'टाटा से वापस करवाने वाले बोधघाट परियोजना में डूबा रहे जमीन', आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरकार पर कसा तंज

टाटा से वापस करवाने वाले बोधघाट परियोजना में डूबा रहे जमीन, आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरकार पर कसा तंज
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कांग्रेस पार्टी के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविन्द नेताम अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़े होकर इसका विरोध कर रहे हैं। पढ़िए पूरी खबर-

जगदलपुर। बोधघाट परियोजना के शुरू होने में अभी वक़्त है पर इस परियोजना को लेकर विरोध और सियासत दोनों चरम पर हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस परियोजना को आदिवासी किसानों के हित में होने की बात कहते हुए इसे किसी भी कीमत में शुरू करने की बात कह रहे हैं तो वहीँ कांग्रेस पार्टी के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविन्द नेताम अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़े होकर इसका विरोध कर रहे हैं। वहीं इस परियोजना से प्रभावित होने वाले क्षेत्र के ग्रामीण किसी न किसी माध्यम से पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

आदिवासियों के इस विरोध में इनका साथ दे रहे आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष कुंजाम ने भी जगदलपुर में पत्रकारों से चर्चा कर अपनी बात रखी। मनीष कुंजाम का कहना है कि इस परियोजना को बिना सोचे समझे लाया जा रहा है। अब तक इससे कितने किसानों को नुकसान होगा इसका आंकलन भी नहीं किया गया है। उन्होंने कहा बोधघाट मामले पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान पूरी तरह से तानाशाह लग रहा है। कांग्रेस पार्टी पर तंज कसते हुए कहा कि ये वही पार्टी है जो चुनाव के बाद टाटा से प्रभावित किसानों को उनकीं जमीनें वापस दिलवाने का दम भर रही थी और अब यही पार्टी उसी क्षेत्र में किसानों की जमीन डुबोने पर आतुर है।

कुंजाम ने कांग्रेस पार्टी पर बड़ा आरोप लगते हुए कहा कि यह सोची समझी रणनीति है, जिसमें किसानों का हित केवल एक दिखावा है। इसके लगते ही इनके मालिक जो बड़े बड़े व्यापारी हैं वे सामने आ जायेंगे। आदिवासियों के हितैषी स्थानीय जनप्रतिनिधियों के विरोध नहीं करने के सवाल पर उन्होंने स्थानीय विधायकों को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सभी विधायक डरे हुए हैं, यदि उनके द्वारा विरोध किया जायेगा तो उन्हें अपनी जेब भरने का मौका नहीं मिलेगा। बीते दिनों उनके बयान को गलत तरीके से पेश किये जाने का खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि वे कभी भी दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को छोटा नहीं कहा और न ही उससे बड़े आंदोलन की बात कही।

बस्तर में 1774 से 1910 तक दर्जनों बार आदिवासियों ने अपने हक़ के लिए बड़ी लड़ाइयां लड़ी हैं और जरुरत पड़ी तो एक बार फिर आदिवासी अपने हितों की रक्षा के लिए बड़ी लड़ाई लड़ने को तैयार है। नगरनार स्टील प्लांट के विनिवेशीकरण पर भी उन्होंने इसे बस्तर के हित में नहीं होना बताया। कुंजाम का कहना है कि जिस दिन प्लांट का निजीकरण होगा उस दिन जितने स्थानीय लोगों की नौकरी लगी है सबसे पहले उस सबकी छटनी की जाएगी। बस्तर के आदिवासियों का विकास हो पर उनकी संस्कृति को बचाकर हो और मुख्यमंत्री द्वारा कोई और रास्ता के सवाल पर उन्होंने जवाब दिया कि रस्ते तो कई हैं जब उनसे पूछा जायेगा तो जरूर बताएँगे।

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