Mahanavami: आज विदा होंगी मां भवानी...

आकांक्षा प्रफुल्ल पाण्डेय। नौ दिन का दुर्गोत्सव.. मां से प्रत्यक्ष जुड़ाव..पूरे दिन पूजा का सात्विक ओज, और उत्सव धर्मिता में झूम कर गरबा–ताल में मिलते कदमों की छटा.. सूर्य अस्ताचल को चले.. मैदानों में गोलाकार लाइटें जगमग.. दूर से देखने पर तम्बू का सा आकार.. इस मैदान के बीचों बीच रखा हुआ है असंख्य छिद्र–युक्त गर्भदीप...मिट्टी के छोटे मटके से बने इस गर्भदीप को सब साधारण बोली में गरबा कहते हैं..
अंधेरा होते–होते, चनिया–चोली, केड़िया, लहंगे, कुर्ते–पजामे में सजे लोग आ पहुंचे नृत्य सेवा आराधना के लिए..
जय आद्या शक्ति, मां जय आद्या शक्ति
अखण्ड ब्रम्हाण्ड दीपाव्या
पड़वे प्रगट्या मां,ऊं जयो जयो मां जगदम्बे
तीन ताल से तीनों देवों को आव्हान.. और धीरे धीरे कदमों की ताल भी जोर पकड़ रही है..
सोना नो गरबो शीरे अम्बे मां,
चालो धीरे धीरे...
दो, आठ, बारह, सोलह तालियां बढ़ती जा रही है, और साथ बढ़ रही पैरों की गति..
वाग्यो रे ढोल बाई वाग्यो रे ढोल
मीठा ना रन मा वाग्यो रे ढोल..
ऐसा लग रहा है, सच में पूरा संसार मां की परिक्रमा कर रहा है.. आकाश गंगाओं के संचालन की भी यही तो प्रक्रिया है.. ऊर्जा –केंद्र के चारों ओर परिक्रमा.. पूरी सृष्टि मग्न है, मां की आराधना,और धन्यवाद ज्ञापन में.. मां केंद्र में,और मां के चारों ओर उनकी संताने.. अत्यंत उत्साह,और प्रसन्नता से सराबोर.. कपड़ों के रंग, गरबा की गति, गरबे में झूम के नाचना, नवरात्र की भव्यता को चरम पर ले जाता है.. काश, ये पल कभी खत्म न हों.. नवरात्र चलती रहे.. हम भक्ति और उत्सव आनन्द भरे रहें..
पर आज नवरात्र उत्सव का अन्तिम दिन है.. हम आज भी घर के काम जल्दी खत्म कर पंडाल में आ गए.. पुष्पांजलि हवन आदि सब पूरे हो गए.. पूरे पंडाल में धूप–दीप की सुगन्ध.. भोग खिचड़ी वितरण का स्थान अब भरने लगा.. हम ने नौ दिनों का व्रत लिया था, फलाहार पर रह कर मां के ध्यान में रहने का.. हमारे घर कल कन्या पूजन था.. आज हम खिचड़ी भोग से अपना व्रत पारण करेंगे..चक्रवर्ती काकू, मोइत्रा आंटी, शुक्ला बुआ, सब लोग पंडाल में ही जमा हैं.. खिचड़ी के बड़े–बड़े दोने, इतने गर्म कि पकड़ते नहीं बनता.. लकड़ी के चम्मच भी हैं.. पर खिचड़ी खाने की जल्दी में उंगलियां न जलाईं, तो क्या ही खिचड़ी खाई.. पहला निवाला...ओह.. इस स्वाद के लिए साल भर प्रतीक्षा तो जरूर बनती है... नवरात्र के पहले और बाद में भी कई बार खिचड़ी खाई है.. वही सामग्री, वही बनाने वाले, पर पंडाल की छाया का ही प्रताप होगा शायद, ज्यादा नहीं तो कम से कम हजार गुना तो अधिक स्वादिष्ट है ही भोगेर खिचुरी... वैसे इस स्थान को छोड़, कहीं भी दूसरी जगह कुछ भी खाओ, हर चीज़ के लिए अलग–अलग कटोरी चम्मच होने ही चाहिए.. पर यहां? खिचड़ी, उसके ऊपर कद्दू, बैगन–आलू की मिक्स सब्जी, उसके ऊपर टमाटर की लाल वाली मीठी चटनी, और एक चम्मच खीर...और यही सम्पूर्ण है.. किसी को स्वर्ग का स्वाद क्यों चखना है भला.. अन्नपूर्णा का भोग ही पर्याप्त है उस अनुभूति के लिए...
दुर्गोत्सव के दौरान पंडाल में चली अलग–अलग प्रतियोगिताएं . मेहंदी, रंगोली,शंख वादन, बच्चों की पेंटिंग, फैंसी ड्रेस, पूजा थाली डेकोरेशन और बहुत कुछ.. आज शाम पुरस्कार वितरण है.. आज रात गरबा की जगह धुनुची.. मेरी सीनियर रानू डे दीदी ने सिखाया है धुनुची नाचना.. धुनो में नारियल के रेशे, कोयले का जलता टुकड़ा और धूप.. ढाकी की ताल पर सुगन्ध मय धुनुची.. देर तक..
पर आज मां का चेहरा कुछ छोटा सा हो गया.. थोड़ी उदास लग रही हैं.. कल मायके से बिटिया विदा.. बहुत स्नेह बटोरा..सब दूर–दूर से दौड़े आए मिलने को.. आनन्द उत्सव मने... पर अब चलना होगा...चारों बच्चे–गणेश, कार्तिक, लक्ष्मी जी और सरस्वती जी भी बुझे–बुझे..उन्होंने भी मामा–घर में जैसे खूब छुट्टी मनाई दुर्गोत्सव की.. अब वापस जाना है..अगले बरस ही वापस आ पाएंगे इतनी धूम मचाने.. बच्चे हैं..छुट्टी खतम पर बुरा तो लगेगा ही...
विदा से पहले सब आ जुटे हैं.. पान के पत्ते, मिठाई, दर्पण और सिन्दूर लिए.. सिंदूर–खेला होना है.. मां को मीठा खिलाया, सिन्दूर लगाया, और नजर भी उतार ली.. अब एक दूसरे को सौभाग्य के रंग से सराबोर करने का समय.. मम्मी भी हमेशा आती थीं यहां.. विवाह के बाद त्यौहार पर मैं ससुराल में होती..पर नवमी को व्रत–पारण, धुनुची, और दशमी को सिन्दूर खेला के लिए यहां की आंटीयां, चाचियां बुला भेजतीं.. ससुराल में अम्मा भी बड़े शौक से हंसते हुए कहतीं.. जा भई, पूरी कॉलोनी ही मायका है तेरा.. रावण–दहन से पहले आ जाना, पर अभी जल्दी से चली जा..
शाम को मां की सवारी धूम से निकली.. पूरी कॉलोनी का फेरा.. हर घर के सामने दीपक जल रहे हैं.. मां की आरती और पुष्प अर्पण.. ऐसा लग रहा है घर से बिटिया की भी विदाई हो रही है, और मां से भी बिछड़ रहे हैं..हाथ जुड़े हुए और मन भरे हुए..जल्दी लौट आईयेगा मां.. आप ही समस्त संसार की ऊर्जा का स्रोत हैं.. हम आपकी शरण में हैं भवानी..
मां भी सब समझती हैं... पूरा साल घर पर अर्चना होती है..वर्ष भर हम मंदिर जाते हैं, मां को अपनी कुशल–मंगल बता आते हैं.. रोज धन्यवाद देते हैं, अपने जीवन का.. पर मां तो मां ठहरीं.. साल में दो बार खुद आ कर देख जाती हैं.. हमारा घर.. बच्चे ठीक से हैं ना..और नवरात्र बीतते न बीतते, सब व्यवस्थाएं सुचारू.. मां ही कर सकती हैं ऐसा तो... मां की यह कृपा अपनी समस्त संतानों पर यूं ही बनी रहे.. उनके चरणों में हमारी समस्त चेतना समर्पित हो.. कल्याणी कल्याण करें.. विनीत भाव से मां की चरण वंदना.. नवरात्र की अशेष मंगलकामनाएं..🙏🙏
बोल सांचे दरबार की... जय 🙏🙏
✍️ आकांक्षा प्रफुल्ल पाण्डेय
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