डिग्रीधारियों और इंजीनियरों के लिए शराब दुकान रोजगार का सहारा, शराबबंदी होते ही होंगे बेरोजगार

डिग्रीधारियों और इंजीनियरों के लिए शराब दुकान रोजगार का सहारा, शराबबंदी होते ही होंगे बेरोजगार
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जब से प्रदेश सरकार ने शराब दुकानों का शासकीयकरण किया है तब से यहां सेल्समैन और सुपरवाइजर के पद पर भर्ती का जिम्मा प्लेसमेंट कंपनियों को सौंपा है। प्लेसमेंट कंपनियों के जरिए प्रदेशभर में युवा शराब दुकानों में शराब बेचते दिख जाएंगे।

रायपुर। राज्य सरकार विज्ञापनों में भले लाख दावे करें कि युवाओं को रोजगार देने में वह अव्वल है, लेकिन हकीकत यह है कि सरकार की नीतियों के चलते अब डिग्री, डिप्लोमा धारी और इंजीनियर स्तर के युवा शराब दुकानों में सेल्समैन और सुपरवाइजर की नौकरी करने के लिए मजबूर हैं।

जब से प्रदेश सरकार ने शराब दुकानों का शासकीयकरण किया है तब से यहां सेल्समैन और सुपरवाइजर के पद पर भर्ती का जिम्मा प्लेसमेंट कंपनियों को सौंपा है। प्लेसमेंट कंपनियों के जरिए प्रदेशभर में युवा शराब दुकानों में शराब बेचते दिख जाएंगे। इनमें से कई ऐसे युवा हैं जिन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की है। कुछ युवा ऐसे हैं जिन्होंने बीएससी, एमएससी और इंजीनियरिंग के साथ-साथ एमबीए की डिग्री भी हासिल की हुई है। जब इनसे शराब बेचने की पीछे की मजबूरी के बारे में पूछा जाता है तो ये कहते हैं कि नौकरी के लिए वे दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर थक गए। इसके बाद जब कहीं कोई रास्ता नहीं दिखा तो उन्होंने प्लेसमेंट कंपनियों में आवेदन किया और यहां उन्हें आसानी से नौकरी मिल गई। हालांकि युवा यह भी कह रहे हैं कि काम करने से उन्हें किसी भी प्रकार की हिचक और शर्म नहीं है, लेकिन मजबूरी के चलते उन्हें यह काम करना पड़ रहा है। उच्च शिक्षित बेरोजगारों के लिए शराब दुकानें एक बड़ा सहारा है। सरकारी शराब दुकान के कारण उन्हें रोजगार तो मिल गया है और इससे उनके परिवार का भरण पोषण भी हो रहा है, लेकिन शासन स्तर पर अब ऐसी नीति और योजनाएं बनाने की जरूरत है, जिससे युवाओं को समय रहते रोजगार मिल सके और वह अपने शैक्षणिक योग्यता के अनुरूप सम्मानपूर्वक नौकरी भी कर सकें। बहरहाल अभी तो बेरोजगार डिग्रीधारियों और इंजीनियरों के लिए शराब दुकान रोजगार का सहारा है। लेकिन भविष्य में शराबबंदी होती है तो इन युवाओं से एक बार फिर रोजगार छीन जाएगा और उनका भविष्य फिर खतरे में पड़ सकता है।

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