Independence Day : मप्र के 39 साल पुराने अभिलेख में दर्ज है रायपुर

Independence Day : मप्र के 39 साल पुराने अभिलेख में दर्ज है रायपुर
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बड़ी संख्या में मातृशक्ति ने भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया सजा भी मिली और दिक्कतें भी झेलीं। पढ़िए पूरी खबर...

सचिन अग्रहरि- राजनांदगांव। इस साल देश अपनी आजादी की 76वीं वर्षगांठ (76th anniversary of independence )मनाने जा रहा है। प्रदेशभर में इसके आयोजन को लेकर व्यापक तैयारियां की जा रही है, जिस आजादी का सुखद अनुभव हम पिछले साढ़े सात दशक से महसूस कर रहे हैं, उसे हासिल करने के लिए छत्तीसगढ़ के हजारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों (freedom fighters)ने अपना खून- पसीना बहाया था। देश के अन्य प्रांतों की तरह ही छत्तीसगढ़ में भी अंग्रेजों के खिलाफ लगातार आंदोलन होते रहे। इस दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi )ने भी कई मौके पर इस लड़ाई का शंखनाद किया और रायपुर, धमतरी और कुरूद (Raipur, Dhamtari and Kurud )जैसे इलाकों का दौरा कर स्वराज के लिए निधि संग्रहित किया था।

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित पुस्तक के अनुसार अंग्रेजों से देश को आजादी दिलाने के लिए अविभाजित रायपुर में 1856 से 1947 तक चले संघर्ष के बीच कुल 870 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी अहम भूमिका निभाई । तत्कालीन दौर में न केवल पुरुषों ने बल्कि महिलाओं के साथ युवाओं ने भी आजादी के लिए अपना बलिदान दिया था। रायपुर में लगातार चले स्वतंत्रता संग्राम को लेकर अंग्रेजों में खलबली मची रही और यही कारण रहा कि समय-समय पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए उन्होंने कोड़े मारने से लेकर फांसी तक की सजा सुनाई।

हरिभूमि के पास 39 साल पुराने दस्तावेज

आजादी की लड़ाई के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की यादों को संजोने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने सन 1984 में एक पुस्तक का प्रकाशन कराया था। इस पुस्तक के संपादक मंडल में कन्हैयालाल खादीवाला, मगनलाल बागड़ी, शिवकुमार श्रीवास्तव, देशराज सिंह चौहान, श्यामनारायण कश्मीरी, रामआश्रय उपाध्याय, ठाकुरदास तथा डॉ. सिद्धनाथ शर्मा को शामिल किया गया था। इस पुस्तक में राज्य के सरगुजा संभाग को छोड़कर अन्य सभी संभागों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की शौर्यगाथा उल्लेखित है।

1856 से शुरू हुआ था संघर्ष

छत्तीसगढ़ के रायपुर संभाग में 1856 से आजादी की लड़ाई का शखनाद सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह (Narayan Singh)ने किया था। अंग्रेजों से उन्होंने कड़ा मोर्चा लिया, जिससे नाराज होकर अंग्रेजों ने 19 दिसंबर 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक(Jaistambh Chowk in Raipur) में उन्हें तोप से उड़ा दिया था। इसके बाद आजादी के लिए संघर्ष जारी रहा। 1858 को मेजर सिडवेल की हत्या की गई। इस घटना के बाद 17 लोगों को फांसी दी गई।नारी शक्ति ने भी दिया मुंहतोड़ जवाब स्वतंत्रता के लिए जंग में रायपुर संभाग की महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने लड़ाई में अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब भी दिया। अंग्रेजों ने उन्हें जेल की सजा भी सुनाई। रायपुर संभाग से देववतीबाई, भगवती, भागीरथीबाई, नहरीबाई, भवानी, भवंतीन, फुलकंवरबाई, केकतीबाई बघेल, सुमतिबाई, रोहणी, रूकमणीबाई, राधाबाई, रामवती वर्मा, राजकुंवर बघेल, मनटोराबाई, मनमत और दयाबाई ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया।

धमतरी में राजनीतिक सम्मेलन

पुस्तक में दर्ज है कि धमतरी में 1918 में राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता वामनराव लाखे ने की। 1919 में फिर दूसरा सम्मेलन आयोजित हुआ। जिसकी अध्यक्षता दादा साहेब खापर्डे ने की। इस सम्मेलन के जरिये ही राजनैतिक आंदोलन (political conference)का नया युग शुरू हुआ था।

स्कूल बंद, लौटा दीं थी डिग्री

अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का रायपुर में ऐसा आगाज हुआ कि स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। ऐसे में छात्रों के लिए रायपुर में 1921 में राष्ट्रीय विद्यालय खोला गया। जिसमें माधवराव सप्रे, महंत लक्ष्मीनारायण दास, एनडी दानी, शिव दास डागा की अहम भूमिका रही। रायपुर के समीप आरंग, पुरैना, तम्बोरा, राजिम, सिहावा में 1930 के दशक में जंगल सत्याग्रह ने भी अंग्रेजों के होश उड़ा दिए थे।

रायपुर की बैठक से स्वदेशी आंदोलन का आगाज

आजादी की लड़ाई में रविशंकर शुक्ल की अहम भूमिका रही। 1907 में रायपुर में तीसरा राजनैतिक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन से स्वदेशी आंदोलन प्रारंभ हुआ और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया। 1920 में रायपुर में जिला सम्मेलन आयोजित कर अंग्रेजों के खिलाफ उप समिति का गठन किया गया।

1920 में रायपुर आए थे गांधीजी

नागपुर के अधिवेशन के पहले 20 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी ने रायपुर का दौरा किया। उन्होंने रायपुर, धमतरी और कुरूद का दौरा कर तिलक निधि और स्वराज्य निधि के लिए राशि एकत्रित किया था। इस दौरान ही जिला कांग्रेस समिति का गठन किया गया। जिसके पहले अध्यक्ष बैरिस्टर ठक्कर तथा सचिव पं. रविशंकर शुक्ल बनाए गए। इसके बाद गांधीजी 1933 में फिर रायपुर जिले के दौरे पर आए और उन्होंने यहां हरिजन फंड के लिए 74 हजार रुपए एकत्र किया था। 1936 में पं. जवाहरलाल नेहरू ने रायपुर में एक सम्मेलन को संबोधित भी किया।

लगान के विरोध का ऐलान

10 जनवरी 1932 को रायपुर की एक सभा में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने लोगों को शासन के विरोध में लगान न देने का ऐलान किया। जिसके कारण उन्हें दो साल की कैद और 150 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई। 1932 में लालकुर्ती दल का समर्थन करने पर पंडित रविशंकर शुक्ल को गिरफ्तार किया गया।

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