International Yoga Day : योग खींच लाया पौलेंड से, दो साल बनारस में साधना

रुचि वर्मा. रायपुर. योग की शक्ति और ध्यान की युक्ति से प्राचीन भारत मौजूदा पीढ़ियों को साक्षर करता रहा है और अब यह विदेशी सरजमीं पर भी पहुंच चुकी है। देश की इस पुरातन विद्या के कायल विदेशी भी हैं। मोह माया के जाल से निकलकर योग माया की शरण में इनको लाने वाले भारतीय विशेषज्ञ ही हैं। योग दिवस के अवसर पर हरिभूमि ने ऐसी ही शख्सियतों से बातचीत कर योग की विदेशी धरती तक के सफर को समझने का प्रयास किया।
पौलेंड के रहने वाले क्रज़स्टॉफ़ स्टेक 2008 में भारत आए थे। यहां आने का उनका सिर्फ एक ही उद्देश्य था, योग की बारीकियों को समझना। यहां आकर उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से शारीरिक शिक्षा में स्नातकोत्तर की उपाधि ली। उनकी विशिष्टता योग में रही। 67 वर्षीय क्रज़स्टॉफ़ स्टेक ने जब योग सीखने भारत आए थे, तब उनकी उम्र 50 वर्ष से अधिक थी। योग के प्रति भारतवासियों का ज्ञान उन्हें यहां खींच लाया। दो वर्षों तक बनारस में रहकर उन्होंने योग की बारीकी सीखी। प्रो. पैट्रिक कोज़ुबी पौलेंड के जेन ड्ल्यूग्ज़ यूनिवर्सिटी में छात्रों को योग सीखाते हैं।
वहां के छात्र योग में अत्यधिक दिलचस्पी लेते हैं। ना सिर्फ उनका बल्कि उनके छात्रों का भी मानना है कि इससे ना केवल शारीरिक बल्कि मानसिक परेशानियों से भी लड़ने में सहायता मिलती है। उनके छात्र भी नियमित रूप से योग करते हैं। ना सिर्फ वे बल्कि उनकी पुत्री भी प्रभावित होकर कुछ वर्ष पहले बनारस आईं। यहां आकर उसने दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया। वे कहते हैं, मैं भाग्यशाली हूं कि शुरुआत में ही सहज योग के विषय में जानने को मिला। एक बहुत ही सुंदर ध्यान पद्धति है, जहां यह सबकुछ आत्म-साक्षात्कार से शुरू होता है। मुझे पहले लगता था कि योग केवल पूर्व के देशों के लिए अच्छा है, लेकिन यह पूरे ब्रम्हांड के लिए है।
आत्मा से मिलन है योग
पौलेंड के ही रहने वाले पैट्रिक कोज़ुबी भी योग से लंबे वक्त से जुड़े हुए हैं। योग को लेकर उनका ऐसा जुड़ाव है कि जब भी कोई योग विशेषज्ञ भारत से वहां जाते हैं तो उनसे मुलाकात अवश्य करते हैं। हरिभूमि से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा, 'योग' शब्द से पश्चिमी देशों के लोगों के दिमाग में सबसे पहले शारीरिक व्यायाम के चित्र उभरते हैं। लेकिन योग के मायने और महत्व बहुत गहरे हैं। योग शब्द का मूल अर्थ मिलन है।
जर्मनी में यह धारणा, भारत से हैं मतलब योग के ज्ञाता
जर्मनी के अधिकतर लोगों में यह धारणा है कि यदि कोई भारत से है तो वह योग का ज्ञाता होगा ही। मानसिक शांति के लिए वहां के लोग ध्यान को प्राथमिकता देते हैं। ऐसा नहीं है कि कुछ लोग ही इससे जुड़े हुए हैं। कई परिवार में पीढ़ियां इससे जुड़ी हुई हैं और वे साथ में इसे करते हैं। जर्मन के लोगों के विषय में ये अनुभव हमारे साथ साझा किए पं. रविशंक शुक्ल विवि में शारीरिक शिक्षा विभाग के प्राध्यापक और योग विशेषज्ञ प्रो. राजीव चौधरी ने। उन्हें शोध संबंधित व्याख्यान के लिए जर्मनी के ट्रायर यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंस में आमंत्रित किया गया था। लेकिन जब उन्हें भारत से होने की जानकारी मिली तो आसपास के लोगों ने उनसे योग और ध्यान के संबंध में जानकारी ली।
कई पीढ़ी जुड़ी
इनमें से कुछ सोशल मीडिया के जरिए पहले से ही परिचित थे। प्रो. चौधरी बताते हैं कि वहां के लोग पहले से ही योग और ध्यान को लेकर जागरुक थे। 90 से अधिक आयु की कई महिलाएं भी एक साथ याेग और ध्यान करती हुई वहां नजर आईं। इनमें से कई लंबे वक्त से इन चीजों का अभ्यास कर रही थीं, इसलिए उनमें विशेषज्ञा भी दिखी। ना सिर्फ वे बल्कि उनके साथ उनके बच्चे भी ध्यान करते हैं।
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