पर रात खुले में बस स्टैंड में सोने को मजबूर होती हैं। कई बार इन महिलाओं को छेड़खानी का शिकार होना पड़ता है। वही महिला सुरक्षा के बड़े -बड़े दावों के बीच यह तस्वीरें सोचने को मजबूर करती है।





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