आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संकट में, सरकारी फरमान ने बढ़ाई मुसीबत

भोपाल/रायपुर। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों दोनों पड़ोसी राज्यों की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं इन दिनों संकट का सामना कर रही हैं। दोनों राज्यों की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए सरकारों ने ऐसा फरमान जारी किया है कि वह नाफरमानी नहीं कर सकती। लेकिन फरमान को मानने के लिए उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
सबसे पहले मध्यप्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के सामने जिस प्रकार का संकट आया है, उसे समझने का प्रयास करते हैं। दरअसल, हाल ही में महिला एवं बाल विकास विभाग ने सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए एक आदेश जारी किया है कि जिनके भी आंगनबाड़ी केंद्र उनके निजी निवास में संचालित होते हैं, वह यथाशीघ्र अपने क्षेत्र के किसी भी सरकारी सामुदायिक भवन, ग्राम पंचायत का भवन या कोई भी खाली सरकारी भवन में शिफ्ट करें। सरकारी भवन विकल्प के रूप में खाली ना मिले तो वह किराए के भवन लेकर आंगनवाड़ी केंद्र को संचालित करें, लेकिन किसी भी सूरत में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता खुद अपने निवास पर आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन ना करें।
महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा जारी किए गए इस आदेश में यह तो हालांकि स्पष्ट नहीं है कि इस आदेश के पीछे मंशा आखिर क्या है?
लेकिन सूत्रों का दावा है कि ऐसा आदेश महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा इसलिए जारी किया गया है क्योंकि अधिकारी ऐसा मानने लगे हैं कि जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने घर पर ही केंद्र संचालित करती हैं,वह घर का काम ज्यादा करती हैं, आंगनबाड़ी केंद्र का काम कम करती हैं। कुल मिलाकर अधिकारियों का ऐसा मानना है कि अपने निजी निवास पर आंगनबाड़ी केंद्र संचालित करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कामचोरी करती हैं। इसीलिए यह आदेश निकाला गया है।
आपको यह बता दें कि यह तथ्य महिला एवं बाल विकास विभाग को भी पता है कि पूरे प्रदेश में जितने आंगनवाड़ी केंद्र स्वीकृत किए गए हैं, उतने आंगनबाड़ी केंद्र भवन नहीं बने हैं। महिला बाल विकास विभाग के अफसरों को यह भी पता है कि जिन आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए भवन का विकल्प नहीं है, वहां पर किराए पर भवन लेकर संचालित किए जाने की व्यवस्था तय है।अधिकारियों को यह भी पता है कि जहां पर सरकारी भवनों का विकल्प नहीं है, वहां पर भी किराए पर ही भवन लेकर आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किए जा रहे हैं।
सरकार को और सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग को यह भी पता है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को ना तो समय पर मानदेय दिया जाता है, ना समय पर भवन किराए का भत्ता दिया जाता है। इसके बावजूद अभी उन्हें आनन-फानन में निजी निवास से आंगनबाड़ी केंद्र हटाकर किसी अन्य विकल्प पर आंगनबाड़ी केंद्र संचालित करने का फरमान जारी किया गया है।
ऐसी स्थिति में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संकट में हैं। इनमें अधिकांश कार्यकर्ता ऐसी हैं, जिनके पास किराए के मकान का विकल्प तो है, लेकिन किराए की राशि उतनी नहीं मिलती जितने में भवन किराया किराए के भवन उपलब्ध हैं। कई आंगनबाड़ी केंद्र ऐसे क्षेत्र में भी संचालित हो रहे हैं जहां पर सरकारी भवनों का कोई विकल्प नहीं है। बावजूद इसके आंगनबाड़ी केंद्र को शिफ्ट करने का कड़ा फरमान जारी किया गया है।
एक दिलचस्प बात यह भी है कि महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी अपने ऊपर के अधिकारियों के फरमान के पालन के लिए सारी जद्दोजहद कर रहे हैं लेकिन तमाम मुसीबतों और दिक्कतों को जानते हुए भी सारा ठीकरा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के ऊपर ही फोड़ना चाहते हैं। यही कारण है कि महिला बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी और सेक्टर सुपरवाइजर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के ऊपर दबाव बना रहे हैं कि वे हर हाल में 1 सप्ताह के भीतर अपने निजी निवास से आंगनबाड़ी केंद्र को दूसरे किसी किराए के भवन में शिफ्ट करें और इस फरमान के साथ-साथ वह एक निरीक्षण टीप भी लिख रही हैं, जिसमें यह लिखा जा रहा है कि पिछले 1 साल से निजी निवास में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किया जा रहा है और इसकी सूचना आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के द्वारा विभाग को नहीं दी गई है।
ऐसे निरीक्षण टीप से यह भी स्पष्ट होता है कि महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी सारा ठीकरा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के ऊपर ही फोड़ना चाहते हैं, क्योंकि निरीक्षण में लिखी गई यह बात यदि सही है तो फिर सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि क्या इस 1 साल के दौरान इससे पहले सेक्टर सुपरवाइजर ने या किसी भी अधिकारी ने उस केंद्र का कोई दौरा किया ही नहीं था कोई निरीक्षण किया ही नहीं था।
अगर दौरा या निरीक्षण किया था तो इस एक साल के दौरान पहले यह बात क्या उन्हें पता नहीं चली कि आंगनबाड़ी केंद्र निजी निवास में संचालित हो रहा है..?
रायसेन, मुरैना, खंडवा और खरगोन आदि जिले में कुछ परियोजना अधिकारियों और सेक्टर सुपरवाइजरों के द्वारा इसी तरीके से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के ऊपर तानाशाही रवैया अपनाया जा रहा है, जिसका लिखित प्रमाण haribhoomi.com के पास मौजूद है।
अल्प मानदेय में काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बहुत मजबूती से अपनी बात विभाग के बड़े अधिकारियों तक नहीं पहुंचा पा रही हैं। कुछ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने परियोजना स्तर पर अपनी बातें रखी भी है, लेकिन उनकी बातों को ना तो गंभीरता से लिया जा रहा है, ना उनकी व्यावहारिक समस्याओं के समाधान की कोई पहल की जा रही है। बल्कि समाधान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मत्थे ही छोड़ दिया गया है। ऐसे में मध्यप्रदेश की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संकट में हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य में भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लगभग इसी प्रकार के एक सरकारी फरमान के कारण संकट में हैं।
दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार ने कुपोषण को दूर करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को आदेश जारी किया है कि वे केंद्रों का संचालन शुरू करें और बच्चों को पूरक पोषण आहार बांटे।
इस फरमान के साथ-साथ यह भी गाइडलाइन जारी की गई है कि वह केंद्रों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराएं। सैनिटाइजर इत्यादि रखें। लेकिन छत्तीसगढ़ का महिला बाल विकास विभाग भी इस बात से अनभिज्ञ नहीं है कि बहुत छोटे मानदेय में काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग के हिसाब से जरूरी दूसरी चीजें जुटा पाना आसान नहीं है।
इससे भी बड़ी गंभीर बात यह है कि पूरे प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कोरोना वॉरियर्स के रूप में फ्रंट पर रहकर काम किया है। उनमें से कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं इस समय कोरोनावायरस से संक्रमित हैं। इसके बावजूद भी यह आदेश जारी किया गया है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन शुरू करें और कुपोषण को दूर करने में सरकार की मंशा को पूरी करें। इसीलिए छत्तीसगढ़ की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संकट में हैं।
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