कहीं विलुप्त न हो जाए हमारी प्यारी गौरेया : युवा कर रहा है सराहनीय पहल, सैकड़ों की संख्या में घोसले और सकोरे आस-पास लगाए

कहीं विलुप्त न हो जाए हमारी प्यारी गौरेया : युवा कर रहा है सराहनीय पहल, सैकड़ों की संख्या में घोसले और सकोरे आस-पास लगाए
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हमारे करीब रहने वाले कई प्रजातियों के पक्षी-चिड़िया आज तेजी से गायब हो रही हैं। इनमें एक है गौरेया चिड़िया। हमारे सबसे निकट पाए जाने वाले गौरेया के संरक्षण के लिए कुरुद क्षेत्र का एक युवा, पिछले चार साल से तरह-तरह के उपाय कर रहा है। पढ़िए पूरी खबर...

यशवंत गंजीर-कुरुद। साइंस की मदद से विकास के मामले में हमारा देश भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। बढ़ती तकनीकी इस्तेमाल से पर्यावरण पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। इसका असर इंसानों के अलावा पशु-पक्षियों पर भी पड़ रहा है। हमारे करीब रहने वाले कई प्रजातियों के पक्षी-चिड़िया आज तेजी से गायब हो रही हैं। इनमें एक है गौरेया चिड़िया। हमारे सबसे निकट पाए जाने वाले गौरेया के संरक्षण के लिए कुरुद क्षेत्र का एक युवा, पिछले चार साल से तरह-तरह के उपाय कर रहा है।

कुरुद ब्लाक अंतर्गत गाम मन्दरौद के 23 वर्षीय युवक मोहन साहू ने पिछले चार साल से पक्षियों को गर्मियों से राहत दिलाने तथा विलुप्त हो रहे गौरेया प्रजाति के पक्षियों के संरक्षण के लिए तरह-तरह के उपाय कर रहे है। पक्षियों की प्यास बुझाने सकोरे बना पेड़ों में टांग उसमें दाना पानी डालते हैं। इस साल भी गौरेया के संरक्षण लिए 100 नग लकडी का घोसला बना गांव के आस पास के जगहों में उसने लगाये हैं। इन घोसलों में चिड़ियों का आना शुरु भी हो गया है। इन घोसलों में गौरेया आसानी के साथ अपना घर बसाकर रहने लगे है। फलस्वरूप गौरेया के परिवार निर्माण की संख्या में भी वृद्धि होने लगी है।

तेल के पीपे और मिट्टी से तैयार किया सकोरे

मोहन का कहना है कि, 42 से 44 डिग्री तापमान में जहां इंसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, वहीं पशु और पक्षियों के लिए यह कोई मुसीबत से कम नहीं है। इस भीषण गर्मी में पोखर और कुएं सूख चुके हैं, जिसके कारण पशु और पक्षियों के लिए दाना और पानी नहीं मिल पा रहा है। इसी समस्या को दूर करने गौरेया के अलावा अन्य प्रजातियों की पक्षियों के लिए 60 नग तेल पीपे के पात्र और मिट्टी के बर्तन को दाना, पानी रखने के आकार में तैयार कर आस पास के क्षेत्रों में रखा है। जिससे पक्षियों को आसानी के साथ दाना-पानी के अलावा राहत भरी सांसें मिल रही हैं।

पक्षी अपना कुनबा बचाने कर रहे जद्दोजहद

गौरतलब है कि अब घरों के आस-पास गौरैया की मधुर चीं-चीं की आवाज भी सुनने को नहीं मिल रही। क्योंकि गांव, शहर में क्रांकीट के मकान और मोबाईल टॉवर से निकलने वाली तरंगे गौरैया चिड़िया एवं अन्य पक्षियों के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं। ये पक्षी अपना कुनबा बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। अतएव ऐसे विलुप्त होते पक्षियों के संरक्षण के लिए हमे आगे का पहल करने की जरूरत है।

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