Navratri: दशहरे की छुट्टियां और गांव की रामलीला-भाग दो

आकांक्षा प्रफुल्ल पाण्डेय। राम–लखन–जानकी बनवास को निकल चले.. मत जाओ भईया.. अजोद्धा सूनी पड़ जायेगी.. दर्शक स्तब्ध..
गहरा मौन.. सिसकियां गूंज रही हैं... आंखें बरस रहीं.. हर कोई व्याकुल...राजा दसरत के प्राण छूट गए...
आज दिन भर, और सांझ की लीला में कल का दुःख प्रत्यक्ष है.. राम बन गमन.. इतना बड़ा पत्थर रख दिया सबके हृदय पर, कैकेई और मंथरा ने मिल कर.. आज दिन भर सब अनमने से थे.. आज की लीला देखने के लिए चुपचाप आ कर अपनी जगह बैठ गए.. जैसे जीवन–उत्साह शेष नहीं..
आज रामजी ने केंवट को निहाल किया..शबरी माता का दर्शन, अनुसुइया माता का दर्शन भी आज लीला में था.. अच्छा हुआ लखन भईया ने, उस सूर्पनखा को नकटी कर दिया..बहुत ज्यादा उड़ रही थी कुलच्छनी...खर दूषण भी मार गिराए..मरीच का छल.... डर बढ़ रहा है.. जंगल में बेचारे सुकुमार..अब क्या होगा... कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए... हे माता रानी, रक्षा करना बेचारों की...
जिसका डर था, वही हुआ..वो दुष्ट रावण आज सीता मईया को ले गया.. राकछस कहीं का.. अति कर रहा है.. मरेगा एक दिन अपने ही पाप में डूब के.. बिचारे दोनों भाई आज बन में कितना दुखी हो फिरते रहे.. वो तो अच्छा हुआ जटायु जी ने बता दिया कि, पापी रावण किधर को गया है...
आज हनुमान जी महराज से भेंट हो गई रामजी की.. सुग्रीव,और तरह–तरह के बानर रहे उनके खेमे में.. एक भालू जी भी थे, जामबंत महाराज..सुग्रीव जी का भी दुःख बहुत बड़ा है..बाली भी सिधार गया.. भाई की पतोहू को ‘बिटिया समान’ ना माने था.. लेओ, अपने करम का फल भुगतो...
हनुमान जी को सबने शक्ति याद दिलाई, और जय.. श्री राम...एक बार में लांघ गए समुंदर.. सीता माता बिचारी, मुरझाई सी दुःखी बैठी थीं.. बेटे को देख हरिया गईं.. राम जी की अंगूठी कई बार सिर नवाईं.. बहुत सन्तोष मिला.. धीरज बंध गया मन में.. जब बेटा आ गया, तो नाथ के आने में अब देर नहीं.. लेकिन मेघनाद और रावण बहुत ही गुस्सा दिलाए, हनुमान जी महाराज को.. एक तो पापी रावण गलती किया, और ऊपर से बड़ी–बड़ी बात कर रहा था.. हनुमान जी महराज तो ठहरे राम जी के भगत, सबने शक्ति भी याद दिलाई थी.. असोक वाटिका तो उजाड़ी ही, लंका भी जला आए.. जय श्री राम!!!

आज दिन भर लंका की बात होती रही.. सच्ची सोने की लंका थी??? हां रामायण जी में साफ लिखा है.. वैसी नगरी न पहले बनी न उसके बाद.. पर देखना रावण का पाप,सब ले डूबेगा.. आज की लीला में पुल बांधने की तैयारी है.. समुद्र रास्ता नहीं छोड़ता.. वो तो रामजी ने धनुष उठाया तब जा के समुद्र माना...पुल बंध गया.. सेना समुन्दर पार... विभीषण जी महाराज हमारी तरफ आ मिले हैं.. युद्ध शुरू हो गया.. कुंभकरण भी आज मारा गया..
आज की लीला में लड़ाई का बखान है.. कई दिन से लड़ाई चल रही है.. रावण रोज एक नई चाल दिखाता है.. आज मेघनाथ ने छोटे भईया को शक्ति बाण मार दिया.. हे भगवान, अब क्या होगा.. रामजी तो रो–रो के हलकान हुए जा रहे हैं..दर्शकों के बीच भी उफ्फ.. हाय रे.. बिचारे छोटे भईया, देखो तो कैसे पड़े हैं... हे हनुमान जी महराज, अब आप ही कुछ करो.. सम्हाल लो प्रभु को..
हनुमानजी संजीवनी बूटी ले आए.. रास्ते में भरत जी ने रोका था.. दर्शक– " जाने दो भईया, लखन लाल बहुत कठिन समय में हैं"... लखन भईया उठ बैठे.. खेमे की जान में जान आई..
आज दशहरा है..आज तो दोपहर ही सांझ के काम निपटा लिए.. शाम को रामलीला का आखिरी दिन.. भीषण युद्ध हुआ.. दृश्य पर दृश्य बदल रहे हैं.. बिल्कुल थोड़े से संसाधनों में ऐसा जीवंत मंचन तभी सम्भव है, जब अभिनेता, श्रोता,कार्यकर्ता का मन बिल्कुल एक तारतम्य में हों.. रावण में शत्रु दिखता हो, राम जी "हमारे" और सीता, अपने गांव घर की बिटिया... जब इतना अपनापन आए, तो कोई खोट नहीं निकाल सकता.. कैसा मंच, कौन पात्र, कैसे कपड़े पहने,लाइटिंग , दरी, बोरा.. सब अपना ही तो है.. मिल के बनाया,देखा और आनन्द में भर गए..
सत्यानाशी रावण आज अति कर रहा है..पूरा कुल गंवा बैठा,फिर भी इसको चैन नहीं.. आज तो जरूर मरेगा..कोई इसको बचा नहीं सकता.. रामजी ने बाण मारा..रावण वध हो गया..... सियावर राम चंद्र की जय.. बजरंग बली महराज की जय...
रावण का पुतला भी बना है उस कोने पर.. उसे भी जला आए.. लौटते समय सोन पत्ती ली और सीधा घर..
रामलीलाओं के नए–नए ,और अद्भुत प्रकार हुए.. गांव की देखी वह कच्ची मिट्टी सी रामलीला मुझे अभी तक सोंधी महक देती है..शायद इसमें अपने घर, रिश्ते, और बटोरे हुए स्नेह का पक्का रंग चढ़ा सोन्धापन भी मिला हुआ है, इसलिए.. और शायद चलती नवरात्री के साथ रामकथा की जुगलबंदी इसमें अद्भुत मिठास घोलती है, इसलिए भी...
हम सब के जीवन में ये पक्के रंग, सोन्धापन और मिठास यूं ही घुली रहे..नवरात्र की अनन्त शुभकामनाएं 🙏🙏
बोल सांचे दरबार की...जय !!!
सिया वर राम चन्द्र की... जय !!!
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