सार्थक संवाद : आत्मा की परमात्मा से पहचान कराकर मिलती है सुख-शांति....

सार्थक संवाद : आत्मा की परमात्मा से पहचान कराकर मिलती है सुख-शांति....
X
हरिभूमि - आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ हिमांशु द्विवेदी ने उनसे बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश - छह दशक से ज्यादा प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी संगठन में सक्रिय भूमिका निभाने के दौरान कितना संतोष और असंतोष है, प्रश्न के जवाब में जयंती दीदी ने कहा कि उनकी आत्मा बहुत ही संतुष्ट है, क्योंकि उसे लगता है कि कदम- कदम पर संतुष्टि की प्राप्ति हुई है। पढ़िए पूरी खबर ...
  • हरिभूमि - आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी का जयंती दीदी से सार्थक संवाद

रायपुर। सौम्यता, सरलता, सहजता और सहृदयता मानो उनके रोम रोम में समाहित है। पांच दशक की सतत साधना ने उनके चेहरे पर तेजस्विता और जिव्हा पर मधुरता के रूप में स्थाई निवास विख्यात प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय संस्थान की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका जयंती कृपलानी की जयंती दीदी के रूप में ख्यात यह विदुषी शख्सियत तीन दिवसीय छत्तीसगढ़ प्रवास पर हैं। उनकी व्यस्तता के बना लिया है। हम बात कर रहे हैं विश्व बीच हरिभूमि - आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ हिमांशु द्विवेदी ने उनसे बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश - छह दशक से ज्यादा प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी संगठन में सक्रिय भूमिका निभाने के दौरान कितना संतोष और असंतोष है, प्रश्न के जवाब में जयंती दीदी ने कहा कि उनकी आत्मा बहुत ही संतुष्ट है, क्योंकि उसे लगता है कि कदम- कदम पर संतुष्टि की प्राप्ति हुई है। उन्हें जो ज्ञान की प्राप्ति हुई है, उसे उनकी आत्मा के साथ अन्य आत्माओं को भी फायदा हो रहा है। उन्होंने कहा कि उनका बचपन में ब्रम्हाकुमारी संगठन से जुड़ने का संकल्प था।

दीदी ने बताया कि विदेश से ब उनका भारत आना हुआ, तो उस समय यहां बहुत गरीबी थी और मानसून का सीजन चल रहा था। उस समय उन्होंने देखा कि कई लोग बारिश में बैठे हुए हैं और कारपेट का मकान बनाए थे, ढह गया था। वह बहुत कठिन समय था । उसे देखकर उन्हें लगा कि मेरा जीवन सिर्फ मेरे लिए नहीं होना चाहिए। इसके बाद उन्हें लगने लगा कि उन्हें जो ज्ञान की प्राप्ति हुई, उसकी प्राप्ति अन्य आत्माओं को भी होनी चाहिए। उस समय जो मैंने संकल्प लिया था, वह कदम-कदम पर पूरा होता जा रहा है। महिलाओं को धार्मिक स्थानों में आगे देखकर सहयोग मिलता है संगठन के विस्तार में मदद की जरूरत या रुकावटें आईं, के प्रश्न के जवाब में जयंती दीदी ने कहा कि शुरुआत में धार्मिक संस्थाओं में थोड़ी रुकावटें जरूर आई थीं। लोग चाहते नहीं थे कि बहनें आगे आएं, लेकिन धीरे-धीरे मंदिर, चर्च सहित अन्य धार्मिक जगहों पर बहनों को आगे रखा गया, जिसे देखकर उन्हें और सहयोग मिलता रहा।

मन व बुद्धि संतुष्ट और स्पष्ट तो संस्कार भी हो जाएंगे शुद्ध

जयंती दीदी ने एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा कि हम खुद को ही नहीं पहचा कि हम आत्मा हैं। उन्होंने कहा कि शरीर के नाते से ही हम खुद को देखते हैं। आयु , पोजिशन, कल्चर आदि बातों में फंसकर रह जाते हैं। उन्होंने कहा कि इंसान को पहले तो खुद को जानना चाहिए। अगर इंसान खुद की आत्मा को पहचानेगा, तो संबंध भी अच्छे बना पाएगा, क्योंकि मन और बुद्धि संतुष्ट और स्पष्ट रहेगी, तो संस्कार भी शुद्ध बन जाएंगे। उन्होंने कहा कि इंसान को हमेशा परमात्मा को पाने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि उसके आधार पर ही हम मनुष्यों के साथ व्यवहार और इच्छा रखते हैं। परमात्मा के बिना हम हमेशा कश्मकश में फंसे रहेंगे, जिसके कारण संबंध भी टूट जाता है। उन्होंने कहा कि अगर मन संतुष्ट है, तो उसे दूसरों से किसी चीज को पाने की लालसा नहीं रहती। प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी में महिलाओं को प्राथमिकता और पुरुषों के प्रति द्ववेष के प्रश्न पर जयंती दीदी ने कहा कि ऐसा नहीं है। हमारे संगठन में भी कई शक्तिशाली भाई लोग हैं। उन्होंने कहा कि 1936 में कराची में राम बाबा को एक साक्षात्कार हुआ था कि उन्हें एक न्याय का संस्कार व सत्यता का संस्कार कार्य करना है। इस साक्षात्कार से उन्हें जो संकल्प आया, वह कराची में आया था। चूंकि बाबा का भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में जन्म हुआ था । उस समय सिंध प्रांत में माताओं को सेकेंड क्लास से जोड़ा जाता था। इसके कारण बहनें कुछ हद तक किसी मंदिर या अन्य स्थानों क पहुंच पाती थीं। उनका कहीं भी आना-जाना लिमिट हुआ करता था। बाबा ने सोचा कि जिन बहनों को विश्व में मौका नहीं बना, उन्हें मौका देना चाहिए। इसके बाद बाबा ने बहनों को टीचर और लीडर के रूप में ट्रेनिंग देनी शुरू की, इसलिए संगठन में यह व्यवस्था प्रमुख है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संस्था या क्लब होते हैं, जिसके प्रमुख पुरुष होते हैं। बाबा ने इसे ही बदलने का प्रयास किया है।

ध्यान-योग में बढ़ी रुचि, अब तो कंपनियां भी बुलाती हैं

दीदी ने बताया कि, भारत में ब्रम्हाकुमारी संस्था को लेकर कई भ्रांतियां थीं। संगठन के नियम है भाई और बहन साथ मिलकर गांव-गांव जाकर एक साथ लोगों को काम और ज्ञान देने की सेवा करते। भारत में इस सेवा से संगठन न केवल बहुत आगे बढ़ा है, बल्कि सोशल सेवाओं के कारण अच्छा रिस्पेक्ट मिला है। उन्होंने कहा कि 1971 में लंदन में संगठन की प्रथम ब्रांच खोली गई थी। आमतौर पर लोग नहीं मानते थे कि संगठन से उन्हें कुछ फायदा होगा, लेकिन अब हर क्षेत्र के लोग मानते हैं। ध्यान, योग में उनकी रुचि बढ़ी है। स्थिति यह है कि अब कई कंपनियां भी हमें बुलाती हैं। इस तरह हम लोगों को समझाकर उनके जीवन में फायदा पहुंचाने का वातावरण बना रहे हैं। जयंती दीदी ने ध्यान-योग को लेकर कहा कि छोटी सी उम्र में ही उनका ब्रम्हाकुमारी से संपर्क रहा। उस समय ज्यादा जानकारी नहीं थी । ज्ञान अच्छे से सुना और समझकर इसे जीवन में उतारा। इस ज्ञान का धीरे-धीरे संपर्क में आते पता चलता गया, तो यह बहुत सामान्य व आसान तरीका है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति इसे अपना घर गृहस्थी संभालते और कामकाज करते हुए भी सीख और कर सकता है। इससे उसके जीवन में बहुत फायदा होगा और ऊंची मंजिल का रास्ता आसान होगा। सफेद परिवेश को लेकर उन्होंने कहा कि लंदन में म्यूजिक व फैशन का बहुत क्रेज था। उनके पिता भी टेक्सटाइल में बिजनेसमैन थे। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने संगठन में आने का मार्ग चुना, तो उमय बहनें नॉर्मल ड्रेस पहना करती थीं।

किसी विशेष परिस्थिति व कार्यक्रम में सफेद ड्रेस में नजर आती थीं। उन्होंने कहा कि सफेद रंग को धारण करने से खुद की जिंदगी सादगी और स्वतंत्र महसूस होती है। इसके साथ सफेद रंग स्वच्छता का भी प्रतीक है। उन्होंने कहा कि कराची में जब संगठन में बहनें आई थीं, तो अपने नॉर्मल कपड़ों में आई थीं। इस दौरान बहनों ने सोचा कि ऊंचा बनाने के लिए क्या करें। सभी बहनों ने सोचा कि एक यूनिफॉर्म होना चाहिए, जिसका रंग सफेद हो। उन्होंने कहा कि सफेद रंग को वे संन्यासी नहीं मानते, ब्लकि हमारा संसार कमल पुष्प के रंग जैसा हो, ऐसी भावना रखते हैं। जयंती दीदी ने संगठन में विवाह को लेकर कोई नियम बनाए गए हैं, के पूछे गए प्रश्न के जवाब में कहा कि विवाह करना है या नहीं, इसका निर्णय खुद को करना होता है। अगर कोई शादीशुदा है, तो उसे पहले अपने परिवार में रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि नियम अनुसार जीवन को बनाकर रखे। अपना उदाहरण देते हुए जयंती दीदी ने कहा कि वह भी जब 18 साल की थीं, तब वह भी स्वतंत्र थीं। चाहतीं, तो वह भी विवाह कर सकती थीं, उन्हें कोई रोक नहीं पाता। चूंकि वह परमात्मा को पाना चाहती थीं इसलिए 19 साल की उम्र से इस जीवन को चुना।

Tags

Next Story