आइये देखें छत्तीसगढ़ : आस्था का केंद्र गिरौदपुरी धाम

सत्य नाम का प्रतीक जैतखाम
गिरौदपुरी धाम में सतनामियों के सत्य नाम का प्रतीक जैतखाम है जो सतनाम पंथ की विजय कीर्ति को प्रदर्शित करता है। जैतखाम शांति, एकता और भाईचारे का प्रतीक है। गिरौदपुरी का जैतखाम सामान्यतौर पर बने जैतखामों से एकदम अलग है, ये बहुत भव्य है। गिरौधपुरी जैतखाम की ऊंचाई दिल्ली के कुतुबमीनार से भी ज्यादा है। इसकी ऊंचाई 243 फीट है, जबकि कुतुबमीनार 237 फीट ऊंचा है।

स्पायरल सीढ़ी भी
जैतखाम के ऊपर से कुदरत का अद्भूत नजारा दिखाई देता है यहां पहुंचने के लिए स्पायरल सीढ़ी बनाई गई है। यहां लिफ्ट की व्यवस्था भी है। जैतखाम में सात बालकनी भी बनाई गई हैं, जहां आगंतुक प्रकृति के खूबसूरत नजारों का लुत्फ उठाते हैं।
गुरु घासीदास की जन्मस्थली

सतनामी पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास की जन्मस्थली होने के नाते देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में यहां आते हैं। श्रीगुरु घासीदास के बारे में प्रचलित है उनका जन्म बहुत ही साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मंहगू दास, माता का नाम अमरौतिन और उनकी धर्मपत्नी का नाम सफुरा था। गुरु घासीदास का जन्म ऐसे समय हुआ जब समाज में छुआछूत, ऊंच-नीच जैसे सामाजिक बुराइयां चरम पर थी। बाबा ने समाज को एकता, भाईचारे और समरसता का संदेश दिया। घासीदास की सत्य के प्रति अटूट आस्था थी। इसी प्रभाव के चलते लाखों लोग बाबा के अनुयायी हो गए। इसके साथ छत्तीसगढ़ में 'सतनाम पंथ' की स्थापना हुई। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के 'सप्त सिद्धांत' के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
तपोभूमि और चरणकुण्ड

गिरौदपुरी गांव से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी पर स्थित है सतनाम पंथ की गुरुगद्दी। इसी स्थान पर औरा, धौरा, और तेंदू पेड़ के नीचे बाबाजी को 6 महीने की कठोर तपस्या के बाद सतनाम 'आत्मा ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी। इसलिए इसे तपोभूमि भी कहा है। वहीं तपोभूमि से दक्षिण दिशा में थोड़ी दूरी पर पहाड़ी से नीचे एक कुण्ड है, जिसे 'चरणकुण्ड' कहा जाता है। तपस्या के बाद बाबा ने यहीं अपने चरण धोए थे।
अमृतकुण्ड
चरणकुण्ड से 100 मीटर आगे जाने पर 'अमृतकुण्ड' है। बाबाजी ने जीव-जंतुओं, जंगली जानवरों के संकट निवारण के लिए अपने अलौकिक शक्ति से यहां 'अमृतजल' प्रकट किया था, इसका पवित्र अमृतजल बरसों रखने पर भी कभी खराब नहीं होता ऐसी मान्यता है कि इसके पीने से सभी कष्टों का निवारण होता है।
चरणचिन्ह स्थल
सतगुरू बाबा के दोनों पैरों का चिन्ह एक चट्टान पर ऐसे बने है, जैसे कि किसी के पैर का छाप गीली मिट्टी पर बनाया हो। तपोभूमि से 7 किलोमीटर दूर जंगल के बीच एक बहुत बड़ी शिला है, जिसे छातापहाड़ कहते हैं। यहां सदगुरू बाबा घासीदास ने तप, ध्यान और साधना की थी।
सफुरामठ और तालाब
जन्मस्थल से करीब 200 गज की दूरी पर पूर्व दिशा में एक छोटा तालाब है, जिसके किनारे पर 'सफुरामठ' है, बाबाजी जब ज्ञान प्राप्ति के बाद वापस घर आए, तब उनकी पत्नी सफुरा की मृत्यु हो चुकी थी, जिसे बाबा जी ने सतनाम-सतनाम कहकर अमृत पिलाकर पुनर्जीवित किया था। उस घटना की स्मृति में ये मठ बना है।
हर साल लगता है मेला
वैसे तो गिरौदपुरी धाम में साल भर श्रद्धालु पहुंचते हैं लेकि फाल्गुन पंचमी में लगने वाले तीन दिवसीय मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां धार्मिक अनुष्ठान के साथ रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
ऐसे पहुंचे गिरौदपुरी धाम
रायपुर हवाई अड्डा, यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा है। रेल मार्ग की बात करें तो भाटापारा और बिलासुर निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। सड़क मार्ग से गिरौदपुरी जाने वालों के लिए छत्तीसगढ़ राज्य दिल्ली, पुणे, बेंग्लुरु और मुंबई जैसे शहरों से सड़क मार्ग अच्छी तरह से जुड़ा है।
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