कोरबा : NGT की बात को पर्यावरण विभाग के अधिकारी ने नकारा, कहा- हसदेव नदी उद्योगों के कारण नहीं, घरेलू कचड़े के कारण प्रदूषित

उमेश यादव, कोरबा। पिछले 15 साल के औद्योगिककरण ने हमारी हसदेव को राख की परत के आगोश में ले लिया। निर्मलता बहने वाली हसदेव अब राख व मटमैली हो चुकी है। पानी की धार के साथ नदी की रंगत भी अब बदल रही है। हसदेव नदी महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। यह कोरबा के कोयला क्षेत्र में व चांपा के मैदान क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदी है। यह नदी कोरिया जिले के सोनहत की पहाडिय़ों से निकलकर कोरबा व बिलासपुर जिलों में बहती हुई महानदी में मिल जाती है। हसदेव का अधिकांश प्रवाह क्षेत्र ऊबड़-खाबड़ है। इसकी कुल लंबाई 333 किमी है। इस नदी पर 1986 में बांगो मिनीमाता बांगो परियोजना की स्थापना की गई।
सन् 1995 के दौर में हसदेव नदी बहुत ज्यादा प्रदूषित नहीं थी। कारण यह कि छुरी और गोपालपुर में नदी के मुहाने वनों से घिरे हुए थे। नदी में मिलने वाले छोटे-छोटे नालों में भी साफ पानी बहता था। इसके बाद सन 2000 के आसपास गोपालपुर के समीप गांव धनगांव में राखड़ डेम बनाया गया। संयंत्रों से लगातार राखड़ छोड़ा गया। सन् 2005 से 10 के बीच कई निजी कम्पनियों की संयंत्र शुरु होने के बाद नदी में राखड़ और प्रदूषित पानी प्रवाह होने का सिलसिला शुरु हुआ। इधर हसदेव नदी में चार रेत खदानों से अवैध रेत उत्खन्न जमकर हुआ। बांगो डेम से सतरेंगा, दर्री, सर्वमंगला से होकर बहने वाली हसदेव नदी फिलहाल सिर्फ दर्री तक ही निर्मल स्थिति में हैं। इसके आगे तीन प्रदूषित नालों के कारण नदी में सिर्फ राख ही बह रही है। पीने के लिए दूर की बात मवेशियों को धोने के लिए भी पानी का उपयोग नहीं किया जा सकता।
नदी की स्थिति को लेकर प्रबुद्ध वर्ग भी अपनी चिंता लगातार व्यक्त कर रहा है। कहा जा रहा है कि औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए जन सुनवाई के दौरान जो मापदंड तय किए जाते हैं, वे इकाइयों की स्थापना के बाद कहीं ना कहीं दरकिनार कर दिए जाते हैं। इन्हीं कारणों से प्रदूषण की स्थिति बढ़ती जा रही हैं। कोरबा जिले में यह खतरा जन स्वास्थ्य नुकसान का कारण बन रहा है।
सतरेंगा से होकर झोराघाट से बहते हुए नदी जैसे ही धनगांव स्थित एनटीपीसी राखड़ डेम के समीप पहुंचती हैं। प्रदूषण का पहला दौर इसी जगह से शुरु होता है। राखड़ डेम नदी के मुहाने में हैं। प्रबंधन ने डेम से नदी तक बकायदा पाइपलाइन बिछाई है। डेम में राखड़ न उड़े इसके लिए रोजाना पानी डाला जाता है। जब भी पानी ओवरफ्लो होता है, राखडय़ुक्त पानी पार्टरुम से बहकर पाइप के माध्यम से सीधे नदी में प्रभावित हो जाती है। नदी के इस तट पर एक सिरे से खड़े होकर दूसरी ओर देखेंगे तो निश्चित तौर पर साफ निर्मल पानी के साथ राखडय़ुक्त पानी मिलते हुए दिखाई देता है।
पर्यावरण विभाग के मुख्य अधिकारी अंकुर साहू कहते हैं कि हसदेव नदी दूषित है ही नही। हां 20 किलामीटर का दायरा दूषित है, पर जो प्लांटो की वजह से नही घरों से निकले कचड़ों की वजह से है। यानी, इनकी नजर में पावर प्लांट साफ है। जल प्रदूषण की स्थिति के लिए कई प्रकार के कारण महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इस दिशा में दोषियों को नोटिस जारी करना ही पर्याप्त नहीं हो सकता, बल्कि ऐसे मामलों में कठोर कदम उठाने की जरूरत है।
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