आइए देखें छत्तीसगढ़ : छत्तीसगढ़ का वृंदावन-चंपारण

छत्तीसगढ़ के धार्मिक पर्यटन स्थलों में चंपारण हर तरह की खूबियां समेटे हुए हैं। चाहे वो प्राकृतिक सौंदर्य की बात हो या मानव निर्मित कलाकृतियों की। चंपारण छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्थित है इसका का पुराना नाम चम्पाझर है। इसका अर्थ है चंपा के फूलों का घर। यहां वृंदावन की तर्ज पर ही सारे मंदिर बनाए गए हैं, प्रभु की सेवा भी वैसी ही होती है। चंपेश्वर महादेव मंदिर व श्री महाप्रभु वल्लभाचार्य बैठकी विशेष आकर्षण का केंद्र है। महानदी नदी की एक छोटी सी धारा मंदिर के बहुत पास से बहती है, जिसे यमुना नदी से उत्पन्न माना जाता है।
7वीं शताब्दी का है चम्पेश्वर महादेव मंदिर
चम्पेश्वर महादेव मंदिर सातवीं शताब्दी का माना जाता है जो पंचकोशी मंदिर श्रृंखला के तहत आता है। यहां मौजूद वनक्षेत्र में जूते-चप्पल पहनकर जाना वर्जित माना जाता है। इस मन्दिर के शिवलिंग के मध्य कई रेखाएं हैं, जिससे शिवलिंग तीन भागों में बंट गया है, यह शिवलिंग क्रमशः गणेश, पार्वती व स्वयं शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं।
महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल
चंपारण में चम्पेश्वर महादेव मंदिर के साथ ही महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल है, इसके चलते ये स्थान वैष्णव संप्रदाय की आस्था का प्रमुख केंद्र है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के अनुयायी यहां रोजाना दूर-दूर से आते हैं। विदेशों में जाकर बसे पुष्टि संप्रदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग भी चंपारण से नियमित सम्पर्क बना रहता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य जी पुष्टि संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। चम्पारण उनका प्राकट्य धाम होने के कारण पुष्टि संप्रदाय के लोग इस स्थल को सर्वश्रेप्ठ पवित्र भूमि मानते हैं।
ऐसी किवंदती है कि महाप्रभु वल्लभाचार्य के माता-पिता लगभग 550 साल पहले बनारस से मुगल साम्राज्य में हो रहे अत्याचार के कारण पदयात्रा करते हुए चम्पेश्वर धाम में आए थे। यहीं पर वल्लभाचार्य ने जन्म लिया। उनका जन्म वैशाख बदी 1334 (सन 1478 ईसवी) को हुआ माना जाता है।
तीन बार की धरती की पैदल परिक्रमा
महाप्रभु वल्लभाचार्य ने अपने जीवनकाल में तीन बार धरती की पैदल परिक्रमा की। परिक्रमा के दौरान उन्होंने देश के 84 स्थानों पर श्रीमद् भागवत कथा का पारायण किया। इन स्थानों को पवित्र भूमि माना जाता है उनमें से एक चंपारण भी है। इस स्थान पर प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन महाप्रभु के सम्मान में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। यहां प्रभु वल्लभाचार्य जी की 2 बैठकी है । जो अत्यंत सुंदर और चारों ओर से विभिन्न कलाकृतियों से सुसज्जित है छतों और दीवारों पर विभिन्न सुंदर आकृतियां बनाई गई है ।
परिसर में फर्स्ट फ्लोर पर चित्र प्रदर्शन शाला भी बनाई गई है जहां वल्लभ जी के सम्पूर्ण जीवन काल कि घटनाओं का सचित्र वर्णन किया गया है। यहां लगभग 100 से भी अधिक चित्रों की प्रदर्शन लगी है। जगह जगह आगन्तुकों के विश्राम के लिए बैठने की व्यवस्था व विश्रामगृहों का निर्माण किया गया है। यहां यमुना घाट भी महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है साथ ही घाट के किनारे यमुना जी का मंदिर भी निर्मित है।
पेड़ों की कटाई वर्जित
पूरे चंपारण और आसपास के गांवों में पेड़ों की कटाई वर्जित है और होली के पहले दिन मनाया जाने वाला होलिका दहन उत्सव का आयोजन भी यहां नहीं होता इसका, मुख्य कारण यह है की यहाँ पेड़ो की कटाई करना वर्जित है किसी भी स्थिति में पेड़ो की कटाई यहां पाप माना जाता है। मान्यता यह भी है की पेड़ों की कटाई से यहा प्राकृतिक आपदा भी आ सकती है। पेड़ों को प्रकृति की अनुपम नेमत मानकर यहां पूजा जाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण यहां देखने मिलता है कि यहां कुछ पेड़ मंदिर के निर्माण में अवरोधक थे लेकिन उन्हें काटने के बजाय ऐसी व्यवस्था से निर्माण कार्य किया गया है कि पेड़ भी काटना न पड़े ओर निर्माण भी न रुके।
कैसे पहुंचे-
नजदीकी एयरपोर्ट और रेल्वे स्टेशन राजधानी रायपुर है। यहां से आप सड़क मार्ग से आसानी से चंपारण पहुँच सकते हैं। स्थानीय बसें और टैक्सियाँ आपको दर्शनीय स्थलों के भ्रमण के लिए ले जाएँगी। चंपारण की यात्रा का सबसे अच्छा समय सर्दियों के दौरान होता है। चंपारण में रहने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित दो धर्मशालाएं उपलब्ध हैं।




© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS