Navratri : दशहरे की छुट्टियां और गांव की रामलीला

आकांक्षा प्रफुल्ल पाण्डेय। हमारे स्कूल के समय एक–दो बार नवरात्री, दशहरे से दिवाली तक लगभग एक महीने की छुट्टियां लगीं..तुरंत पहुंचे गांव.. हमारा गांव राजधानी रायपुर के बहुत पास स्थित होते हुए भी, शहरीकरण से अपनी पुरानी संस्कृतियों को बचाए हुए है.. परंपराएं बहुत हद तक अपने मूल स्वरूप में ही हैं..इन्हीं परंपराओं के क्रम में हर साल राम–लीला का मंचन होता.. जीवंत मंचन याद कर ऐसा लग रहा है, कि इस क्षण, मैं उसी काल खण्ड में हूं..
आज प्रतिपदा है, पापा सुबह से पूजन, सप्तशती पाठ में लगे हैं.. त्यौहार की रौनक लगी है.. हम बच्चों का पूरा ध्यान शाम से शुरू होने वाली राम–लीला में..
शाम घिर आई है ..गांव के बीच मैदान में छोटा मंच बनाया गया है.. पीले बल्बों की रौशनी, लेकिन पेट्रोमैक्स का भी प्रबन्ध है.. ( गांव में बिजली का कोई ज्यादा भरोसा नहीं था उन दिनों) बाजा,पेटी तबले वाले तैयार.. हेलो हेलो माइक टेस्टिंग... और –
आरती श्री रामायण जी की..
कीरति कलित ललित सिय पी की...
आरती संपन्न हुई, तबले–मंजीरे वाले एक और बैठ गए.. एक मुख्य गायक और दो साथी...शेष अभिनय कलाकार... स्त्रियों को वेशभूषा में भी पुरुष..
घर के सब काम जल्दी निपटा, पूरा गांव उमड़ पड़ा है राम–लीला देखने.. महिलाओं और पुरुषों के लिए दोनों तरफ बहुत बड़ी दरियां अलग–अलग बिछी हैं. . फिर भी कम पड़ेंगी, लोग जानते हैं..अपने अपने घरों से बैठने को खाली बोरे, चटाई लेते आए.. मूंगफली, मटर, रेवड़ी बंधी है थैलों में.. टॉर्च और पानी भी.. तीन–चार घण्टे बैठने का पूरा इंतजाम.. "ये मंडली वाले रात में लीला के बाद जस (देवी महिमा लोक गीत) भी गाते हैं आजकल"... रात देर तक रुक सकने की ईच्छा..
गांव में कोई अंकल–आंटी नहीं होते.. चाचा, बुआ, काकी, दाई,भईया,बाबा होते हैं..इनके सही नाम लेने में भी उन्हें परायापन लगता है, रमेश चाचा को "रमेस चाचा" कहलाना पसन्द है,और सोनमती दादी को "सोना दाई"..( आगे सस्नेह बिगड़े नामों से ही पुकारूँगी) .. हम बच्चों को विशेष स्नेह प्राप्त था सबका गांव में.. हमारे बाबा मेडिकल सुप्रिटेंडेंट ऑफिसर रहे, पापाजी शिक्षाविद् और चाचा प्रशासनिक अधिकारी... कुल–नाम के अनुरूप ही बहुत सम्मान कमाया था.. लगातार गांव के लोगों के हित–कार्यों के कारण भी गांव में प्रेम और मान अत्यधिक था.. फिर हम उनके बच्चे हैं,.. शहर से आए हैं.. ये सब छोटे छोटे तुक बना कर हमारे लिए भी बाबा, चाचा के पास ही कुर्सी लगी होती.. पर हमारा मन नीचे बिछे बोरे में अटका है.. वो कुंती चाची की बेटी बैठी है.. वो सोना दाई की नातिन है.. उन लोग कितना मजा करेंगे,जब लीला के समय लड़के लोग साड़ी पहन के आयेंगे.. रमेस चाचा कितनी मोटी नकली मूछ लगाए हैं रे..और सुखरू को देख कैसे दिख रहा है... एक दूसरे के कान में बात करेंगे और खी–खी खी–खी..
लीला शुरू हो गई.. रंग बिरंगी पोशाकें.. गत्ते पर रंगीन कागज चिपका कर बने मुकुट.. गत्ते की पान आकार के लाकेट वाली मोटी मालाएं..चमकीली पन्नी से सजी तलवार..सब लोग हाथ जोड़े बैठे हैं... राजा दसरत को बहुत दिनों में बेटा हुए हैं..बधाई.. बधाई... राजा घोड़ा बने, राजकुमार को घुमा रहे हैं.. वाह वाह...
"सुन ना रूपा दीदी, कल मैं जा नहीं पाई थी, लीला में क्या हुआ था.. अरे राजकुमार गुरुकुल चल दिए..क्या बताऊं रे,रानी बिचारी लोग इतनी दुखी थीं.. खास कर रामजी के जाने से कैकेई.. अरे तुम नहीं जानती दीदी,ये कैकेई आगे चल के क्या करेगी उसको.. हमको सब पता है गाईत्री,पर अभी तो दुखी थी बिचारी.. अच्छा आज जल्दी चलना, तीसरा दिन है लीला का..आज चारों भईया की बरात निकलेगी.. मैं तो कहूं,अजोद्धा जी निहाल हो जाएंगी.." अगले दिन भर, बात–बात में कल की लीला की चर्चा ..
बरात भी निकल गई, मिथिला भी पहुंच गई.. कितना सुन्दर सजाए हैं, मिथिला..सीता महारानी कितनी सुन्दर.. कितना बढ़िया बना है सब पकवान.. एक बहू लेने गए, चार लेके आए..इसे कहते हैं राजा घर का बियाह ... सब खुश.. सब तरफ मंगल..वाह..वाह.. वाह!!!!कल रामजी,राजा बनेंगे..मंचन कल होना है, पूरी कथा कई बार देख–सुन–पढ़ रखी है.. फिर भी मन में धुकधुकी...आज रात कीर्तन में,जैसे अपने बेटे के लिए प्रार्थना..हे माता रानी, हमारे राम जी को राजा बनवा देना, कैकेई को सद्बुद्धि दो..
आज राज्याभिषेक की घोषणा हुई.. कैकेई अड़ी.. मंथरा सफल.. राजा बेहाल.. दर्शक दीर्घा में सुगबुग.. अरी दुष्ट मंथरा..मत कर ऐसा.. थाली में छेद करना इसी को कहते हैं..कैकेई तो सोचे,क्या कर रही हूं... लेकिन सब बेकार.. राम को वनवास.. क्या?? हरे–हरे अभी तो बियाह हुआ..कैसे जंगल में रहेंगे.. लो लखन भईया भी चले.. कऊसिल्या मां के,जी का तो हाल न पूछो.. राम–राम.. कैसा दिन दिखा रही है कैकेई,अपने ही कुल को...
राम–लखन–जानकी निकल चले.. मत जाओ भईया.. अजोद्धा सूनी पड़ जायेगी.. दर्शक स्तब्ध..गहरा मौन.. सिसकियां गूंज रही हैं... राजा दसरत के प्राण छूट गए...
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS