सोच को ऊंची रख हम हिमालय से भी ऊंचे उठ सकते हैं : संत श्री ललित प्रभ महाराज

राजनांदगांव। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि नकारात्मक सोच तोड़ती है, सकारात्मक सोच जोड़ती है। साधारण किस्म के लोग गिलास आधा खाली देखते हैं, समझदार लोग गिलास आधा भरा देखते हैं। ऊँचाई छूने वाले लोग गिलास पूरा भरा देखते हैं। ताड़ासन करके भी हम अपनी हाइट 2 इंच से ज्यादा नहीं बढ़ा सकते, पर सोच को ऊँची उठाकर एवरेस्ट से भी ज्यादा ऊँचे हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर के घर से हम में से हर इंसान को एक बहुत बड़ी ताकत मिली है, वह है - सोचने-समझने की क्षमता। अपनी इस एक क्षमता के बलबूते इंसान संसार के समस्त प्राणियों में सबसे ऊपर है। हम सोच सकते हैं इसीलिए हम इंसान हैं। यदि हमारे जीवन से सोचने की क्षमता को अलग कर दिया जाए तो हमारी औकात किसी चैपाये जानवर से अधिक न होगी।
संतप्रवर सनसिटी परिवार द्वारा सन सिटी कॉलोनी में आयोजित प्रवचन माला के प्रथम दिन श्रद्धालुओं को जीने की कला सिखाते हुए संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आपकी सोच आपके विचारों को, विचार वाणी को, वाणी व्यवहार को, व्यवहार आपके व्यक्तित्व को प्रेरित और प्रभावित करता है। एक सुंदर और
खूबसूरत व्यक्तित्व, व्यवहार, वाणी और विचारों का मालिक बनने के लिए अपनी सोच को कुतुबमीनार जैसी ऊँची, ताजमहल जैसी सुन्दर और देलवाड़ा के मन्दिरों जैसी खूबसूरत बनाइए। उन्होंने कहा कि सोच को सुन्दर बनाना न केवल अपने संबंध, सृजन और आभामंडल को सुन्दर तथा प्रभावी बनाने का तरीका है बल्कि सुन्दर सोच परमपिता परमेश्वर की सबसे अच्छी पूजा है। संतश्री ने कहा कि अच्छी सोच स्वयं ही एक सुन्दर मंदिर है जहाँ से सत्यम शिवम सुन्दरम का मन लुभावन संगीत अहर्निश फूटता रहता है। सोच अगर सुन्दर है तो स्वर्ग का द्वार सदा आपके लिए खुला है। राष्ट्र-संत ने सभी श्रद्धालुओं को निवेदन किया कि जरा दो मिनट के लिए इस संसार के प्रति अच्छी सोच लाकर देखिए, आपको किसी दूसरे स्वर्ग को पाने की बजाय इसी धरती को स्वर्ग जैसा सुन्दर बनाने की तमन्ना जग जाएगी। उन्होंने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री और अब्दुल कलाम जैसे लोग गरीब घर में पैदा होकर भी और धीरूभाई अंबानी इंटरमीडियट होकर भी शीर्ष पर पहुँच गए, तो फिर हम ही मुँह लटकाए मायूस क्यों बैठे हैं। जीवन में फिर से जोश जगाएँ और कामयाबी के आसमान को छूने के लिए अभी इसी वक्त छलांग लगा दें। उन्होंने कहा कि आपकी हाइट अगर साढ़े पाँच फुट की है तो ताड़ासन करके भी आप अपने सिर को छह फुट से ऊँचा नहीं कर सकते, पर आप अपनी सोच को ऊँचा उठाना चाहें तो हिमालय से भी ऊपर उठ सकते हैं।
इससे पूर्व डॉ. मुनि श्री शांतिप्रिय सागर जी महाराज ने कहा कि जिसके पास धन है वह भाग्यशाली, जिसके पास धन व स्वास्थ्य है वह महाभाग्यशाली, पर जिसके पास धन और स्वास्थ्य के साथ धर्म भी है वह है सौभाग्यशाली। उन्होंने कहा कि धर्म दीवार नहीं द्वार है। धर्म के नाम पर मानव जाति को तोडना पाप है। धर्म का जन्म इंसानियत को जोडने के लिए हुआ है, तोडने के लिए नहीं। धर्म का संबंध केवल मंदिर, मस्जिद, सामायिक, पूजा-पाठ से नहीं, जीवन से है। जो चित्त को निर्मल और कषायों को कमकर जीवन को पवित्र करे वही सच्चा धर्म है। व्यक्ति खुद भी सुख से जिए और औरों के लिए भी सुख से जीने की व्यवस्था करे इसी में धर्म का सार छिपा हुआ है। उन्होंने कहा कि जो क्रोध के वातावरण में भी शांत रहता है, लोभ का निमित्त मिलने पर भी संतोष रखता है, अहंकार की बजाय सरलता दिखाता है और वासना के माहौल में भी संयम को बरकरार रखता है वही सच्चा धार्मिक कहलाता है।
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