यहां भी मंकीपॉक्स की एंट्री? : किशोर में दिखा लक्षण, अस्पताल में भर्ती, 20 छात्र आइसोलेट

रायपुर। कोरोना वायरस के बाद अब मंकीपॉक्स को लेकर देश-दुनिया में दहशत मची हुई है। इस बीच छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती में रहने वाले एक किशोर में वायरस के लक्षण देखे गए हैं। किशोर को डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है। साथ ही सैंपल को जांच के लिए पुणे भेजा गया है।
पुणे भेजा गया किशोर और 18 बच्चों का सैंपल
जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ. मीरा बघेल ने बताया कि 12 साल का किशोर ओपीडी में जांच कराने आया था। लक्षण नजर आने पर अंबेडकर अस्पताल में भर्ती करया गया। बताया जा रहा है कि वर्तमान में किशोर पुरानी बस्ती में रहता है, मूलतः कांकेर का निवासी है। किशोर से लिए गए सैंपल और साथ रहने वाले 18 बच्चों के सैंपल को जांच के लिए पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी भेजा गया है।रिपोर्ट आने पर मंकीपॉक्स के होने या नहीं होने की पुष्टि होगी।
20 छात्र आइसोलेट किए गए
रायपुर के जैतू साव मठ के संस्कृत पाठशाला में अध्ययनरत बच्चे में मंकीपॉक्स के लक्षण नजर आने के बाद निगम भी गंभीर हो गया है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि नगर निगम ने मंदिर के बाहर दवाई का छिड़काव किया हैं। वहीं 1 हफ्ते के लिए मंदिर को बंद कर दिया है। मंदिर में 20 और भी छात्र हैं, जिन्हें आइसोलेट किया गया है।
नहीं है कोई ट्रैवल हिस्ट्री
स्वास्थ्य सेवाओं में महामारी नियंत्रण विभाग के अनुसार अभी तक की जांच में यह सामने आया है कि बच्चे की कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं है। वह कहीं बाहर नहीं गया। किसी संदिग्ध से उसकी मुलाकात भी नहीं हुई है। हॉस्टल में उसके किसी और साथी में ऐसे लक्षण नहीं मिले हैं।
स्किन इंफेक्शन की आशंका
डाक्टरों का कहना है कि यह स्किन इंफेक्शन भी हो सकता है। चर्म रोग के विशेषज्ञों के परामर्श पर स्किन इंफेक्शन की दवाएं दी जा रही है। बताया जा रहा है, उससे बच्चे को राहत मिली है। मंकीपॉक्स का संक्रमण देश में आ चुका है, ऐसे में कोई रिस्क नहीं ले सकते। सभी प्रोटोकाल का पालन किया जा रहा है।
सबसे पहले यहां मिला था मंकीपॉक्स
डॉक्टरों ने बताया कि मंकीपॉक्स एक डबल-स्ट्रैंडेड डीएनए वायरस है, जो पॉक्स विरिडे परिवार के ऑर्थोपॉक्स वायरस जीनस से संबंधित है। 1970 में कांगो के एक नौ साल के बच्चे में सबसे पहले यह वायरस मिला था। तब से पश्चिम अफ्रीका के कई देशों में इसे पाया जा चुका है। इसके लिए कई जानवरों की प्रजातियों को जिम्मेदार माना गया है। इन जानवरों में गिलहरी, गैम्बिया पाउच वाले चूहे, डर्मिस, बंदर आदि शामिल हैं।
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