CG News : रामायण में जिस खंजन पक्षी का है जिक्र... पढ़िए, वो आजकल छत्तीसगढ़ के किस इलाके में बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे हैं...

CG News : रामायण में जिस खंजन पक्षी का है जिक्र... पढ़िए, वो आजकल छत्तीसगढ़ के किस इलाके में बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे हैं...
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शीत ऋतु का आगमन होते ही प्रवासी पक्षी भी क्षेत्र में पहुंचने लगे हैं। जिले के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में पाए जाने वाला खंजन पक्षी देखा गया है...पढ़े पूरी खबर

रामचरित द्विवेदी-मनेंद्रगढ़- छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ में शीत ऋतु का आगमन होते ही प्रवासी पक्षी भी क्षेत्र में पहुंचने लगे हैं। जिले के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में पाए जाने वाला खंजन पक्षी देखा गया है। जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से करीब 4 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम साल के अभिनय पाण्डेय ने सुबह-सुबह खिड़की पर एक पक्षी को बैठे देखा, इस दौरान इसकी तस्वीर खींच ली, अभिनय ने बताया कि, उन्हें पेड़ पौधों और पक्षियों के बारे में पढ़ना और जानना पसंद है।

अध्ययन करने पर क्या पता चला...

अभिनय ने कहा कि, पंछी के बारे में अध्ययन किया तो पता चला कि यह वन खंजन है। इसका धार्मिक महत्व रामायण में बताया गया है। पक्षियों की प्रजाति के बारे में अच्छी जानकारी रखने वाले सुरेंद्र ने भी वन खंजन की पुष्टि की है। यह पक्षी वन क्षेत्र में पाए जाते हैं। पूर्वी एशिया के इलाकों में प्रजनन करते हैं और भारत से लेकर इंडोनेशिया तक सर्दियों में यात्रा करते हैं। इसकी विशिष्ट संरचना इसे अन्य वैगटेल्स से अलग करती है। सभी वैगटेल अपनी पूंछ उपर-नीचे हिलाते हैं, जबकि ये अपनी पूंछ दाएं-बाएं हिलाते हैं। इसकी पीठ सिलेटी भूरे रंग की होती है। इस पर हल्की जामुनी और पीले रंग की होती है। खंजन भारतीय साहित्य का एक चिर परिचित पक्षी है। इसे खिंडरीच खंजारिथ, खंडलिच, पिनाकी, खैरा, धोबन, बाल कटारा, बालीभाती, तिपोषी जैसे कई नाम से और अंग्रेजी में इसे ग्रे वेगटेल के नाम से जाना जाता है।

रामचरित मानस में वनवास के समय जब महिलाएं सीता जी से पूछती हैं कि दो सुंदर सशक्त युवकों में उनके पति कौन हैं? तब सीताजी रामचंद्रजी का नाम न लेकर हाथ सेइशारा कर कहती हैं, "खंजन मंजु तिरीछे नयननि। निज पति कहेउ तिन्हहिं सिय सैननि।" अपने खंजन के समान सुंदर नयनों से रामचंद्र जी की तरफ तिरछे देखते हुए कहती हैं, यही मेरे पति हैं।

प्रवास पर पहुंचने वाला सबसे पहला पक्षी...

जानकारी के अनुसार, हिमालय पर रहने वाले ऋषियों ने इसे खंजन का नामा दिया है। इसे ग्रे-वैगटेल या ग्रे-खंजन के नाम से भी जाना जाता है, जो अपनी लंबी दुम, सलेटी-पीठ और पीले पेट के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। हिमालय पर रहने वाला यह खंजन उत्तर भारत के क्षेत्रों के साथ मुंबई और दक्षिणी पठार के कई क्षेत्रों तक पहुंच जाता है।

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